जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए क्या रणनीति अपना रहे हैं कछुए, क्या आगे भी होंगे? सफल

मौसम सामान्य से गर्म होता है, तो उसकी वजह से अधिक मादाएं जन्म लेती हैं, लेकिन यदि तापमान कहीं अधिक बढ़ जाए तो कछुओं के बहुत कम अंडों से ही बच्चे निकलते हैं
घोसले से निकलते लॉगरहेड कछुओं के बच्चे; फोटो: आईस्टॉक
घोसले से निकलते लॉगरहेड कछुओं के बच्चे; फोटो: आईस्टॉक
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जलवायु में आता बदलाव हम इंसानों को ही नहीं दूसरे जीवों को भी प्रभावित कर रहा है, जिससे बचने के लिए यह जीव अपनी क्षमता के अनुसार अलग-अलग रणनीति अपना रहे हैं। कछुओं के साथ भी ऐसा ही कुछ हो रहा है, जो जलवायु में आते बदलावों का सामना करने के लिए समय से पहले अपने घोसलें बना रहे हैं।

साइप्रस में हरे और लॉगरहेड कछुओं के घोंसले पर निगरानी रखने वाले शोधकर्ताओं ने पाया है कि वे बढ़ते तापमान की भरपाई करने के लिए साल दर साल समय से पहले ही उन स्थानों पर लौट रहे हैं, जहां वे अपने घोंसले बनाते हैं।

गौरतलब है कि कछुओं में एक खासियत होती है, वे अपने अंडे देने के लिए हमेशा उसी स्थान पर आते हैं, जहां वे पैदा हुए थे।

वैज्ञानिकों के मुताबिक समुद्री कछुओं और तापमान के बीच बड़ा गहरा नाता होता है। इसका सीधा असर उनके पैदा होने वाले बच्चों पर पड़ता है। यदि मौसम गर्म होता है, तो उसकी वजह से अधिक मादाएं जन्म लेती हैं, लेकिन यदि तापमान कहीं अधिक बढ़ जाता है तो कछुओं के बहुत कम अंडों से ही बच्चे निकलते हैं।

एक्सेटर विश्वविद्यालय और सोसाइटी फॉर द प्रोटेक्शन ऑफ टर्टल्स से जुड़े वैज्ञानिकों का अनुमान है कि सदी के अंत तक लगभग कोई भी नया लॉगरहेड कछुआ अंडे से नहीं निकलेगा, जब तक कि वे बढ़ते तापमान से बचने के लिए पहले ही घोंसला बनाना शुरू नहीं कर देते। अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने तीन दशकों से जुड़े आंकड़ों का उपयोग किया है।

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तापमान और कछुओं के बच्चों पर पड़ते प्रभावों को समझने के लिए अध्ययन के दौरान शोधकर्ताओं ने कछुओं के घोसलों से तापमान से जुड़े आंकड़े एकत्र किए हैं। उन्होंने रात में कछुओं के अंडे देने और उन्हें सेने के बाद तापमान से जुड़े आंकड़ों को एकत्र किया है।

उन्होंने पाया कि कछुओं को हर साल आधा दिन पहले घोंसले बनाने चाहिए ताकि नर-मादा अनुपात बना रहे। साथ ही कछुओं को अंडे सेने में विफलता को रोकने के लिए हर साल 0.7 दिन पहले घोसला बनाना होगा।

हालांकि आंकड़ों से पता चला है लॉगरहेड कछुए पहले ही इस रणनीति को अपना रहे हैं। वास्तव में साल की शुरुआत में ही घोंसला बनाना शुरू कर देते हैं। अध्ययन के मुताबिक 1993 से मादा कछुए साल दर साल 0.78 दिन पहले ही घोंसला बनाना शुरू कर रही हैं।

इसका मतलब है कि कम से कम अभी तक, कछुए आदर्श तापमान में पहले ही घोंसला बनाकर यह सुनिश्चित करने के लिए प्रयास कर रहे हैं कि उनके अंडों को बेहतर तापमान मिल सके और बच्चे जीवित रहें।

जारी है अस्तित्व की लड़ाई

प्रोफेसर एनेट ब्रोडरिक ने प्रेस विज्ञप्ति में कहा है कि “यह अच्छी खबर है कि कछुए ठंडे महीनों में घोंसला बनाकर जलवायु में आते बदलावों से बचने का प्रयास कर रहे हैं।“

हालांकि उनके मुताबिक इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि वे ऐसा करते रहेंगे। यह इस बात पर निर्भर करता है कि तापमान कितना बढ़ता है और वे क्या खाते हैं। अगर उनकी भोजन आपूर्ति के समय में बदलाव होता है, तो उन्हें भोजन और प्रजनन के स्थान और समय के बीच संतुलन बनाने में कठिनाई हो सकती है।

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अपने इस शोध में शोधकर्ताओं ने उत्तरी साइप्रस में 600 से अधिक हरे कछुओं का 31 वर्षों तक अध्ययन किया है और उनसे प्राप्त आंकड़ों का विश्लेषण किया है ताकि यह समझा जा सके कि वे हर साल कब अंडे देना शुरू करते हैं। उनके घोंसले बनाने के समय का क्या प्रभाव पड़ता है और वे समय से पहले घोंसला क्यों बना रहे हैं।

इस अध्ययन के जो नतीजे सामने आए हैं उनसे पता चला है कि कछुए समुद्र के तापमान के आधार पर घोसला बनाने के समय में बदलाव कर रहे हैं। जब तापमान अधिक होता है तो कछुए जल्द घोंसला बनाते हैं, और तापमान में हर एक डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होने पर 6.47 दिन पहले अंडे दे रहे हैं।

उन्होंने पाया है कि करीब 30 फीसदी मादाओं के शीघ्र घोंसला बनाने का कारण तापमान होता है, जबकि प्रौढ़ और अधिक सक्रिय मादाएं भी समय से पहले घोसला बना रही हैं।

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