सरकार द्वारा जलवायु परिवर्तन के खिलाफ की जा रही कमजोर कार्रवाई को लेकर भारत सहित दुनिया भर के युवा चिंतित हैं जोकि उनमें मानसिक दबाव पैदा कर रही है। वैश्विक स्तर पर अपनी तरह के इस सबसे बड़े वैज्ञानिक अध्ययन में शामिल करीब आधे युवाओं (45 फीसदी) का मानना है कि जलवायु संकट को लेकर उनके मन में जो चिंता और डर है वो उनके दैनिक जीवन और कामकाज को प्रभावित कर रही है। वहीं भारत के 74 फीसदी बच्चों और युवाओं के मन में भी यही चिंता है।
वहीं सर्वेक्षण में शामिल 58 फीसदी बच्चों और युवाओं का कहना है कि सरकारें 'उन्हें और आने वाली पीढ़ियों को धोखा दे रही हैं', जबकि 64 फीसदी का कहना है कि उनकी सरकारें जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए पर्याप्त नहीं कर रही हैं। 61 फीसदी युवाओं और बच्चों का कहना है कि जिस तरह से सरकारें जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए काम कर रही हैं उनको देखकर लगता है कि वो उनकी, उनके ग्रह की और आने वाली पीढ़ियों की रक्षा नहीं कर पाएंगी।
सर्वेक्षण में शामिल आधे से ज्यादा बच्चों और युवाओं का कहना है कि वो डर हुए, उदास, चिंतित, क्रोधित, कमजोर, असहाय और अपने आप को दोषी महसूस कर रहे हैं। वहीं लगभग 55 फीसदी का मानना है कि उनके पास उतने अवसर नहीं हैं जितने उनके माता-पिता के पास थे।
लगभग 65 फीसदी का कहना है कि कि सरकारें युवाओं की विफलता का कारण हैं, जबकि लगभग 59 फीसदी ने जलवायु परिवर्तन को लेकर अत्यधिक चिंता जताई है। लगभग आधे (48 फीसदी) का कहना है कि जब उन्होंने जलवायु परिवर्तन के बारे में दूसरों से बात की, तो उन्हें अनदेखा या खारिज कर दिया गया।
यह अध्ययन 16 से 25 वर्ष के 10 हजार बच्चों पर किए सर्वेक्षण पर आधारित है, जिसे पोलिंग कंपनी कैंटर द्वारा 18 मई से 07 जून 2021 के बीच संपन्न किया गया था। अपने इस शोध में शोधकर्ताओं ने भारत, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, नाइजीरिया, फिलीपींस, फिनलैंड, पुर्तगाल, ब्राजील और फ्रांस, प्रत्येक देश से 1,000 बच्चों को सर्वे में शामिल किया था।
इस अध्ययन में कई संस्थानों के शोधकर्ताओं ने सहयोग दिया है, जिसमें यूनिवर्सिटी ऑफ बाथ, हेलसिंकी विश्वविद्यालय, एनवाईयू लैंगोन हेल्थ, यूनिवर्सिटी ऑफ ईस्ट एंग्लिया, स्टैनफोर्ड मेडिसिन सेंटर फॉर इनोवेशन इन ग्लोबल हेल्थ, ऑक्सफोर्ड हेल्थ एनएचएस फाउंडेशन ट्रस्ट और द कॉलेज ऑफ वूस्टर, क्लाइमेट साइकियाट्री एलायंस से जुड़े शोधकर्ता शामिल थे। यह अध्ययन अंतराष्ट्रीय जर्नल द लैंसेट प्लैनेटरी हेल्थ के दिसंबर 2021अंक में प्रकाशित हुआ है।
75 फीसदी युवाओं को है डर, भयावह है आने वाला भविष्य
वहीं 75 फीसदी युवाओं को डर है कि आने वाला भविष्य भयावह है। यह डर पुर्तगाल के 81 फीसदी युवाओं और फिलीपींस के 92 फीसद युवाओं के मन में है। यह पहली बार है जब युवाओं ने जलवायु संकट को लेकर अपनी चिंता के लिए कथित तौर पर सरकार की निष्क्रियता और विश्वासघात को भी जिम्मेवार माना है।
गौरतलब है कि इससे पहले यूएनडीपी और यूनिवर्सिटी ऑफ ऑक्सफोर्ड द्वारा जलवायु परिवर्तन को लेकर किए बड़े जनमत सर्वे में भी 70 फीसदी किशोरों ने जलवायु परिवर्तन पर चिंता जताई थी। उन युवाओं का मानना था कि हम जलवायु आपातकाल में जी रहे हैं और इसे रोकने के लिए ठोस कार्रवाई की जानी चाहिए।
इस अध्ययन में वैश्विक स्तर पर बच्चों और युवाओं के बीच व्यापक मनोवैज्ञानिक संकट दर्ज किया गया था। शोधकर्ताओं ने चेतावनी दी है कि इस तरह बच्चों और युवाओं के मन में व्याप्त पीड़ा, डर, कार्यात्मक प्रभाव और विश्वासघात की भावना उनके मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर डालेगी। जलवायु परिवर्तन के मामले में सरकार की निरंतर निष्क्रियता, मनोवैज्ञानिक रूप से भी नुकसानदायक है। यह किसी हद तक अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानून का उल्लंघन जैसा है।
इस बारे में शोध और बाथ विश्वविद्यालय से जुड़ी शोधकर्ता कैरोलिन हिकमैन का कहना है कि यह अध्ययन हमारे बच्चों और युवाओं के मन में मौजूद व्यापक जलवायु चिंता की एक भयावह तस्वीर पेश करता है। यह पहली बार है जब कोई शोध दर्शाता है कि युवाओं में उच्च स्तर का मनोवैज्ञानिक संकट सरकार की निष्क्रियता से जुड़ा है।
उनके अनुसार हमारे बच्चों की चिंता पूरी तरह से तर्कसंगत है। यह सरकारों द्वारा जलवायु परिवर्तन को लेकर की जा रही अपर्याप्त कार्रवाई के प्रति प्रतिक्रिया है जो वो देख रहे हैं। ऐसे में कार्रवाई करने के लिए सरकारों को और क्या सुनने की जरुरत है।
शोध में शामिल फिलीपींस की 23 वर्षीय मित्ज़ी टैन का कहना है कि वो अपने ही बेडरूम में डूबने के डर के साथ बड़ी हुई हैं। वहीं समाज का इस बारे में कहना है कि यह चिंता और डर तर्कहीन है, जिसे दूर करने की जरूरत है। पर सच में जब फिलीपींस में बाढ़ का खतरा इस कदर बढ़ता जा रहा है तो क्या उनका यह डर तर्कहीन है। यह सोचने का विषय है।
टैन के अनुसार 'इस डर की जड़, जलवायु को लेकर हमारी चिंता सरकारी निष्क्रियता और विश्वासघात की गहरी भावना से उपजी है। वास्तव में जलवायु परिवर्तन को लेकर हमारी बढ़ती चिंता को दूर करने के लिए, हमें न्याय की जरुरत है।'