पारिस्थितिकी तंत्र से होने वाले फायदों में साल 2100 तक 9 फीसदी की गिरावट आने के आसार

शोध में पाया गया कि दुनिया के सबसे गरीब 50 फीसदी देशों और क्षेत्रों को सकल घरेलू उत्पाद का 90 फीसदी तक नुकसान उठाना पड़ सकता है।
फोटो साभार: विकिमीडिया कॉमन्स, वसीगमंड
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जलवायु में बदलाव से दुनिया भर में स्थलीय पारिस्थितिकी प्रणालियों पर भारी असर पड़ रहा है, इसके कारण दुनिया भर में प्राकृतिक तौर पर होने वाले फायदों में कमी आने के आसार जताए गए हैं। जिससे साल 2100 तक पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं में नौ फीसदी तक नुकसान होने की आशंका जताई गई है। यह कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, डेविस और यूसी सैन डिएगो में स्क्रिप्स इंस्टीट्यूशन ऑफ ओशनोग्राफी के वैज्ञानिकों के नेतृत्व में किए गए एक शोध का चिंताजनक खुलासा है।

शोध के मुताबिक, सांस लेने योग्य हवा, साफ पानी, स्वस्थ जंगल और जैव विविधता सभी लोगों की भलाई में ऐसे तरीकों से योगदान करते हैं जिन्हें मापना बहुत मुश्किल होता है। प्राकृतिक पूंजी वह अवधारणा है जिसका उपयोग वैज्ञानिक, अर्थशास्त्री और नीति निर्माता दुनिया के प्राकृतिक संसाधनों से लोगों को होने वाले फायदों की बात करते हैं।

मुख्य शोधकर्ता बर्नार्डो बास्टियन-ओलवेरा ने कहा बड़ा सवाल यह है कि जब हम एक पारिस्थितिकी तंत्र को खो देते हैं तो हम क्या-क्या खोते हैं?, अगर हम जलवायु परिवर्तन को सीमित करने और प्राकृतिक प्रणालियों पर इसके कुछ प्रभावों से बचने में सक्षम हैं तो हमें क्या हासिल होगा?

यह शोध हमें उन नुकसानों पर बेहतर विचार करने में मदद करता है जिनकी आमतौर पर गणना नहीं की जाती है। यह जलवायु के एक नजरअंदाज की गई, फिर भी चौंकाने वाले आयाम का भी खुलासा करता है। प्राकृतिक प्रणालियों में होने वाले बदलावों का प्रभाव वैश्विक आर्थिक असमानता को बढ़ा सकता है।

भारी असमानताएं

नेचर नामक पत्रिका में प्रकाशित शोध में कहा गया है, जब देश प्राकृतिक पूंजी खो देते हैं, तो उनकी अर्थव्यवस्था प्रभावित होती है। अध्ययन में पाया गया कि 2100 तक, जलवायु परिवर्तन के कारण वनस्पति, बारिश के पैटर्न और सीओ 2 में भारी बदलाव के कारण विश्लेषण किए गए सभी देशों के सकल घरेलू उत्पाद या जीडीपी में औसतन 1.3 फीसदी की कमी आई। इस कारण इनसे पड़ने वाले प्रभावों में गहरी असमानताएं पाई गई।

बैस्टियन-ओलवेरा ने कहा, शोध में पाया गया कि दुनिया के सबसे गरीब 50 फीसदी देशों और क्षेत्रों को सकल घरेलू उत्पाद का 90 फीसदी तक नुकसान उठाना पड़ सकता है। इसके ठीक विपरीत, सबसे धनी 10 फीसदी का नुकसान केवल दो फीसदी तक सीमित हो सकता है।

अध्ययनकर्ताओं ने कहा कि इसका मुख्य कारण कम आय वाले देश अपने आर्थिक उत्पादन के लिए प्राकृतिक संसाधनों पर अधिक निर्भर रहते हैं और उनकी संपत्ति का एक बड़ा हिस्सा प्राकृतिक पूंजी के रूप में है।

प्राकृतिक और आर्थिक मूल्य

अध्ययन के लिए, अध्ययनकर्ताओं ने देशों की पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं, आर्थिक उत्पादन और प्राकृतिक पूंजी स्टॉक पर जलवायु परिवर्तन प्रभावों का अनुमान लगाने के लिए वैश्विक वनस्पति मॉडल, जलवायु मॉडल और प्राकृतिक पूंजी मूल्यों के विश्व बैंक के अनुमानों का उपयोग किया।

इन अनुमानों में बदलाव हो सकता है, क्योंकि विश्लेषण में केवल भूमि-आधारित प्रणालियां, मुख्य रूप से जंगलों और घास के मैदानों पर विचार किया गया है। बैस्टियन-ओलवेरा ने भविष्य के शोध में समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र के प्रभावों से निपटने की योजना बनाई है। अध्ययन में जंगल की आग या कीटों से पौधों को होने वाला नुकसान जैसी गड़बड़ी को भी शामिल नहीं किया गया।

प्रकृति का लेखा-जोखा

समग्र निष्कर्ष जलवायु नीतियों को बनाने के महत्व को उजागर करते हैं जो हर देश को अपनी प्राकृतिक प्रणालियों से हासिल होने वाले विशेष मूल्यों को ध्यान में रखते हैं।

यूसी डेविस पर्यावरण विज्ञान और नीति विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर, फ्रांसिस सी. मूर ने कहा इस अध्ययन के साथ, हम प्राकृतिक प्रणालियों और मानव कल्याण को एक आर्थिक ढांचे में शामिल कर रहे हैं। हमारी अर्थव्यवस्था और खुशहाली इन प्रणालियों पर निर्भर करती है और जब हम बदलती जलवायु की कीमत पर विचार करते हैं तो हमें इन अनदेखे नुकसानों की पहचान करनी चाहिए और उनका हिसाब देना चाहिए।

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