बदलती जलवायु के कारण खेती लायक नहीं रह जाएगी जमीन, जंगलों पर और बढ़ेगा दबाव व लकड़ी का भी होगा अभाव

एक ताजा अध्ययन में कहा गया है कि दुनिया में मौजूद वन भूमि का एक चौथाई से अधिक, लगभग 32 करोड़ हेक्टेयर, जो भारत के आकार के बराबर है, सदी के अंत तक खेती के लिए उपयोग किया जाएगा
दुनिया भर में जलवायु परिवर्तन उन इलाकों को बदल रहा है जो फसल उगाने के लिए उपयुक्त हैं।
दुनिया भर में जलवायु परिवर्तन उन इलाकों को बदल रहा है जो फसल उगाने के लिए उपयुक्त हैं।फोटो साभार: आईस्टॉक
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एक नए अध्ययन में पाया गया है कि जलवायु परिवर्तन के कारण फसल और पेड़ उगाने के लिए उपयुक्त भूमि कम हो जाएगी, जिससे इन दो अहम संसाधनों के उत्पादन में सीधी प्रतिस्पर्धा शुरू हो जाएगी।

दुनिया भर में जलवायु परिवर्तन उन इलाकों को बदल रहा है जो फसल उगाने के लिए उपयुक्त हैं। इसी बीच, कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने एक गंभीर समस्या का पता लगाया है, उन्होंने पाया कि जैसे-जैसे फसलों के उत्पादन के लिए भूमि का उपयोग बदला जाजा रहा है, वैसे-वैसे पेड़ उगाने के लिए जरूरी जमीन कम हो रही है। ये पेड़ जिनसे लकड़ी हासिल की जाती है, इनका हमारे जीवन में अहम भूमिका है। कागज, कार्डबोर्ड से लेकर फर्नीचर और इमारतों तक में इसका इस्तेमाल किया जाता है।

शोधकर्ताओं का कहना है कि जलवायु परिवर्तन के कारण लकड़ी के उत्पादन और फसलों के उत्पादन के लिए भूमि के बीच बढ़ती प्रतिस्पर्धा को अब तक नजरअंदाज किया गया, लेकिन यह एक उभरता हुआ मुद्दा बनने जा रहा है क्योंकि दोनों के लिए हमारी मांग लगातार बढ़ रही है।

अध्ययन में पाया गया कि मौजूदा वन भूमि का एक चौथाई से अधिक, लगभग 32 करोड़ हेक्टेयर, जो भारत के आकार के बराबर है, सदी के अंत तक खेती के लिए उपयोग किया जाएगा।

लकड़ी प्रदान करने वाले अधिकतर पेड़ वर्तमान में उत्तरी गोलार्ध में अमेरिका, कनाडा, चीन और रूस में स्थित हैं। अध्ययन में पाया गया कि 2100 तक मौजूदा जंगल वाली भूमि का 90 फीसदी हिस्से पर खेती की जाएगी और ये भूमि इन चार देशों में होगी।

विशेष कर रूस में लकड़ी का उत्पादन करने वाली दसियों लाख हेक्टेयर भूमि कृषि के लिए उपयोग की जाएगी, जो कि अमेरिका, कनाडा और चीन की कुल भूमि से भी अधिक है। यहां आलू, सोया और गेहूं की खेती की जाएगी।

शोध में इस बात का अनुमान लगाया गया है कि बढ़ती जनसंख्या के कारण साल 2050 तक दुनिया भर में भोजन की मांग दोगुनी हो जाएगी। दुनिया भर में लकड़ी की मांग भी उसी समय सीमा में दोगुनी होने का अनुमान है। क्योंकि लकड़ी निर्माण के लिए कंक्रीट और स्टील का कम कार्बन वाला विकल्प है।

लकड़ी के उत्पादन को बोरियल या उष्णकटिबंधीय जंगलों में स्थानांतरित करना सही विकल्प नहीं है, क्योंकि उन इलाकों में पेड़ हजारों सालों से अछूते हैं और उन्हें काटने से भारी मात्रा में कार्बन निकलेगी जिससे जैव विविधता को खतरा होगा

शोधकर्ताओं ने दुनिया भर में गहन वानिकी को दर्शाने वाले उपग्रह के आंकड़ों का उपयोग किया और इसे विभिन्न जलवायु परिवर्तन परिदृश्यों के तहत भविष्य में धान, गेहूं, मक्का, सोया और आलू सहित दुनिया की प्रमुख फसलों के लिए उपयुक्त खेती लायक जमीन के पूर्वानुमानों के साथ जोड़ा।

शोधकर्ताओं ने शोध के हवाले से कहा, सबसे अच्छी स्थिति में भी, जहां दुनिया नेट जीरो लक्ष्य को पूरा करती है, लकड़ी और फसल उत्पादन के लिए उपयुक्त इलाकों में भविष्य में भारी बदलाव होंगे।

दुनिया भर में लकड़ी का उत्पादन राष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाओं में हर साल 1.5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक का योगदान देता है। हीटवेव और उससे जुड़ी जंगल की आग ने हाल ही में दुनिया भर में जंगलों को भारी नुकसान पहुंचाया है। जलवायु परिवर्तन बार्क बीटल जैसे कीटों के प्रसार को भी बढ़ावा दे रहा है, जो पेड़ों पर हमला करते हैं।

नेचर क्लाइमेट चेंज नामक पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन के कारण उष्णकटिबंधीय क्षेत्र बहुत गर्म और फसलों के उत्पादन के लिए अनुपयुक्त हो जाएंगे और दक्षिणी यूरोप के बड़े इलाके फसलों और लकड़ी उत्पादन के लिए बहुत कम उपयुक्त होंगे।

शोधकर्ता ने शोध में कहा, जलवायु परिवर्तन पहले से ही लकड़ी उत्पादन के लिए चुनौतियां पैदा कर रहा है। अब इसके अलावा कृषि से भी दबाव बढ़ेगा, जिससे समस्याओं का एक बड़ा तूफान पैदा होगा।

शोधकर्ता ने शोध के हवाले से अपने निष्कर्ष में कहा, भविष्य में लकड़ी की आपूर्ति को सुरक्षित करना उतना जरूरी नहीं है, जितना कि भोजन को सुरक्षित करना, जो हमें खाने और जीवित रहने के लिए आवश्यक है। लेकिन लकड़ी हमारे रोजमर्रा जीवन का अभिन्न अंग है और हमें भविष्य में भोजन और लकड़ी दोनों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए रणनीति विकसित करने की जरूरत है।

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