ओजोन परत को नष्ट करने वाले क्लोरोफ्लोरोकार्बन (सीएफसी) को रोकने के लिए 1987 में एक अंतर्राष्ट्रीय समझौता किया गया था, जिसे मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल कहा गया। यह पहली अंतरराष्ट्रीय संधि है, जिसने ग्लोबल वार्मिंग की दर को सफलतापूर्वक धीमा किया है।
एनवायर्नमेंटल रिसर्च लेटर्स में प्रकाशित इस नए शोध से पता चला है कि मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल की वजह से आज वैश्विक तापमान काफी कम है। मध्य शताब्दी तक पृथ्वी औसत से कम-से-कम 1 डिग्री सेल्सियस ठंडी होगी, जो कि समझौते के बिना संभव नहीं था। आर्कटिक जैसे क्षेत्रों में शमन (मिटिगेशन) भी अधिक हुआ है। यहां तापमान के 3 डिग्री सेल्सियस से 4 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ने की आशंका थी, जो प्रोटोकॉल की वजह से रुक गया है।
प्रमुख शोधकर्ता ऋषभ गोयल ने कहा कि, क्लोरोफ्लोरोकार्बन (सीएफसी), कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ2) ग्रीनहाउस गैस की तुलना में हजारों गुना अधिक शक्तिशाली होती है। इसलिए मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल ने न केवल ओजोन परत को बचाया, बल्कि इसने ग्लोबल वार्मिंग को भी कम कर दिया।
मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल का क्योटो समझौते की तुलना में ग्लोबल वार्मिंग पर अधिक प्रभाव पड़ा है। क्योटो समझौते को विशेष रूप से ग्रीनहाउस गैसों को कम करने के लिए डिज़ाइन किया गया था। जहां क्योटो समझौते के तहत की गई कार्रवाई से सदी के मध्य तक तापमान में केवल 0.12 डिग्री सेल्सियस की कमी आई, वही मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के शमन (मिटिगेशन) से तापमान 1 डिग्री सेल्सियस कम हुआ।
मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल ने अंटार्कटिका के आसपास के वायुमंडलीय सर्कुलेशन को कैसे प्रभावित किया, यह जानने के लिए टीम ने निष्कर्ष निकाले। शोधकर्ताओं ने वायुमंडलीय रसायन के दो परिदृश्यों के तहत वैश्विक जलवायु का मॉडल तैयार किया। पहला, मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के साथ और दूसरा इसके बिना। उन्होंने सिमुलेशन के आधार पर सीएफसी विकास दर को 3 फीसदी प्रति वर्ष माना, जोकि मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल की स्थापना के समय माने गए सीएफसी विकास दर से बहुत कम था। शोधकर्ताओं ने पाया कि सीएफसी को कम करने में मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल का बहुत बड़ा प्रभाव था।
जलवायु परिवर्तन को कम करने में मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल ने अहम भूमिका निभाई है। उदाहरण के लिए, प्रोटोकॉल ने उत्तर अमेरिका, अफ्रीका और यूरेशिया के 0.5 डिग्री सेल्सियस से 1 डिग्री सेल्सियस के बीच तापमान बढ़ने से रोका है। मध्य शताब्दी तक इन क्षेत्रों में तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस से 2 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ने से रोका है। वहीं आर्कटिक का तापमान 3 डिग्री सेल्सियस से 4 डिग्री सेल्सियस के आसपास पहुंचने से बचाया।
शोधकर्ताओं ने यह भी पाया कि प्रोटोकॉल के कारण बर्फ के पिघलने से बचा जा सकता है, क्योंकि आज गर्मियों के दौरान आर्कटिक के चारों ओर समुद्री बर्फ की मात्रा लगभग 25 फीसदी से अधिक है। शोधकर्ता डॉ मार्टिन जकर ने कहा, मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल तीन दशकों से अधिक समय से ग्लोबल वार्मिंग प्रभावों को कम कर रहा है। मॉन्ट्रियल ने सीएफसी को कम किया है, इसका अगला बड़ा लक्ष्य कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ2) उत्सर्जन को शून्य करना है।
वर्तमान में कॉन्फ्रेंस ऑन द पार्टीज (कॉप) की 25वीं बैठक स्पेन की राजधानी मैड्रिड में हो रही है। जिसका उद्देश्य भी बढ़ते हुए तापमान को रोकने का है।