आर्कटिक में समुद्री शिकारी जीवों को उत्तर की ओर खींच रहा है बढ़ता तापमान

जलवायु परिवर्तन और उसके चलते उत्पादकता में होती वृद्धि के कारण, आर्कटिक में समुद्री शिकारी जीव पिछले दो दशकों में अपनी सीमा का विस्तार कर रहे हैं
16 सितंबर, 2021 को आर्कटिक में जमा समुद्री बर्फ की नासा द्वारा ली गई तस्वीर, जब बर्फ अपनी वार्षिक न्यूनतम सीमा तक पहुंच गई थी। इस तारीख को बर्फ का विस्तार 47.2 लाख वर्ग किलोमीटर दर्ज किया गया। फोटो:  नासा विज़ुअलाइजेशन स्टूडियो
16 सितंबर, 2021 को आर्कटिक में जमा समुद्री बर्फ की नासा द्वारा ली गई तस्वीर, जब बर्फ अपनी वार्षिक न्यूनतम सीमा तक पहुंच गई थी। इस तारीख को बर्फ का विस्तार 47.2 लाख वर्ग किलोमीटर दर्ज किया गया। फोटो: नासा विज़ुअलाइजेशन स्टूडियो
Published on

समुद्री शिकारी जीवों ने पिछले दो दशकों के दौरान आर्कटिक में अपनी सीमाओं का विस्तार उत्तर की ओर किया है। इसकी वजह कहीं न कहीं जलवायु में आता बदलाव और उसके कारण उत्पादकता में होती वृद्धि है। यह जानकरी होक्काइडो विश्वविद्यालय के आर्कटिक रिसर्च सेंटर से जुड़े वैज्ञानिकों और अंतराष्ट्रीय शोधकर्ताओं की टीम द्वारा किए अध्ययन में सामने आई है। इसके नतीजे जर्नल साइंटिफिक रिपोर्ट्स में प्रकाशित हुए हैं।

शोध के मुताबिक आर्कटिक और उसके आसपास का समुद्री क्षेत्र मत्स्य पालन और पारिस्थितिकी तंत्र के लिए बहुत मायने रखता है। हालांकि साथ ही वो जलवायु परिवर्तन से सबसे ज्यादा प्रभावित क्षेत्रों में से भी एक है। इसके बावजूद पिघलती बर्फ और बढ़ते तापमान की वजह से गर्म होते समुद्र का वहां की जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र पर क्या प्रभाव पड़ रहा है, यह पूरी तरह स्पष्ट नहीं है।

इसी कड़ी में होक्काइडो विश्वविद्यालय के आर्कटिक रिसर्च सेंटर से जुड़े वैज्ञानिकों की एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने वहां प्रजातियों की समृद्धि, संरचना और क्षेत्रीय बदलावों की जांच की है। रिसर्च के मुताबिक हाल में जैवविविधता में जो बदलाव आए है वो प्रजातियों की सीमा के ध्रुवों की ओर होते विस्तार से प्रेरित थे।

इस बारे में अध्ययन से जुड़ी प्रमुख वैज्ञानिक आइरीन डी अलाबिया का कहना है कि उन्होंने 2000 से 2019 के बीच किए गए इस अध्ययन में आर्कटिक के आठ क्षेत्रों को शामिल किया था। इस दौरान उन्होंने वहां मौजूद प्रमुख शिकारी जीवों और मेसोप्रेडेटर्स की 69 प्रजातियों का अध्ययन किया था।

उनका कहना था कि उन्होंने इस क्षेत्र में प्रजातियों को ध्यान में रखते हुए उनेक आवास के वितरण को मानचित्रित करने के लिए इन प्रजातियों से जुड़ी जानकारियों को जलवायु और उत्पादकता से जुड़े आंकड़ों के साथ जोड़कर विश्लेषित किया था।

इस रिसर्च में जो सबसे महत्वपूर्ण बात सामने आई वो यह थी कि इस अवधि के दौरान प्रजातियां कहीं ज्यादा समृद्ध हुई हैं। मतलब की इस अवधि के दौरान उनकी संख्या में इजाफा हुआ है। जो व्हेल, शार्क और समुद्री पक्षियों जैसे शीर्ष शिकारियों के उत्तर की ओर बढ़ते प्रवास का नतीजा हैं।

वहीं मछली और केकड़ों जैसे मेसोप्रेडेटर्स ने उत्तर की ओर अपेक्षाकृत सीमित क्षेत्रों की ओर प्रवास किया है, जो प्रशांत और अटलांटिक महासागर के उथले महाद्वीपीय शेल्फ तक सीमित था। हालांकि यह स्थानिक विस्तार अलग-अलग था, लेकिन उत्तर की ओर प्रजातियों का यह विस्तार या तो जलवायु या उत्पादकता, या फिर दोनों बदलावों से प्रेरित था।  

दुनिया के बाकी हिस्सों की तुलना में दोगुना तेजी से गर्म हो रहा है आर्कटिक

आर्कटिक में तापमान किस कदर बढ़ रहा है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि जून 2020 में साइबेरिया के वर्खोयान्स्क शहर में तापमान 38 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया था। इसकी पुष्टि विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) ने भी की थी।

तापमान में होती वृद्धि के लिहाज से देखें तो आर्कटिक दुनिया के बाकी हिस्सों की तुलना में दोगुना तेजी से गर्म हो रहा है। वहीं “आर्कटिक रिपोर्ट कार्ड 2021” में भी सामने आया है की अक्टूबर 2020 से सितंबर 2021 के बीच वहां हवा का औसत तापमान जलवायु रिकॉर्ड में 7वां सबसे गर्म था। गौरतलब है कि 2014 के बाद से यह लगातार आठवां वर्ष है, जब हवा का तापमान औसत से एक डिग्री सेल्सियस ज्यादा दर्ज किया गया है। 

इसी तरह आर्कटिक में जमा समुद्री बर्फ को देखें तो वो पिछले 30 वर्षों में हर दशक करीब 13 फीसदी की दर से घट रही है। वहीं नासा ने भी अपनी रिपोर्ट में इस बात की पुष्टि की है कि आर्कटिक में जमा सबसे पुरानी और मोटी बर्फ की चादर में करीब 95 फीसदी की गिरावट आई है।

वैज्ञानिकों ने भी इस बात को लेकर आगाह किया था कि आर्कटिक में जिस तरह से तापमान में वृद्धि हो रही है उसके चलते वहां के पारिस्थितिकी तंत्र पर गंभीर प्रभाव पड़ सकते हैं। उनके अनुसार इसकी वजह से वहां के जीवों और वनस्पति पर व्यापक असर पड़ने की आशंका है। देखा जाए तो यह जो बदलाव सामने आ रहे हैं वो इसी का नतीजा हैं।

जर्नल नेचर क्लाइमेट चेंज में प्रकाशित एक अन्य अध्ययन से पता चला है कि बढ़ते वैश्विक तापमान के चलते आर्कटिक में गर्मियों का तापमान सामान्य से कहीं ज्यादा हो गया है, जिसका सीधा असर वहां के पेड़-पौधों और जीवों पर पड़ रहा है। पता चला है कि आर्कटिक में बर्फ समय से पहले पिघल रही है और बसंत में पौधों पर जल्द पत्ते आ रहे हैं। साथ ही टुंड्रा वनस्पति का विस्तार नए क्षेत्रों में हो रहा है, जहां पहले पौधे उग रहे थे वो अब इन बदलावों के चलते और लंबे हो रहे हैं।

रिसर्च के मुताबिक जलवायु परिवर्तन के चलते जैव विविधता में जो बदलाव आए हैं उनके कारण विभिन्न प्रजातियों के बीच संबंधों में भी बदलाव आया है, क्योंकि उनके आवास पहले की तुलना में कहीं ज्यादा ओवरलैप हो गए हैं। देखा जाए तो यह सब कुछ तापमान और समुद्री बर्फ में हुए असामान्य परिवर्तन के समय हुआ है।

इस बारे में शोधकर्ता डॉक्टर आइरीन के अनुसार, "आर्कटिक की जलवायु और प्रजातियों की समृद्धि में हो रहा बदलाव, भिन्न-भिन्न समुद्री क्षेत्रों में अलग-अलग होता है। जो जलवायु और उत्पादकता के संभावित हॉटस्पॉट को उजागर करता है।

साथ ही यह उन उभरते क्षेत्रों को भी दर्शाता है जहां प्रजातियों को फायदा हो रहा है। ऐसे में उनके अनुसार यह जानकारी आर्कटिक में जलवायु परिवर्तन के बढ़ते पदचिह्नों के तहत संसाधनों के बेहतर उपयोग, संरक्षण और प्रबंधन से जुड़े प्रयासों को सशक्त करने पर जोर देती है।

Related Stories

No stories found.
Down to Earth- Hindi
hindi.downtoearth.org.in