बदलती जलवायु: उत्तरी गोलार्ध में 2100 तक हरियाली दर में हो सकता है 2.25 गुना इजाफा

अध्ययन की अहम जानकारियां पारिस्थितिकी तंत्र प्रबंधन, संरक्षण प्रयासों और जलवायु अनुकूलन रणनीतियों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण हैं
पारिस्थितिकी तंत्र में पहले उत्पादक के रूप में, वनस्पति न केवल भोजन और फाइबर जैसी जरूरी पारिस्थितिकी तंत्र सेवाएं प्रदान करती है, बल्कि स्थलीय जल, कार्बन और ऊर्जा चक्रों में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
पारिस्थितिकी तंत्र में पहले उत्पादक के रूप में, वनस्पति न केवल भोजन और फाइबर जैसी जरूरी पारिस्थितिकी तंत्र सेवाएं प्रदान करती है, बल्कि स्थलीय जल, कार्बन और ऊर्जा चक्रों में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। फोटो साभार: आईस्टॉक
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उत्तरी गोलार्ध में 2100 तक हरियाली की दर में 2.25 गुना तक इजाफा हो सकता है। यह अनुमान ग्लोबल चेंज बायोलॉजी पत्रिका में हाल ही में प्रकाशित एक अध्ययन में लगाया गया है। इस अध्ययन में कहा गया है कि कार्बन डाइऑक्साइड के बढ़ते स्तर, तापमान में वृद्धि और उत्तरी क्षेत्रों में बर्फ व पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने जैसे कारणों से वहां की भूमि हरियाली की नई परत ओढ़ सकती है।

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पारिस्थितिकी तंत्र में पहले उत्पादक के रूप में, वनस्पति न केवल भोजन और फाइबर जैसी जरूरी पारिस्थितिकी तंत्र सेवाएं प्रदान करती है, बल्कि स्थलीय जल, कार्बन और ऊर्जा चक्रों में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

अध्ययन के मुताबिक, वैज्ञानिकों ने वनस्पति वृद्धि के भविष्य के अनुमान लगाने के लिए एक उन्नत मॉडल फ्रेमवर्क विकसित किया है, जिसका नाम जीजीएमएओसी (ग्रिड-बाय-ग्रिड, मल्टी-एल्गोरिदम, ऑप्टिमल-कॉम्बिनेशन) रखा गया है।

इस मॉडल में छह अलग-अलग मशीन लर्निंग तकनीकों (जैसे लाइनियर मॉडल, सपोर्ट वेक्टर रिग्रेशन, रैंडम फॉरेस्ट, कन्वोल्यूशनल न्यूरल नेटवर्क, एलएसटीएम और ट्रांसफॉर्मर) का संयोजन किया गया है। इसके साथ ही तापमान, वर्षा, मृदा नमी, वाष्पोत्सर्जन और वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड जैसे पांच प्रमुख जलवायु कारकों को ध्यान में रखा गया है।

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पारिस्थितिकी तंत्र में पहले उत्पादक के रूप में, वनस्पति न केवल भोजन और फाइबर जैसी जरूरी पारिस्थितिकी तंत्र सेवाएं प्रदान करती है, बल्कि स्थलीय जल, कार्बन और ऊर्जा चक्रों में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

वैज्ञानिकों ने कहा कि इस मॉडल के जरिए 60 डिग्री से 90 डिग्री उत्तर अक्षांश वाले क्षेत्रों में पत्तियों के क्षेत्रफल सूचकांक (लीफ एरिया इंडेक्स ) में 1982 से 2014 की तुलना में इस सदी के अंत तक औसतन 2.25 गुना तक वृद्धि हो सकती है। यह इंडेक्स उस क्षेत्रफल का संकेतक है, जो पौधों की पत्तियां जमीन के प्रति वर्ग मीटर पर ढकती हैं। यह पारिस्थितिकीय स्वास्थ्य, कार्बन अवशोषण क्षमता और जलवायु संतुलन का अहम संकेतक माना जाता है।

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पारिस्थितिकी तंत्र में पहले उत्पादक के रूप में, वनस्पति न केवल भोजन और फाइबर जैसी जरूरी पारिस्थितिकी तंत्र सेवाएं प्रदान करती है, बल्कि स्थलीय जल, कार्बन और ऊर्जा चक्रों में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

यह वृद्धि उन सभी जलवायु परिदृश्यों (SSP126 से SSP585) में अनुमानित की गई है, जिन पर भविष्य की जलवायु नीतियों और कार्बन उत्सर्जन का असर होगा। अध्ययन में पाया गया कि रैंडम फॉरेस्ट तकनीक ने वैश्विक और उत्तरी गोलार्धीय दोनों स्तरों पर सबसे सटीक भविष्यवाणी की।

वैज्ञानिकों ने चेताया कि हालांकि यह हरियाली बढ़ना पहली नजर में सकारात्मक प्रतीत होता है, लेकिन इसके साथ अनेक पारिस्थितिक चुनौतियां भी जुड़ी होंगी। पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने से बड़ी मात्रा में ग्रीनहाउस गैसें निकल सकती हैं, जिससे जलवायु संकट और गहरा सकता है। साथ ही, नई वनस्पतियों का आना वहां की मौजूदा पारिस्थितिकी को बिगाड़ सकता है और आगजनी जैसी प्राकृतिक आपदाओं का खतरा बढ़ सकता है।

यह अध्ययन जलवायु परिवर्तन के जटिल प्रभावों की ओर इशारा करता है, जहां एक ओर हरियाली बढ़ने जैसे बदलाव कुछ क्षेत्रों में पर्यावरण के लिए राहत की तरह दिख सकते हैं, वहीं दूसरी ओर ये बदलाव पूरी पृथ्वी के पारिस्थितिक संतुलन को अस्थिर कर सकते हैं। वैज्ञानिकों ने नीति निर्माताओं से आग्रह किया है कि वे इन संभावित बदलावों को ध्यान में रखते हुए दीर्घकालिक पर्यावरणीय रणनीतियां तैयार करें।

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