जलवायु आपातकाल, कॉप-25: दोहा में बताये रास्ते पर चले दुनिया: भारत और चीन

दुनिया के दो सबसे घनी आबादी वाले देशों ने भी विकसित देशों द्वारा दिए जा रहे अपर्याप्त धन पर चिंता व्यक्त की है
जलवायु आपातकाल, कॉप-25: दोहा में बताये रास्ते पर चले दुनिया: भारत और चीन
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कॉप-25 में भारत और चीन सहित दुनिया के अन्य नेताओं ने जोर देकर कहा है कि सबसे पहले क्योटो प्रोटोकॉल में किये गए दोहा संशोधन के लक्ष्यों को हासिल करना जरुरी है। साथ ही, 2020 तक देशों के बीच एमिशन में जो खाई है, उसे भर दिया जाना चाहिए। गौरतलब है कि जलवायु परिवर्तन के खिलाफ मेड्रिड में हो रहा यह सम्मलेन समाप्ति के कगार पर है। दक्षिण-पूर्व एशिया और अफ्रीका के अन्य देशों के साथ दुनिया के दो सबसे घनी आबादी वाले देशों ने भी विकसित देशों द्वारा दिए जा रहे अपर्याप्त धन पर चिंता व्यक्त की है। दोहा संशोधन के तहत क्योटो प्रोटोकॉल के लक्ष्यों को बढाकर 2013 से 2020 के बीच हासिल करने का लक्ष्य रखा गया था। जिसे कॉप-8 में अपनाया गया था। यह शिखर सम्मेलन 2012 में कतर की राजधानी दोहा में आयोजित किया गया था।

जरुरी है इक्विटी

यूएनएफसीसीसी के अनुसार, 10 दिसंबर, 2019 तक 135 देशों ने इस संशोधन पर अपनी स्वीकृति दे दी है। जबकि इसको प्रभावी होने के लिए अभी नौ और देशों के समर्थन की जरुरत है। जबकि विडंबना देखिये की इसके लक्ष्यों को हासिल करने की अवधि अगले साल समाप्त हो रही है।

भारत के प्रमुख वार्ताकार रवि शंकर प्रसाद ने एक उच्च-स्तरीय कार्यक्रम में उन देशों से जल्द ही इसपर अपनी स्वीकृति देने की अपील की है, जिन्होंने अब तक इसके प्रति अपनी प्रतिबद्धता नहीं दिखाई है। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया है कि एमिशन गैप को भी जल्द भर दिया जाना चाहिए। उनके अनुसार कॉप-25 में किसी भी विकसित देश ने अब तक इसके प्रति प्रतिबद्धता व्यक्त नहीं की है। साथ ही उन्होंने कहा है कि 2023 में हो रही ग्लोबल स्टॉकटेक से पहले इस गैप को भर दिया जाना चाहिए।

प्रसाद ने बताया कि हालांकि 2019 में ग्रीन क्लाइमेट फंड की भरपाई की गई है। कई देशों ने इसमें अपने योगदान को दोगुना कर दिया है। लेकिन इसके बावजूद यह केवल 68,746 करोड़ रुपये ही था। इसके साथ ही उन्होंने क्योटो प्रोटोकॉल में बताये गए कार्बन क्रेडिट के मुद्दे को पेरिस समझौते में नहीं बढ़ाये जाने पर सवाल उठाया है। जोकि मैड्रिड में विवाद के सबसे प्रमुख बिंदुओं में से एक था, जिसके खिलाफ कई देशों जैसे कि फिजी ने आवाज उठायी है। उनका कहना है कि

संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास के लक्ष्यों के तहत 2020 के बाद के क्रेडिट का मूल्यांकन नहीं करने से इसमें निवेश करने वालों तक गलत सन्देश जायेगा। इससे उनके मन में यूएनएफसीसीसी की प्रक्रिया के प्रति अविश्वास पैदा हो जायेगा।

इस मुद्दे पर भारत से सहमत है चीन

भारत की ही तरह चीन के भी वार्ताकार ने इस मुद्दे को उठाया है। उन्होंने कहा है कि 2020 से पहले लक्ष्यों को प्राप्त कर लेना चाहिए जिससे उन्हें इसके बाद न उठाया जाये। उनके अनुसार टेक्नोलॉजी ट्रांसफर और फाइनेंस के लिए विकसित देशों द्वारा किये जा रहे प्रयास काफी नहीं हैं। विकसित देशों ने 2020 से पहले अपने उत्सर्जन में कमी करने के लिए कोई खास प्रयास नहीं किये हैं। विकासशील देशों को विकसित देशों से अधिक समर्थन की आवश्यकता है।

भारत और चीन दोनों ने पेरिस समझौते के अनुच्छेद 6 के तहत कार्बन मार्किट मैकेनिज्म के मुद्दों को उठाया है। उनके अनुसार विकसित देशों को हर मंच पर अलग-अलग एजेंडे के तहत वित्तीय सहायता के मुद्दे के उठाने का मौका मिला है। सेंट लूसिया के शिक्षा मंत्री गेल रिगोबर्ट ने कहा कि 2020 से पहले के स्टॉकटेकिंग का उपयोग जिम्मेदारी से बचने के लिए नहीं किया जाना चाहिए। साथ ही इसके मुद्दों को पेरिस समझौते से अलग रखना चाहिए। आज दुनिया के सबसे कमजोर तबके को जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए लाखों करोड़ रुपये की जरुरत है। जिसके बिना वो इस खतरे से नहीं बच सकते।

अफ्रीका ने दिखाई है राह

रवांडा की पर्यावरण मंत्री जीन डी'आर्क मुजावमरिया ने कहा कि बड़े उत्सर्जकों को क्लाइमेट चेंज से निपटने के अपने प्रयासों को बढ़ाना होगा। साथ ही सबसे कमजोर और कम विकसित देशों के लिए अधिक वित्तीय सहायता देनी होगी। उन्होंने रवांडा के ग्रीन फंड का हवाला देते हुए बताया कि अफ्रीकी देश द्वारा हासिल की गयी उपलब्धियों ने दिखा दिया है कि "कैसे विकास के साथ-साथ, इक्विटी को ध्यान में रखते हुए, क्लाइमेट चेंज के प्रति कार्रवाई की जा सकती है। 

इस फण्ड ने 35 परियोजनाओं में करीब 4 करोड़ डॉलर का निवेश किया है। 57,500 घरों के लिए स्वच्छ ऊर्जा का प्रबंध किया है। 19,500 हेक्टेयर भूमि को मिटटी के कटाव से बचाया है। 137,500 से अधिक ग्रीन जॉब्स उपलब्ध कराई हैं, जिसमें से 60 फीसदी महिलाओं के लिए हैं। हालांकि यह सभी बातें मुख्य वार्ता से अलग कही गयी है। वार्ता कक्ष के अंदर ऐसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर कम ही बात की गयी है। सबसे महत्वपूर्ण है कि मैड्रिड में कॉप-25 का आज आखिरी दिन है। ऐसे में इन सभी मुद्दों को हल होने के आसार कम ही हैं। सभी की नजरे उसी और हैं कि क्या यह वार्ता एक मजबूत और महत्वाकांक्षी अंजाम तक पहुंच पाती है या फिर इस बार भी यह मुद्दे अधर में लटके रहेंगे।

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