एक नई रिसर्च के हवाले से पता चला है कि जलवायु में आते बदलावों के चलते 80 के दशक से शक्तिशाली उष्णकटिबंधीय चक्रवात हर दशक तीन से चार दिन पहले आ रहे हैं। गौरतलब है कि यह चक्रवात बेहद शक्तिशाली यानी श्रेणी 4 और 5 के होते हैं, जिनके दौरान हवाओं की गति 131 मील प्रति घंटा या उससे ज्यादा रहती है।
यह रिसर्च हवाई विश्वविद्यालय, साउथर्न यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी, ओशियन यूनिवर्सिटी ऑफ चाइना और सिंघुआ विश्वविद्यालय, चीन के शोधकर्ताओं द्वारा की गई है, जिसके नतीजे अंतराष्ट्रीय जर्नल नेचर में प्रकाशित हुए हैं।
इस बारे में यूनिवर्सिटी ऑफ हवाई के स्कूल ऑफ ओशियन एंड अर्थ साइंस एंड टेक्नोलॉजी में एटमोस्फियरिक साइंस के प्रोफेसर पाओ-शिन चू का कहना है कि, "जब शक्तिशाली उष्णकटिबंधीय चक्रवात सामान्य से पहले आते हैं, तो वे लोगों और समुदायों के लिए अप्रत्याशित समस्याएं पैदा कर देते हैं।"
इसके साथ ही उनके मुताबिक समय से पहले आने वाले ये तूफान स्थानीय थंडरस्टॉर्म या ग्रीष्मकालीन मानसूनी बारिश जैसी अन्य मौसम प्रणालियों के साथ ओवरलैप हो सकते हैं, जिससे अतिरिक्त चरम घटनाएं पैदा हो सकती हैं और आपातकालीन प्रयासों पर दबाव बढ़ सकता है। गौरतलब है कि बढ़ते तापमान में इन शक्तिशाली तूफानों में आने वाले बदलावों जैसे उनकी संख्या, तीव्रता और जीवनकाल पर काफी सारे अध्ययन किए गए हैं। लेकिन अभी भी इन शक्तिशाली घटनाओं के मौसमी चक्र में आने वाले बदलावों के बारे में बहुत कम जानकारी उपलब्ध है।
मूसलाधार बारिश, बाढ़, विनाशकारी हवाओं और तटीय तूफान के कारण शक्तिशाली उष्णकटिबंधीय चक्रवातों को दुनिया में सबसे विनाशकारी प्राकृतिक आपदाओं में से एक माना जाता है। इन तूफानों के चलते हर साल औसतन करीब 15 करोड़ लोगों के जीवन पर खतरा मंडराता रहता है।
हर दिन औसतन 43 लोगों की जान ले रहे हैं उष्णकटिबंधीय चक्रवात
विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) के अनुसार पिछले 50 वर्षों में आई विनाशकारी आपदाओं में 1,942 उष्णकटिबंधीय चक्रवातों से जुड़ी थी। इन चक्रवातों ने अब तक 779,324 लोगों की जान ली है, जबकि 1.4 लाख करोड़ डॉलर से ज्यादा का आर्थिक नुकसान पहुंचाया है। देखा जाए तो यह चक्रवात हर दिन औसतन 43 लोगों की जान ले रहें हैं और 7.8 करोड़ अमेरिकी डॉलर का नुकसान पहुंचा रहे हैं।
वहीं हाल ही में किए एक शोध से पता चला है कि आने वाले दशकों में जिस तरह से आबादी और वैश्विक तापमान में वृद्धि हो रही है, उसके कारण पहले की तुलना में कहीं ज्यादा लोगों को इन तूफानों का सामना करना पड़ सकता है।
अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने उपग्रहों से प्राप्त आंकड़ों, पहले आ चुके चक्रवातों के बारे में प्राप्त जानकारी और एनओएए के बारिश के आंकड़ों का सांख्यिकीय विश्लेषण किया है, जिसमें इन शक्तिशाली उष्णकटिबंधीय चक्रवातों के पैटर्न में एक उल्लेखनीय बदलाव सामने आया है।
नतीजे दर्शाते हैं कि 80 के दशक के बाद से, अधिकांश उष्णकटिबंधीय महासागरों में ये चक्रवात शरद ऋतु से गर्मियों के महीनों की ओर खिसक गए हैं। यह बदलाव विशेष रूप से मेक्सिको के पूर्वी उत्तरी प्रशांत, पश्चिमी उत्तरी प्रशांत, दक्षिण प्रशांत, मैक्सिको की खाड़ी और फ्लोरिडा के साथ कैरेबियन के अटलांटिक तट जैसे क्षेत्रों में विशेष रूप से स्पष्ट है।
17 मई, 2021 को भारत के पश्चिमी तट, गुजरात की ओर बढ़ते चक्रवाती तूफान 'तौकते' का 3डी चित्रण; फोटो: आईस्टॉक
हाई -रिजॉल्यूशन के वैश्विक जलवायु मॉडल के सिमुलेशन से पता चला है कि महासागरों में गर्म परिस्थितियां जल्द उभर रही हैं, जो शक्तिशाली उष्णकटिबंधीय चक्रवातों के पहले बनने के लिए अनुकूल हैं। इसके अलावा, उन्होंने पाया है कि महासागर का गर्म होना मुख्य रूप से ग्रीनहाउस गैसों के बढ़ते दबाव के कारण था। चू का इस बारे में कहना है कि, "यदि भविष्य में कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन तेजी से बढ़ता रहा तो समय से पहले होने वाले इन बदलावों की प्रवृत्ति और अधिक स्पष्ट होने की उम्मीद है।"
रिसर्च के अनुसार दक्षिणी चीन और मैक्सिको की खाड़ी में, शक्तिशाली उष्णकटिबंधीय चक्रवातों का समय से पहले आना भारी बारिश की शुरुआत में भी महत्वपूर्ण रूप से योगदान दे रहा है।
रिपोर्ट भी इस बात की पुष्टि करती हैं कि यह तूफान दुनिया की सबसे महंगी प्राकृतिक आपदाओं में से एक हैं जो जनजीवन के साथ-साथ आर्थिक रूप से भारी नुकसान पहुंचा रहे हैं। उष्णकटिबंधीय चक्रवातों को लेकर जर्नल नेचर में प्रकाशित एक अन्य शोध का कहना है कि यदि 2050 तक उत्सर्जन को रोकने पर विशेष ध्यान न दिया गया तो तापमान में होती वृद्धि दो डिग्री सेल्सियस के करीब पहुंच जाएगी, जिसके चलते लोगों के इन विनाशकारी तूफानों की जद में आने का खतरा करीब 41 फीसदी बढ़ जाएगा।
ब्रिस्टल विश्वविद्यालय से जुड़े वैज्ञानिकों के मुताबिक भविष्य में यह सुपर साइक्लोन दक्षिण एशिया के लिए कहीं ज्यादा घातक सिद्ध होंगें। सदी के अंत तक तूफान ‘अम्फान’ जितने शक्तिशाली चक्रवाती तूफानों से होने वाला नुकसान पहले के मुकाबले 250 फीसदी बढ़ जाएगा।
बता दें कि चक्रवाती तूफान 'अम्फान' और उसके कारण आई बाढ़ 2020 में दुनिया की 10 सबसे महंगी आपदाओं में से एक थी। इसके चलते करीब 1.70 लाख करोड़ रुपए का नुकसान हुआ था। तूफान 'अम्फान' बंगाल की खाड़ी में आए अब तक के सबसे शक्तिशाली तूफानों में से एक था, जिसकी वजह से 128 लोगों की जान गई थी, वहीं करीब 49 लाख लोगों को अपना घर छोड़ना पड़ा था। इतना ही नहीं इस आपदा की वजह से हजारों मवेशी मारे गए थे और अनगिनत इमारतें क्षतिग्रस्त हो गई थी।
स्टेट ऑफ वर्ल्ड क्लाइमेट-2020 के अनुसार, 20 मई 2020 को पूर्वी बंगाल में भारत-बांग्लादेश सीमा के नजदीक तट से टकराने वाला चक्रवात अम्फान उत्तरी हिंद महासागर में दर्ज सबसे महंगा उष्णकटिबंधीय चक्रवात था। इसने भारत को 1,400 करोड़ डॉलर का आर्थिक नुकसान पहुंचाया था। इसी तरह 2020 में और 2019 में बंगाल की खाड़ी में उठे गंभीर चक्रवातों ने पूर्वी तटों पर भारी तबाही मचाई थी।
बढ़ते तापमान के साथ बढ़ रहा है खतरा
शोधकर्ताओं का मानना है कि यदि उत्सर्जन में होती वृद्धि इसी तरह जारी रहती है तो उसके कारण शक्तिशाली चक्रवातों और भीषण बाढ़ का भारत और बांग्लादेश पर मंडराता खतरा 200 फीसदी तक बढ़ जाएगा। भारत सरकार ने भी माना है कि पिछले कुछ वर्षों में चक्रवातों की संख्या और भारी एवं भीषण बारिश की घटनाओं में वृद्धि हुई है, जिसके लिए कहीं हद तक तापमान में हो रही वृद्धि जिम्मेवार है।
जर्नल साइंस एडवांसेज में प्रकाशित एक अन्य अध्ययन ने भी इस बात की पुष्टि की है कि बढ़ते उत्सर्जन और तापमान के चलते उष्णकटिबंधीय चक्रवात पहले से कहीं ज्यादा शक्तिशाली और विनाशकारी हो जाएंगें। इसका प्रभाव हिन्द महासागर और प्रशांत क्षेत्रों में आने वाले चक्रवातों पर भी पड़ेगा।
वहीं एक अन्य अध्ययन से पता चला है कि यदि सदी के अंत तक बढ़ता तापमान दो डिग्री सेल्सियस की सीमा को पार कर जाता है तो चक्रवाती तूफान में हवा की अधिकतम गति पांच फीसदी तक बढ़ सकती है।
जर्नल नेचर जियोसाइंस में प्रकाशित शोध के मुताबिक उष्णकटिबंधीय चक्रवात अपने संबंधित गोलार्धों में उत्तर और दक्षिण की ओर पलायन कर सकते हैं, जिससे 21वीं सदी में यह पहले से कहीं ज्यादा क्षेत्रों को अपनी जद में ले लेंगे।
वैज्ञानिकों के मुताबिक सितम्बर 2020 में आया उपोष्णकटिबंधीय तूफान ‘अल्फा’ ऐसा ही एक उदाहरण था। यह पहला उष्णकटिबंधीय चक्रवात था, जो पुर्तगाल से टकराया था। वहीं इस साल तूफान ‘हेनरी’ भी ऐसा ही तूफान था, जिसने कनेक्टिकट को अपना निशाना बनाया था।
अब सवाल यह है कि बढ़ते तापमान के साथ इन चक्रवातों की तीव्रता और संख्या में वृद्धि कैसे हो रही है? देखा जाए तो वैश्विक तापमान में वृद्धि के चलते जिस तरह से समुद्र की सतह लगातार गर्म हो रही है। इसकी वजह से वाष्पीकरण की दर भी बढ़ गई है। वाष्पीकरण के बढ़ने से वातावरण में नमी की मात्रा लगातार बढ़ रही है। यह नमी ही है जो हवा के घुमाव को जबरदस्त चक्रवात में तब्दील कर देती है। चक्रवात के बनने की बुनियादी बात यही है।
1970 के बाद से पूरी दुनिया में समुद्री सतह के तापमान में औसतन हर दशक 0.1 डिग्री सेल्सियस की दर से वृद्धि हो रही है। इसकी वजह से समुद्र एक गहरी गर्म खाई के रूप में तब्दील हो गया है। गर्म हवाएं वाष्पीकरण की प्रक्रिया में ज्यादा पानी अपने साथ लेती हैं और यही चक्रवातों के लिए अतिरक्त ईंधन का काम करता है।