चरम मौसम की बढ़ती घटनाओं के कारण नदियों के पानी की गुणवत्ता खराब हो रही है: अध्ययन

अध्ययन में सूखे, लू या हीट वेव, बारिश और बाढ़ जैसे चरम मौसम के साथ-साथ जलवायु में लंबी अवधि के बदलावों के दौरान नदी के पानी की गुणवत्ता में बदलाव के 965 मामलों का विश्लेषण किया गया।
फोटो साभार:नेचर रिव्यूज अर्थ एंड एनवायरनमेंट पत्रिका
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जलवायु परिवर्तन, सूखे तथा बारिश की बढ़ती घटनाएं हमारे जल प्रबंधन के लिए गंभीर चुनौतियां पैदा करती हैं। इनके कारण न केवल पानी की उपलब्धता कम हो रही है, बल्कि उसकी गुणवत्ता पर भी भारी असर देखने को मिल रहा है।

नवीनतम जलवायु परिवर्तन से संबंधित अंतर - सरकारी पैनल (आईपीसीसी) रिपोर्ट के अनुसार, इस मुद्दे पर हमारी वर्तमान जानकारी काफी नहीं है। इस कमी को दूर करने के लिए, वैज्ञानिकों की एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने दुनिया भर की नदियों में पानी की गुणवत्ता पर शोध किया है।

नेचर रिव्यूज अर्थ एंड एनवायरनमेंट में प्रकाशित अध्ययन से पता चलता है कि चरम मौसम की घटनाओं के दौरान नदी के पानी की गुणवत्ता खराब हो जाती है। जैसे-जैसे जलवायु परिवर्तन के कारण ये घटनाएं अधिक लगातार और गंभीर होती जा रही हैं, पारिस्थितिकी तंत्र का स्वास्थ्य और सुरक्षित पानी तक लोगों की पहुंच तेजी से खतरे में पड़ सकती है।

यूट्रेक्ट विश्वविद्यालय के डॉ. मिशेल वैन व्लियेट के नेतृत्व में किए गए अध्ययन में सूखे, लू या हीट वेव, भयंकर बारिश और बाढ़ जैसे चरम मौसम के साथ-साथ जलवायु में लंबी अवधि के बदलावों के दौरान नदी के पानी की गुणवत्ता में बदलाव के 965 मामलों का विश्लेषण किया गया।

अध्ययनकर्ताओं ने पानी की गुणवत्ता के अलग-अलग कारणों जैसे पानी का तापमान, घुलनशील ऑक्सीजन, खारापन और पोषक तत्व, विभिन्न धातु, सूक्ष्मजीवों, फार्मास्यूटिकल्स और प्लास्टिक की मात्रा आदि को पानी में देखा गया।

अध्ययन के मुताबिक, विश्लेषण से पता चलता है कि ज्यादातर मामलों में सूखे और लू जो कि 68 प्रतिशत, बारिश और बाढ़ 51 प्रतिशत, और जलवायु के कारण लंबी अवधि में बदलाव 56 प्रतिशत, के दौरान पानी की गुणवत्ता खराब हो जाती है।

सूखे के दौरान, प्रदूषकों को पतला करने के लिए पानी की उपलब्ध कम होती है, जबकि आंधी-बारिश और बाढ़ के कारण आम तौर पर प्रदूषक तत्व अधिक होते हैं जो जमीन से नदियों और नालों में बह जाते हैं। कुछ मामलों में प्रतिरोधी तंत्रों के कारण पानी की गुणवत्ता में सुधार या मिश्रित प्रतिक्रियाएं भी दर्ज की जाती हैं, उदाहरण के लिए जब बाढ़ की घटनाओं के दौरान प्रदूषकों के पानी में बहकर उनकी वृद्धि होती है।

पानी की गुणवत्ता में बदलाव नदी के प्रवाह और पानी के तापमान में बदलाव से जुड़ा होता है। भूमि उपयोग और अपशिष्ट जल उपचार जैसे अन्य मानवजनित कारण भी इसे प्रभावित करते हैं।

अध्ययनकर्ता कहते हैं कि, जलवायु, भूमि उपयोग और मानवजनित कारणों के बीच जटिल अंतरसंबंध को समझना अहम है, जो मिलकर प्रदूषकों के स्रोतों और उनके एक जगह से दूसरी जगह पहुंचने को प्रभावित करते हैं। शोध में पश्चिमी देशों को छोड़कर, अन्य हिस्सों के अधिक आंकड़े एकत्र कर पानी की गुणवत्ता के और अधिक अध्ययन की भी मांग की गई है।

अध्ययनकर्ता ने कहा, हमें अफ्रीका और एशिया में पानी की गुणवत्ता की बेहतर निगरानी करने की जरूरत है। अधिकांश जल गुणवत्ता अध्ययन अब उत्तरी अमेरिका और यूरोप की नदियों और नालों पर आधारित हैं।

उन्होंने बताया कि, अध्ययन के नतीजे चरम मौसम की घटनाओं के दौरान पानी की गुणवत्ता में बदलाव और आपस में जुड़े तंत्र की बेहतर समझ की तत्काल जरूरत को उजागर  करते हैं।

अध्ययनकर्ता ने आगे कहा कि, तभी हम प्रभावी जल प्रबंधन रणनीतियों को विकसित करने में सक्षम होंगे, जब हम स्वच्छ पानी तक पहुंच को सुरक्षित रख सकते हैं और जलवायु परिवर्तन और मौसम की बढ़ती चरम स्थितियों के तहत पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य को सुनिश्चित कर सकते हैं।

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