सिर्फ एक वर्ष में पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाले कार्यों के लिए जितनी सब्सिडी दी जाती है, यदि उसे बंद करके पर्यावरण अनुकूल रोजगार पर निवेश कर दिया जाए तो उससे करीब 3.9 करोड़ नए रोजगार पैदा किए जा सकते हैं। यह जानकारी हाल ही में डब्ल्यूडब्ल्यूएफ द्वारा जारी एक नई रिपोर्ट में सामने आई है।
अनुमान है कि हर साल दुनिया भर में सरकारों द्वारा करीब 37.2 लाख करोड़ रुपए (50,000 करोड़ डॉलर) पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाले कामों जैसे जीवाश्म ईंधन, पर्यावरण के लिए हानिकारक खेती और जरुरत से ज्यादा मछली पकड़ने जैसे कामों के लिए सब्सिडी के रूप में दे रही है। रिपोर्ट के मुताबिक क्षेत्रों के आधार पर देखें तो शाश्वत तरीके से की जा रही कृषि और खाद्य उत्पादन के क्षेत्र में करीब 1.13 करोड़ नए अवसर पैदा होंगे। इसी तरह मतस्य पालन में 85 लाख, वानिकी में 91 लाख, सर्कुलर इकोनॉमी में 69 लाख और पर्यावरण के अनुकूल किए जा रहे निर्माण के क्षेत्र में करीब 31 लाख नए रोजगार पैदा होंगे।
वहीं यदि क्षेत्रीय स्तर पर देखें तो पूर्वी एशिया और प्रशांत क्षेत्र में सबसे ज्यादा 1.25 करोड़ नए अवसर पैदा होंगे। वहीं दक्षिण एशिया में 1.09 करोड़, यूरोप और मध्य एशिया में 27 लाख, लैटिन अमेरिका और कैरेबियन में 36 लाख, मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका में 23 लाख, उत्तरी अमेरिका में 3 लाख और उप सहारा अफ्रीका में पर्यावरण के अनुकूल 65 लाख नए रोजगारों का सृजन होगा।
इस बारे में डब्ल्यूडब्ल्यूएफ इंटरनेशनल के महानिदेशक मार्को लैम्बर्टिनी ने बताया कि यदि इस सब्सिडी को पर्यावरण अनुकूल कामों पर खर्च कर दिया जाए तो इससे न केवल जैवविविधता पर पड़ते प्रभावों को कम करने में मदद मिलेगी, साथ ही यह पर्यावरण के अनुकूल अर्थव्यवस्था के निर्माण में भी मदद करेगा। यही नहीं इससे हमारे पर्यावरण के गैर अनुकूल उत्पादन और खपत मॉडल में भी सुधार आएगा।
हाल ही में कोविड-19 के कारण उपजे संकट से निपटने के लिए जिस तरह से बदलाव देखने को मिले हैं वो दिखाता है कि जरुरत पड़ने पर वित्तीय तौर पर बदलाव किए जा सकते हैं। इस तरह इन बदलावों की मदद से भविष्य में 744 लाख करोड़ रुपए का पर्यावरण अनुकूल व्यापार और 40 करोड़ नौकरियों का सृजन किया जा सकता है। गौरतलब है कि 2020 में वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार प्रकृति अनुकूल समाधानों की मदद से 2030 तक 39.5 करोड़ नौकरियां और 751.3 लाख करोड़ रुपए मूल्य के व्यवसायिक अवसर पैदा किए जा सकते हैं। कई देशों ने पहले ही इस दिशा में काम करना शुरू कर दिया है जो अन्य के लिए मिसाल बन सकता है।
डब्ल्यूडब्ल्यूएफ की इस नई रिपोर्ट के अनुसार यदि इस प्रोत्साहन को देशों के बीच आबादी के आधार पर समान रूप से बांट दिया जाए तो वो करीब दोगुने (3.9 करोड़) अवसर पैदा करेगा। वहीं यदि इसे आर्थिक आधार पर बांटा जाए तो इससे केवल 2 करोड़ नए रोजगार ही पैदा होंगें। यही नहीं सभी को सामान रूप से दिया प्रोत्साहन जैवविविधता को बचाने में भी मददगार होगा। साथ ही यह पिछड़े उत्पादक देशों के भी पर्यावरण अनुकूल विकास में मदद करेगा।
प्रकृति पर आधारित है दुनिया की आधे से अधिक जीडीपी
यदि देखा जाए तो दुनिया का आधे से अधिक जीडीपी जोकि करीब 3,273 लाख करोड़ रुपए (44 लाख करोड़ डॉलर) के बराबर है, वो काफी हद तक प्रकृति पर निर्भर है। अनुमान है कि 2050 तक वैश्विक रूप से पर्यावरण में आने वाले बदलावों के चलते करीब 743.8 लाख करोड़ रुपए मूल्य के आर्थिक क्षेत्र पर खतरा मंडराने लगेगा। जिसके चलते टिम्बर और कपास जैसे उत्पादों के मूल्य में वृद्धि हो सकती है।
उदाहरण के लिए उष्णकटिबंधीय वर्षावनों की कटाई से मौसम के पैटर्न में बदलाव आ सकता है, जिससे पहले से ही पानी की किल्लत झेल रहे क्षेत्रों में समस्या और विकराल हो सकती है। इसी तरह प्रवाल भित्तियों के हो रहे विनाश के चलते वैश्विक स्तर पर मछलियों की आबादी और स्टॉक पर असर पड़ सकता है।
ऐसे में डब्ल्यूडब्ल्यूएफ ने देशों से अपील की है कि वो 2030 तक अपने उत्पादन और खपत के चलते पर्यावरण को होने वाले नुकसान को आधा करने की बात कही है जिससे प्रकृति को हो रहे नुकसान को सीमित किया जा सके। यह न केवल वर्तमान में पर्यावरण को बचाएगा साथ ही उसे भविष्य की पीढ़ियों के लिए भी बेहतर बनाएगा।
डब्ल्यूडब्ल्यूएफ ने देशों से जैवविविधता को बचाने का भी आग्रह किया है। साथ ही उसने 2030 तक 30 फीसदी भूमि और समुद्र को संरक्षित करने के लक्ष्य का भी समर्थन किया है। यही नहीं रिपोर्ट में स्थानीय समुदायों और जनजातियों के अधिकारों का सम्मान करने और उन्हें सुरक्षित करने पर भी बल दिया है।
1 डॉलर = 74.38 रुपए