उत्तर प्रदेश: क्या लोगों तक पहुंच रही है मौसम की चेतावनी, क्या अलर्ट पर हो रहा है अमल

“जलवायु परिवर्तन से जुड़े मामलों में सिर्फ ऐसा डेटा देना काफी नहीं है कि आज तापमान 45 डिग्री पार कर सकता है। हमें इस सूचना के आधार पर लोगों को व्यवहार में बदलाव लाने के लिए प्रोत्साहित करना होगा। यहां बिहेवियर साइंस बहुत अहम है।”
उत्तर प्रदेश के लखनऊ में तेज धूप के बीच निर्माण कार्य में जुटा श्रमिक। फोटो: वर्षा सिंह
उत्तर प्रदेश के लखनऊ में तेज धूप के बीच निर्माण कार्य में जुटा श्रमिक। फोटो: वर्षा सिंह
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अप्रैल की तीखी होती धूप से बचने के लिए सिर पर टोपी पहने भवन निर्माण के कार्य में जुटे नेतराम जानते हैं कि इस बार की गर्मी कुछ ज़्यादा ही कहर बरपाएगी। करीब 16 साल पहले वे अपनी पत्नी सावित्री और छोटे बच्चों के साथ छत्तीसगढ़ के बेमेतरा जिले के सेमरिया गांव से करीब 750 किमी दूर रोजगार की तलाश में लखनऊ आए थे। शुरू में दिहाड़ी मजदूर के रूप में काम शुरू किया। अनुभव बढ़ने के साथ अब वे मिस्त्री बन गए हैं। उनके इस अनुभव में साल दर साल तीखी होती धूप का अहसास भी शामिल है।

केशव नगर में भवन निर्माण के लिए कार्य कर रहे नेतराम की दिहाड़ी 600 रुपए है। पत्नी सावित्री भी उनके साथ ही मजदूरी करती है और 400 रुपए दिहाड़ी पाती हैं। वह बताते हैं कि पति-पत्नी मिलाकर अधिकतम 15-20 हज़ार रुपए महीना कमा पाते हैं। “हमारी कमाई इस पर निर्भर करती है कि हमें महीने में कितने दिन काम मिलता है। किसी महीने अच्छा काम मिला तो वो पैसे तब काम आते हैं जब हमें काम नहीं मिलता या बीमार पड़ने की वजह से काम नहीं कर पाते। कभी-कभार ही 2-4 हज़ार रुपए बचते हैं तो घर भेज देते हैं।”

 नजदीक पड़े ईंटों के ढेर को देखकर नेतराम कहते हैं, "पहले की तुलना में गर्मी अब बहुत ज्यादा होती जा रही है। धूप में काम करने से तबियत बिगड़ती है और काम नहीं कर पाते हैं तो दिहाड़ी का नुकसान होता है। मैंने यूट्यूब पर देखा है कि इस साल बहुत ज़्यादा गर्मी पड़ेगी। लेकिन धूप कितनी भी तेज क्यों न हो, काम तो करना ही है।"

 नेतरात के मुताबिक, “जब धूप बहुत तेज लगती है और बर्दाश्त के बाहर हो जाती है तो 10-15 मिनट छांव में बैठकर आराम कर लेते हैं। सर दर्द, उल्टी, बीमार होना, हमारे लिए ये सब सामान्य बात है। ऐसा होने पर मेडिकल की दुकान से दवा लेते हैं” वह बताते हैं कि सरकारी अस्पताल घर से दूर है और निजी अस्पताल में जाने का मतलब एक दिन की दिहाड़ी डॉक्टर की फीस में चली जाएगी।

रिकॉर्ड तोड़ गर्मी

वर्ष 2024 धरती पर अब तक का सबसे गर्म साल रिकॉर्ड किया गया है। विश्व मौसम विज्ञान संगठन के मुताबिक 2015 से 2024 तक का बीता दशक अब तक का सबसे गर्म दशक रहा।

उत्तर प्रदेश भी जलवायु परिवर्तन के बढ़ते असर को झेल रहा है। मार्च से गर्मी शुरू होती है और अप्रैल आते-आते तापमान 40 डिग्री पार करने लगता है। राज्य के कई हिस्सों में चरम गर्मी में अधिकतम तापमान 46 डिग्री से उपर उठकर असहनीय हो जाता है। 2024 में 49 डिग्री के साथ झांसी राज्य का सबसे तपता जिला बना। प्रयागराज 48.8, आगरा 48.6 और वाराणसी 47.8 डिग्री सेल्सियस के साथ असहनीय लू की चपेट में रहे।

हीटवेव यानी लू चलने वाले दिनों की संख्या भी बढ़ रही है। बीते 4 वर्षों की बात करें तो साल 2024 में राज्य के 34 वेदर स्टेशन पर रिकॉर्ड 436 हीटवेव यानी लू वाले दिन रिकॉर्ड किए गए। जबकि 2023 में 90 दिन, 2022 में 397 दिन, 2021 में 62 दिन रिकॉर्ड किए गए थे। 

क्या है हीटवेव

भारत में मैदानी क्षेत्रों में अधिकतम तापमान 40 डिग्री सेल्सियस या उससे अधिक और पहाड़ी इलाकों में 30 डिग्री या उससे अधिक हो जाता है तो इसे हीटवेव माना जाता है। अगर तापमान सामान्य से 4.5 से 6.4 डिग्री सेल्सियस अधिक हो या अधिकतम तापमान 45 डिग्री सेल्सियस या उससे ऊपर पहुंच जाए तो भी ये हीटवेव की श्रेणी में आता है। वहीं जब तापमान सामान्य से 6.4 डिग्री सेल्सियस से अधिक या 47 डिग्री सेल्सियस या उससे अधिक हो तो इसे गंभीर हीटवेव माना जाता है। मौसम केंद्र पर लगातार दो दिन तक ये स्थितियां बनी रहती हैं तो वहां आधिकारिक रूप से हीटवेव घोषित की जाती है।

 नेतराम पिछले 16 वर्षों से निर्माण श्रमिक हैं। भीषण गर्मी में भी कार्य करना इनकी मजबूरी है।
नेतराम पिछले 16 वर्षों से निर्माण श्रमिक हैं। भीषण गर्मी में भी कार्य करना इनकी मजबूरी है।

 “गर्मी कितनी भी तेज हो, काम तो करना ही है”

नेतराम जैसे असंगठित कार्यबल से जुड़े लाखों लोग जो खुले आसमान में सूरज की धूप का सीधा सामना करते हैं, हीटवेव की सबसे तीखी मार झेलते हैं। भारत में करीब 54 करोड़ के कार्यबल में से लगभग 44 करोड़ लोग असंगठित क्षेत्र से जुड़े हैं। यानी हर दस में से आठ लोग ऐसे कार्यों में लगे हैं जहां न तो सामाजिक सुरक्षा है, न ही स्थायी रोजगार की गारंटी। इनमें खेतों में काम करने वाले लोग, निर्माण कार्य से जुड़े मजदूर, घरेलू सहायक, रेहड़ी-पटरी लगाने वाले और इसी तरह के कई अन्य कामगार शामिल हैं। हीटवेव जैसी चरम मौसमी स्थिति में भी वे काम नहीं छोड़ सकते।

ई-श्रम पोर्टल पर दर्ज असंगठित श्रमिकों के राष्ट्रीय डेटाबेस के मुताबिक देश के हर चार असंगठित श्रमिकों में से एक उत्तर प्रदेश से है।

उत्तर प्रदेश हीट एक्शन प्लान

हीटवेव को आपदा के रूप में अधिसूचित करने वाला देश का पहला राज्य उत्तर प्रदेश है और हर साल हीट एक्शन प्लान जारी करता है।

उत्तर प्रदेश राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण में परियोजना निदेशक अदिति उमराव बताती हैं, "उत्तर प्रदेश में हीटवेव नोटिफाइड डिज़ास्टर है। मौसम से जुड़े भारत मौसम विभाग (आईएमडी) के अलर्ट  हम ‘सचेत’ पोर्टल और मोबाइल मैसेजिंग के जरिए गांव-गांव तक पहुंचाते हैं। हीटवेव की चुनौतियों से निपटने के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता में एक उच्चस्तरीय बैठक हो चुकी है और सभी विभागों को जरूरी निर्देश दिए गए हैं। जलनिगम को टैंकरों से पानी की आपूर्ति, नगर निगम को शेड्स और प्याऊ लगाने,  स्कूलों के समय में बदलाव और अस्पतालों में व्यवस्था सुनिश्चित करने को कहा गया है। पब्लिक ट्रांसपोर्ट में भी पानी की व्यवस्था करने के लिए कहा गया है।” 

अदिति बताती हैं, “श्रम विभाग को सक्रिय किया गया है और श्रमिकों के कार्य के समय में बदलाव किया गया है। सभी विभागों ने अपने-अपने एसओपी तैयार किए हैं और जमीनी स्तर तक कर्मचारियों को सेंसिटाइज किया गया है। साथ ही टीवी, रेडियो और नुक्कड़ नाटकों के जरिये जागरुकता कार्यक्रम भी किए जा रहे हैं।”

कड़ी धूप के बीच खेतों में काम करते कृषि श्रमिक।
कड़ी धूप के बीच खेतों में काम करते कृषि श्रमिक।

 

क्या लोगों तक पहुंच रहा है हीट अलर्ट?

कड़ी धूप में कार्य कर रहे नेतराम और उनके छह अन्य साथी बढ़ती गर्मी की तीव्रता महसूस तो कर रहे हैं, लेकिन इससे जुड़ी कोई चेतावनी या जानकारी उन तक नहीं पहुंचती। “हम अखबार नहीं पढ़ते, कौन हर महीने अखबार का पैसा देगा? हमारे पास टेलीविजन भी नहीं है।”  नेतराम बताते हैं, “मेरे पास एक स्मार्टफोन है। यूट्यूब पर समाचार देखता हूं तो पता चलता है कि गर्मी बढ़ रही है।”

नेतराम के मार्गदर्शन में काम कर रहे युवा श्रमिक जमालुद्दीन, तपती दोपहर में पीठ पर करीब 20 ईंटें लादे हुए दो मंज़िला इमारत पर चढ़ रहे थे। हर ईंट का औसत वजन करीब 2.5 किलो है यानी एक बार में लगभग 50 किलो वजन उठा रहे हैं। धूप, धूल और पसीने से लथपथ जमालुद्दीन अपने साथ प्लास्टिक की एक बोतल में पानी रखते हैं। “अप्रैल की शुरुआत में ही गर्मी से हाल बेहाल है। लेकिन फोन पर कभी कोई मैसेज नहीं आया कि गर्मी से बचने के लिए क्या करना चाहिए। न ही कोई हमसे हमारी सेहत के बारे में पूछता है”, वह कहते हैं।

तीन बच्चों के पिता जमालुद्दीन 12-13 साल की उम्र से मजदूरी कर रहे हैं, वह कहते हैं “गर्मी होगी भी तो क्या करेंगे। हम काम करेंगे तभी बच्चों को खाना खिला पाएंगे।”

गर्मी से बचने के लिए इन मजदूरों ने अपने काम के समय में बदलाव किया है। “दोपहर 1 से 3 बजे तक काम से ब्रेक लेते हैं। मई-जून में सुबह जितना जल्दी हो सके काम शुरू कर देते हैं ताकि दोपहर की तपन से बचा जा सके”। नेतराम कहते हैं, “हम टोपी पहनते हैं, प्याज खाते हैं। धूप से बचाव की हमारी यही व्यवस्था है।”

श्रमिकों की तरह ही किसानों ने भी कार्य के समय में बदलाव किया है ताकि दोपहर की तेज धूप से बचा जा सके। जिले के बक्शी का तालाब क्षेत्र में कृषि श्रमिक बालकराम गेहूं की कटाई में जुटे हैं, “ज्यादा धूप में फ़सल काटूंगा तो बीमार हो जाउंगा। इसलिए सुबह जितना जल्दी संभव हो खेत में पहुंच जाते हैं, 10-11 बजे तक काम कर घर लौट जाते हैं। शाम को फिर खेत में आते हैं”।

वहीं, एक अन्य किसान छोटे बताते हैं कि धूप में देर तक काम करने के चलते उनकी तबियत बिगड़ गई थी। एक दिन आराम करने के बाद फिर वे गेहूं की कटाई के लिए खेतों में आ गए।

कुछ ऐसे भी कामगार वर्ग हैं जो अपनी सहूलियत से कार्य के समय में बदलाव नहीं कर सकते। गिग वर्कर्स इसी श्रेणी में आते हैं। एक शॉपिंग प्लेटफॉर्म के लिए डिलिवरी करने वाले वीरेंद्र कुमार सुबह 9 से शाम 7 बजे तक रोजाना 100 से 120 डिलिवरी करते हैं। वह कहते हैं, “मैं दिन भर धूप में बाइक चलाता हूं। एक डिलिवरी के लिए 14 रुपए मिलते हैं। मेरे मोबाइल पर रोज का तापमान आता है लेकिन हम गर्मी, बारिश या सर्दी देखेंगे तो गुजारा नहीं हो सकता। धूप से बहुत परेशानी हुई तो 10-15 मिनट किसी पेड़ की छांव में रुक जाते हैं”। वह अपना फोन दिखाते हैं, तापमान 37 डिग्री है।

श्रमिक, किसान, गिग वर्कर्स समेत अनौपचारिक क्षेत्र से जुड़े कामगारों का एक बड़ा वर्ग अपने-अपने तरीकों से तीव्र गर्मी से बचने की कोशिश कर रहा है।

इस तीव्र गर्मी से सिर्फ काम का नुकसान नहीं हो रहा बल्कि जान पर भी खतरा है। स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों के मुताबिक अप्रैल से जून के बीच जब तापमान चरम पर होता है, लखनऊ जिले में मौतों का आंकड़ा भी सर्वाधिक होता है।

गर्मी से बचाव के लिए व्यवहार में बदलाव जरूरी

भारत मौसम विज्ञान विभाग के अनुमान के मुताबिक इस साल भी गर्मी कहर ढाएगी। अप्रैल से जून तक देश के ज्यादातर हिस्सों में तापमान सामान्य से अधिक रहेगा। वहीं हीटवेव वाले दिनों की संख्या भी सामान्य से अधिक रहने का अनुमान है। आईएमडी ने अपनी एडवाइजरी में राष्ट्रीय और राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण को हीट एक्शन प्लान लागू करने को कहा है। इनमें सार्वजिनक स्थानों पर कूलिंग सेंटर उपलब्ध कराना, हीट अलर्ट जारी करना और शहरी इलाकों में गर्मी कम करने के उपाय शामिल हैं।

“जलवायु परिवर्तन से जुड़े मामलों में सिर्फ ऐसा डेटा देना काफी नहीं है कि आज तापमान 45 डिग्री पार कर सकता है। हमें इस सूचना के आधार पर लोगों को व्यवहार में बदलाव लाने के लिए प्रोत्साहित करना होगा। यहां बिहेवियर साइंस बहुत अहम है”, सेंटर फॉर सोशल एंड बिहेवियर चेंज (CSBC) की वरिष्ठ सलाहकार पूजा हल्दिया कहती हैं।

वह कहती हैं, “हीट अलर्ट से जुड़े संदेश और इससे बचाव के लिए व्यवहार में बदलाव से जुड़ी जानकारी को आसान और रोचक तरीके से लोगों के बीच पहुंचाना होगा। ताकि लोग इस पर अमल भी करें”।

आईएमडी के पूर्व एडिशनल डायरेक्टर आनंद शर्मा भी लोगों को क्लाइमेट स्मार्ट बनने की सलाह देते हैं,  “ हमें मौसम से जुड़े संदेशों को पढ़ना-देखना और अपनी रोज की दिनचर्या में शामिल करना होगा। आईएमडी तापमान के साथ ये भी बताता है कि धूप में जाने से बचे, हलके सूती कपड़े पहने, सिर ढक कर रहे, पानी पीते रहें”। वह कहते हैं, “ये सुनिश्चित करना होगा कि मौसम की चेतावनी लोगों तक पहुंचे। एफएम कम्यूनिटी रेडियो, सोशल मीडिया इन सबकी इसमें अहम भूमिका है”।

महिला हाउसिंग ट्रस्ट समूह बनाकर हीटवेव की चेतावनियों को समुदाय तक पहुंचा रहा है। जोधपुर की तस्वीर। साभार- एमएचटी
महिला हाउसिंग ट्रस्ट समूह बनाकर हीटवेव की चेतावनियों को समुदाय तक पहुंचा रहा है। जोधपुर की तस्वीर। साभार- एमएचटी

 गुजरात की संस्था महिला हाउसिंग ट्रस्ट अहमदाबाद समेत देश के कई हिस्सों में हीट स्ट्रेस से बचाव के लिए कार्य कर रही है। लखनऊ और वाराणसी इनमें शामिल हैं। संस्था से जुड़ी रचना शाह इस दिशा में जोधपुर में की गई एक पहल साझा करती हैं, “हीटवेव अलर्ट और अर्ली वार्निंग सिस्टम तक नहीं पहुंचते। इसीलिए हमने समुदाय आधारित महिलाओं का समूह बनाकर स्थानीय भाषा में इन संदेशों को लोगों तक पहुंचाया और ये कारगर है”।

ये संस्था लखनऊ के श्रम विहार कोलोनी-2  में श्रमिक समुदाय के घरों में सोलर हीट रिफ्लेक्टिव पेंट जैसी किफायती और टिकाऊ कूलिंग तकनीक मुहैया करा रही है। जिससे घर के भीतर का तापमान 3-5 डिग्री तक कम हो जाता है। जोधपुर में संस्था ने वाटर स्प्रिंकलर, खसखस और वेंटिलेशन के जरिये नेट जीरो कूलिंग स्टेशन का प्रयोग भी किया है जो चरम गर्मी के मौसम में सड़क पर मौजूद लोगों को बड़ी राहत देता है। अहमदाबाद में सबसे बड़े लाल दरवाजा बस स्टॉप को कूल बस स्टॉप में कन्वर्ट किया है।

रचना कहती हैं, “स्वयं सेवी संस्थाओं के साथ मिलकर सरकार इस तरह के प्रयास कर सकती है। हीट स्ट्रेस या ग्लोबल वार्मिंग एक विज्ञान है, जिसे आम  लोगों तक ले जाना, इससे निपटने के लिए उनके साथ मिलकर कार्य करना होगा। हीटस्ट्रेस से बचाव के लिए व्यवहार, संचार और तकनीक, इन तीनों पर एक साथ काम करने की जरूरत है”।

रात को भी राहत नहीं

गर्मियों की धूप तो कड़क होती ही है, रात भी बहुत राहत लेकर नहीं आती।  जिस समय देश में बिजली की मांग बढ़ जाती है, बाज़ार में एयरकंडीशनर और कूलर की किल्लत होने लगती है, नेतराम का परिवार बिना खिड़की वाले किराये के एक छोटे से कमरे में सिर्फ एक टेबल फैन और मच्छरदानी के साथ रात गुजारता है, “गर्मियों में तो बिजली भी बहुत कटती है। मच्छर तो अब सालभर रहते हैं। रात को बेचैनी बढ़ती है तो हम खुले आसमान के नीचे सो जाते हैं।”

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नेतराम जैसे कई लोग जलवायु परिवर्तन की वजह से ऐसे नुकसान उठा रहे हैं, जिनका ठीक-ठीक आकलन कर पाना मुश्किल है लेकिन इसका समाधान तलाशना बेहद जरूरी है।

(This story was produced with the support of the Behavioural Journalism Fellowship offered by the Atlas of Behaviour Change in Development.)

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