जलवायु परिवर्तन की वजह से उत्तर की ओर शिफ्ट हो जाएगी उष्णकटिबंधीय वर्षा?

वैज्ञानिकों के मुताबिक बारिश में होने वाला यह बदलाव भूमध्य रेखा के आसपास के क्षेत्रों में कृषि और अर्थव्यवस्था पर गहरा असर डालेगा
प्रतीकात्मक तस्वीर: आईस्टॉक
प्रतीकात्मक तस्वीर: आईस्टॉक

यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया से जुड़े जलवायु वैज्ञानिकों ने खुलासा किया है कि अनियंत्रित कार्बन उत्सर्जन आने वाले दशकों में उष्णकटिबंधीय वर्षा को उत्तर की ओर शिफ्ट होने के लिए मजबूर कर सकता है। वैज्ञानिकों के मुताबिक बारिश में होने वाला यह बदलाव भूमध्य रेखा के पास कृषि और अर्थव्यवस्था पर गहरा असर डालेगा। देखा जाए तो इसका असर भारत में भी बारिश पर पड़ेगा।

ऐसा में सबसे बड़ा सवाल यह है कि बारिश में यह बदलाव क्यों हो रहा है? इसके कारणों पर प्रकाश डालते हुए शोधकर्ताओं ने जानकारी दी है कि उत्तर की ओर बारिश का यह बदलाव बढ़ते उत्सर्जन के कारण वातावरण में हो रहे जटिल परिवर्तनों की वजह से होगा। वायुमंडल में होते यह जटिल बदलाव अंतर-उष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्रों के गठन को प्रभावित कर सकते हैं।

यह क्षेत्र मौसम के लिए इंजन के रूप में काम करता है, जो दुनिया में होने वाली करीब एक तिहाई बारिश की वजह बनता है। बता दें कि अंतर-उष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र (आईटीसीजेड), भूमध्य रेखा के आसपास का क्षेत्र है जहां उत्तर और दक्षिणी गोलार्ध से आने वाली व्यापारिक हवाएं एक दूसरे को काटती हैं। इन क्षेत्रों की सबसे बड़ी विशेषता बढ़ती हवा है, जिससे बादल बनते हैं और बारिश होती है।

आपस में एक दूसरे को काटने के बाद यह हवाएं ऊपर की ओर बढ़ती हैं, जहां तापमान कम होता है। इनके कारण महासागरों से बड़ी मात्रा में नमी आती है। जैसे-जैसे यह आर्द्र हवाएं ऊंचाई पर ठंडी होती हैं, इनसे बादल बनते हैं, जिनकी वजह से गरज के साथ भारी बारिश होती है। आपको जानकर हैरानी होगी कि उष्णकटिबंधीय वर्षावनों में तो एक साल में 14 फीट तक बारिश हो सकती है।

हालांकि अध्ययन से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता वेई लियू द्वारा प्रेस विज्ञप्ति में साझा की जानकारी से पता चला है कि उत्तर की ओर यह बदलाव केवल दो दशकों तक रहेगा। उसके बाद, दक्षिणी महासागरों के गर्म होने से बनने वाला मजबूत प्रभाव इन अभिसरण क्षेत्रों को वापस दक्षिण की ओर खींच लेगा और उन्हें अगले हजार सालों तक वहीं बनाए रखेगा।

कृषि अर्थव्यवस्था पर पड़ सकता है भारी असर

वैज्ञानिकों के मुताबिक भूमध्य रेखा के आसपास के क्षेत्र जैसे मध्य अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका और प्रशांत द्वीप समूह इससे सबसे ज्यादा प्रभावित होंगें। इन क्षेत्रों में कॉफी, कोको, पाम ऑयल, केला, गन्ना, चाय, आम और अनानास जैसी महत्वपूर्ण फसलें उगाई जाती हैं।

अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता वेई लियू का प्रेस विज्ञप्ति में कहना है कि, यह ऐसा क्षेत्र है जहां बहुत ज्यादा बारिश होती है। इसमें एक छोटा सा भी बदलाव कृषि और अर्थव्यवस्था में बड़े बदलाव की वजह बन सकता है। आशंका है कि इसका असर कई क्षेत्रों पर पड़ेगा।

अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने जीवाश्म ईंधन और अन्य स्रोतों से होते उत्सर्जन के वायुमंडल पर पड़ते प्रभावों की भविष्यवाणी करने के लिए अत्याधुनिक कंप्यूटर मॉडल का उपयोग किया है। इस अध्ययन के नतीजे अंतराष्ट्रीय जर्नल नेचर क्लाइमेट चेंज में प्रकाशित हुए हैं।

शोधकर्ताओं ने अपने मॉडल के बारे में प्रेस विज्ञप्ति के हवाले से जानकारी दी है कि, इस इस जलवायु मॉडल में महासागर, समुद्री बर्फ, भूमि और वायुमंडल से जुड़े कई घटकों को शामिल किया गया है। ये सभी घटक एक दूसरे के साथ परस्पर क्रिया कर रहे हैं।

अध्ययन में इस बात पर भी ध्यान दिया गया है कि कार्बन उत्सर्जन वायुमंडल के शीर्ष तक पहुंचने वाली ऊर्जा को कैसे प्रभावित करता है। साथ ही इसमें समुद्री बर्फ, जल वाष्प और बादलों के निर्माण में होने वाले बदलावों पर भी विचार किया गया है। रिसर्च के मुताबिक इनके साथ-साथ अन्य कारकों की वजह से ऐसी परिस्थितियां पैदा हुई जो बारिश में मददगार अभिसरण क्षेत्रों को औसतन 0.2 डिग्री उत्तर की ओर ले गईं।

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