कैसे बढ़ेगी दुनिया? आज भी स्कूली शिक्षा से वंचित हैं 25 करोड़ बच्चे

स्कूली शिक्षा से वंचित बच्चों की संख्या कम होने की जगह बढ़ रही है और यह आंकड़ा पिछले दो वर्षों में 60 लाख की बढोतरी के साथ 25 करोड़ पर पहुंच गया है
शिक्षा से दूर अपना और अपने परिवार का पेट भरने के लिए मुंबई की सड़कों पर तमाशा दिखाती बच्ची; फोटो: आईस्टॉक
शिक्षा से दूर अपना और अपने परिवार का पेट भरने के लिए मुंबई की सड़कों पर तमाशा दिखाती बच्ची; फोटो: आईस्टॉक
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दुनिया के 25 करोड़ बच्चे आज भी स्कूली शिक्षा से वंचित हैं। आंकड़े हैरान कर देने वाले जरूर हैं लेकिन इनकी पुष्टि खुद संयुक्त राष्ट्र ने की है।

इस बारे में संयुक्त राष्ट्र के शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन – यूनेस्को ने अपनी नई रिपोर्ट “एसडीजी मिडटर्म प्रोग्रेस रिव्यु” में जानकारी दी है कि 2021 से अब तक स्कूली शिक्षा से वंचित बच्चों की संख्या कम होने की जगह बढ़ रही है और यह आंकड़ा पिछले दो वर्षों में 60 लाख की बढोतरी के साथ 25 करोड़ पर पहुंच गया है।

यूनेस्को द्वारा जारी इस रिपोर्ट के मुताबिक, अगर देश एसडीजी-चार की प्राप्ति में, अपने राष्ट्रीय लक्ष्यों की प्रगति की सही राह पर होते, तो 60 लाख अधिक बच्चे प्री-प्राइमरी शिक्षा हासिल कर रहे होते। इसके अलावा करीब 5.8 करोड़ अधिक बच्चे व किशोर भी, स्कूली शिक्षा हासिल कर रहे होते। इतना ही नहीं लक्ष्यों की राह पर चलते हुए प्राइमरी स्कूलों के लिए करीब 17 लाख और अधिक अध्यापक अब तक प्रशिक्षित हो चुके होते।

2023 में यूनेस्को द्वारा जारी ग्लोबल एजुकेशन मॉनिटरिंग रिपोर्ट से पता चला है कि 2015 के बाद से प्राथमिक शिक्षा पूरी करने वाले बच्चों की संख्या में केवल तीन फीसदी का इजाफा हुआ है, जिसके बाद यह आंकड़ा 87 फीसदी पर पहुंच गया है। इसी तरह माध्यमिक शिक्षा पूरी करने वाले युवाओं के आंकड़े में केवल पांच फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है, जिसके बाद यह आंकड़ा बढ़कर 58 फीसदी पर ही पहुंचा है।

वहीं वैश्विक स्तर पर, युवा साक्षरता दर में बमुश्किल से एक फीसदी से भी कम का सुधार हुआ है। वहीं हैरानी की बात है कि शिक्षा में वयस्कों की भागीदारी, चाहे औपचारिक हो या अनौपचारिक, 10 फीसदी कम हो गई है। इसके ले कहीं कहीं न कहीं कोविड-19 महामारी जिम्मेवार है।

पटरी से उतरती गाड़ी

यह जो परिणाम सामने आए हैं वो एक गंभीर तस्वीर प्रस्तुत करते हैं। गौरतलब है कि सतत विकास के चौथे लक्ष्य के तहत 2030 तक सभी के लिए बेहतर शिक्षा उपलब्ध कराने का लक्ष्य रखा गया है। लेकिन इस प्रगति को देखते हुए लगता है कि इसको लेकर किए जा रहे प्रयास काफी नहीं हैं। यूनेस्को के महानिदेशक ने सभी राष्ट्रों से त्वरित कार्रवाई का आह्वान करते हुए कहा है कि, "लाखों बच्चों का भविष्य आपके हाथों में है।"

गौरतलब है कि यह तब है जब एक वर्ष पहले, 141 देशों ने, यूएन ट्रांसफॉर्मिंग एजुकेशन समिट में, एसडीजी-चार के लक्ष्यों की दिशा में हो रही प्रगति को तेज करने का संकल्प लिया था।

इन हर पांच में से चार देशों ने शिक्षकों के प्रशिक्षण में सुधार लाने की बात कही थी। वहीं 10 में से सात देशों ने शिक्षा पर अधिक निवेश करने या उसे बेहतर बनाने पर प्रतिबद्धता जताई थी। वहीं हर चार में से एक देश ने स्कूलों के लिए भोजन और वित्तीय सहायता बढ़ाने की बात कही थी। ऐसे में यूनेस्को महानिदेशक का कहना है कि, “ये संकल्प अब कार्रवाइयों के रूप में नजर आने चाहिए। अब हमारे पास खोने के लिए बिल्कुल भी समय नहीं बचा है...।”

संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी आंकड़ों से पता चलता है कि स्कूलों से बाहर रहने वाले बच्चों के आंकड़े में हुई इस बढ़ोत्तरी के लिए मुख्य रूप से अफगानिस्तान में महिलाओं व बच्चियों को शिक्षा से वंचित रखे जाने का बहुत बड़ा हाथ है। मगर इस बढ़ोत्तरी के लिए कहीं न कहीं दुनिया भर में शिक्षा की उपलब्धता में आया व्यापक ठहराव भी जिम्मेवार है।

रिपोर्ट के अनुसार एसडीजी चार के लक्ष्य को हासिल करने के लिए 2030 तक हर दो सेकंड में एक नए बच्चे को स्कूल में दाखिला दिलाना जरूरी है। वहीं सभी देशों को 2030 तक हर प्री-प्राइमरी स्कूलों में हर साल 14 लाख बच्चों का नामांकन करना होगा।

गौरतलब है कि इससे पहले भी यूनेस्को शिक्षा की दिशा हो रही प्रगति में आते ठहराव को लेकर चेता चुका है। इस बारे में जारी रिपोर्ट “कैन कन्ट्रीज अफोर्ड देयर नेशनल एसडीजी 4 बेंचमार्क्स?” में यूनेस्को ने कहा था कि यदि  हर साल आठ लाख करोड़ रुपए (9,700 करोड़ डॉलर) की अतिरिक्त धनराशि न उपलब्ध कराई गई तो बहुत से देश, 2030 तक राष्ट्रीय शैक्षिक लक्ष्यों की हासिल करने में नाकाम हो जाएंगे।

रिपोर्ट में सब सहारा अफ्रीका की स्थिति का जिक्र करते हुए जानकारी दी है कि, इस क्षेत्र में हालात इतने बुरे हैं कि बच्चों को स्कूल जाने के लिए लम्बी दूरी तय करनी पड़ती है। नतीजन प्राइमरी स्कूल की उम्र के करीब 20 फीसदी बच्चे और अपर सेकेंडरी स्कूल जाने योग्य आयु के करीब 60 फीसदी बच्चे स्कूलों से बाहर हैं।

रिपोर्ट के मुताबिक सब सहारा अफ्रीका में अब भी 9.8 करोड़ बच्चे स्कूली शिक्षा से दूर हैं। यह वो क्षेत्र भी है जहां शिक्षा से दूर इन बच्चों की संख्या लगातार बढ़ रही है। वहीं इस मामले में मध्य और दक्षिण एशिया दूसरे स्थान पर हैं, जहां स्कूली शिक्षा से दूर बच्चों का आंकड़ा करीब साढ़े आठ करोड़ है।

मंजिल से दूर होते लक्ष्य

इस बारे में यूनेस्को की महानिदेशिका ऑड्रे अजूले का कहना है कि इन परिणामों को देखकर लगता है कि संयुक्त राष्ट्र ने 2030 तक सबके लिए बेहतर शिक्षा का जो लक्ष्य निर्धारित किया है उसे हासिल करने पर जोखिम गहराता जा रहा है।" ऐसे में उनके अनुसार शिक्षा को अन्तरराष्ट्रीय एजेंडा में सबसे ऊपर रखने के लिए वैश्विक सक्रियता की जरूरत है।

उनके मुताबिक शिक्षा आपातकाल की स्थिति में है। सभी को बेहतर शिक्षा प्रदान करने के प्रयासों में तेजी के बावजूद, यूनेस्को के हालिया आंकड़े दर्शाते हैं कि पहले से कहीं ज्यादा बच्चे स्कूल नहीं जा रहे हैं। ऐसे में इन बच्चों के भविष्य को बचाने के लिए देशों को शीघ्र कार्रवाई करने की आवश्यकता है।

कहते हैं बच्चे भविष्य का आधार हैं, जिन पर हमारा कल निर्भर है। यही वजह है कि दुनिया भर में बच्चों की शिक्षा पर इतना महत्व दिया जाता है। इसके बावजूद  दुनिया भर में शिक्षा के विकास के लिए दी जा रही मदद का केवल एक फीसदी से भी कम हिस्सा प्री-प्राइमरी एजुकेशन के लिए दिया जा रहा है।

यदि इस लिहाज से देखें तो हर बच्चे की प्री-प्राइमरी एजुकेशन पर हर वर्ष करीब 25 रुपए की मदद दी जा रही है। ऐसे में दुनिया भर में प्री-प्राइमरी एजुकेशन की क्या स्थिति होगी, इसका अंदाजा आप खुद ही लगा सकते हैं। यही वजह है कि गरीब और कमजोर तबके से संबंध रखने वाले करीब 80 फीसदी बच्चे आज भी प्री-प्राइमरी एजुकेशन से वंचित हैं।

गौरतलब है कि झारखण्ड में शिक्षा की बदहाल स्थिति को लेकर हाल ही में एक रिपोर्ट जारी की गई थी, जिसके मुताबिक झारखंड के एक तिहाई प्राथमिक स्कूल केवल एक ही टीचर के भरोसे चल रहे हैं। गौरतलब है कि इन स्कूलों में 90 फीसदी बच्चे दलित और आदिवासी परिवारों से आते हैं।

ऐसे में पहले ही अनगिनत कठिनाइयों का सामना कर रहे इन बच्चों का भविष्य कैसा होगा, इसकी कल्पना भी विचलित कर देती है। स्कूलों पर किए सर्वेक्षण से पता चला है कि सर्वे में शामिल किसी भी स्कूल में शौचालय और बिजली, पानी की सुविधा नहीं थी। यदि कहीं शौचालय हैं भी तो वो जर्जर हालत में हैं, जिनका होना न होना बराबर है। 

एक डॉलर = 82.25 भारतीय रुपए

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