संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि पिछले 20 वर्षों (2000-2019) से हो रही प्राकृतिक आपदाओं के लिए बहुत हद तक जलवायु परिवर्तन जिम्मेदार है। यूनाइटेड नेशंस ऑफिस फॉर डिजास्टर रिस्क रिडक्शन के अनुसार पिछले दो दशकों के दौरान दुनिया भर में 7,348 प्रमुख आपदाओं की घटनाएं हुईं। इन घटनाओं में लगभग 12.3 लाख (1.23 मिलियन) लोग मारे गए, 420 करोड़ लोग प्रभावित हुए और वैश्विक अर्थव्यवस्था को लगभग 2.97 ट्रिलियन डॉलर का आर्थिक नुकसान हुआ। इसमें एशियाई देश सर्वाधिक प्रभावित हुए।
आंकड़ों के मुताबिक एशिया में 2000-2019 के दर्मियान 3,068 सबसे अधिक आपदा की घटनाएं हुई, इसके बाद अमेरिका में 1,756 और फिर अफ्रीका में 1,192 घटनाएं हुई हैं। वहीं, 1980 से 1999 के मुकाबले सबसे अधिक आपदा की घटनाएं साल 2000 से लेकर 2019 तक दर्ज की गईं। अगर प्रभावित देशों के हिसाब से देखें तो आंकड़ों के मुताबिक चीन कुल 577 घटनाओं के साथ शीर्ष पर है, अमेरिका दूसरे स्थान पर रहा जहां 467 घटनाएं हुई, इसके बाद भारत में 321, फिलीपींस में 304 और इंडोनेशिया में 278 आपदा से जुड़ी घटनाएं दर्ज की गईं।
यूनाइटेड नेशंस ऑफिस "द ह्यूमन कॉस्ट ऑफ डिजास्टर्स 2000-2019" नामक एक नई रिपोर्ट में कहा गया कि 1980 से 1999 के दर्मियान 4,212 प्राकृतिक खतरों से 11.9 लाख (1.19 मिलियन) लोगों की मृत्यु हुई थी, जिसमें 300 करोड़ (तीन बिलियन) से अधिक लोग प्रभावित हुए और 1.63 ट्रिलियन डॉलर का आर्थिक नुकसान हुआ था।
रिपोर्ट में कहा गया है कि 2019 में वैश्विक औसत तापमान पूर्व-औद्योगिक अवधि के मुकाबले 1.1 डिग्री सेल्सियस अधिक था। बढ़ता तापमान जलवायु संबंधी आपदाओं में वृद्धि के लिए जिम्मेदार है, जिसमें बाढ़, सूखा, तूफान और जंगल की आग सहित चरम मौसम की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। साथ ही अत्यधिक गर्मी विशेष रूप से घातक साबित हो रही है।
यूनाइटेड नेशंस ऑफिस फॉर डिजास्टर रिस्क रिडक्शन (यूएनडीआरआर) प्रमुख मामी मिजुतोरी ने दुनिया भर की सरकारों पर जलवायु खतरों को रोकने के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठाने का आरोप लगाया और आपदाओं को कम करने के लिए बेहतर तैयारी का आह्वान किया। उन्होंने कहा जब हम वैज्ञानिकों द्वारा सुझाए गए उपायों पर कार्रवाई करने में विफल होते हैं, जब वैज्ञानिकों द्वारा जलवायु परिवर्तन अनुकूलन और आपदा जोखिम में कमी के लिए शुरुआती चेतावनियां दी जाती हैं, तो हम कुछ नहीं करते है और यह हमारे खिलाफ आपदा बनकर खड़ी हो जाती है।
मिजुतोरी ने कहा इस सचाई के बावजूद कि पिछले 20 वर्षों में चरम मौसम की घटनाएं इतनी नियमित हो गई हैं, तब भी केवल 93 देशों ने राष्ट्रीय स्तर पर आपदा जोखिम रणनीतियों को साल के अंत से पहले लागू किया है।
रिपोर्ट में कोरोनोवायरस महामारी जैसी जैविक खतरों और बीमारी से संबंधित आपदाओं को नहीं छुआ गया है, जिसने पिछले नौ महीनों में लाखों लोगों की जान ले ली है और करोड़ों लोग संक्रमित हुए हैं।
रिपोर्ट में बताया गया है कि सदी के अंत तक 6,681 जलवायु से जुड़ी घटनाओं को दर्ज किया गया था। जबकि बाढ़ की प्रमुख घटनाएं दोगुनी से अधिक 3,254 थी, 2,034 बड़े तूफान आए पूर्व की अवधि में जिनकी संख्या 1,457 थी।
मिजुतोरी ने कहा कि सार्वजनिक स्वास्थ्य अधिकारी और बचाव कर्मचारी "चरम मौसम की बढ़ती घटनाओं के खिलाफ एक कठिन लड़ाई लड़ रहे हैं। जबकि बेहतर तैयारी और शुरुआती चेतावनी प्रणालियों ने कई प्राकृतिक आपदाओं में मौतों की संख्या को कम करने में मदद की, फिर भी जलवायु आपातकाल से काफी लोग प्रभावित हो रहे हैं।
शोधकर्ताओं ने जोर देकर कहा कि जलवायु संबंधी आपात स्थितियों में वृद्धि के कारण बाढ़ से संबंधित आपदाओं में 40 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई है। तूफान के कारण 28 प्रतिशत, भूकंप 8 प्रतिशत और अत्यधिक तापमान से 6 प्रतिशत लोग प्रभावित हुए हैं।
पिछले 20 वर्षों में सबसे घातक आपदा 2004 में हिंद महासागर की सुनामी थी, जिसमें 226,400 मौतें हुईं, इसके बाद 2010 में हैती में आए भूकंप जिसमें 222,000 लोगों की जान चली गई थी।
जबकि एक गर्म होती जलवायु इस तरह की आपदाओं की संख्या और गंभीरता को बढ़ाती हुई दिखाई दे रही है, वहीं भूकंप और सुनामी जैसी भूभौतिकीय घटनाओं में भी वृद्धि हुई है जो जलवायु से संबंधित नहीं हैं लेकिन घातक हैं।