जलवायु परिवर्तन के चलते भारत, चीन, श्रीलंका और केन्या में पड़ेगा चाय के उत्पादन और स्वाद पर असर

यदि वैश्विक ताप में हो रही वृद्धि जारी रहती है तो उसका असर उत्पादन के साथ-साथ चाय के स्वाद और स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद गुणों पर भी पड़ेगा
असम में चाय बागान में काम करती महिला, फोटो: लिंडा डी वोल्डर
असम में चाय बागान में काम करती महिला, फोटो: लिंडा डी वोल्डर
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चाय एक ऐसा पेय है जिसे न केवल भारत बल्कि सारी दुनिया में बड़े चाव के साथ पिया जाता है। दुनिया में पानी के बाद यह दूसरा पेय है जिसे सबसे ज्यादा पिया जाता है। पर इसके करोड़ों शौकीनों के लिए एक बुरी खबर यह है कि जलवायु में आ रहे बदलावों के चलते भारत, चीन, श्रीलंका और अफ्रीकी देश केन्या में भी इसके उत्पादन पर असर पड़ने की पूरी सम्भावना है, जो न केवल इसके शौकीनों पर असर डालेगा, साथ ही इसके उत्पादन में लगे किसानों की जीविका के लिए भी खतरा पैदा कर देगा। यह जानकारी हाल ही में क्रिश्चियन एड द्वारा जारी एक नई रिपोर्ट में सामने आई है।

रिपोर्ट के अनुसार चरम मौसम की मार झेल रहे दुनिया के कुछ सबसे बड़े चाय उत्पादक क्षेत्रों पर इसका कुछ ज्यादा ही असर पड़ेगा। जहां आने वाले कुछ दशकों में चाय की पैदावार में भारी कमी आने की सम्भावना है।

अनुमान है कि बाढ़, सूखा, हीटवेव और तूफान इसके उत्पादन, स्वाद और स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद गुणों पर गंभीर प्रभाव डालेंगें। रिपोर्ट के मुताबिक कई क्षेत्रों में होने वाली भारी बारिश और बाढ़ के चलते आपके प्याले में मौजूद चाय का जायका बदल सकता है। साथ ही संभव है कि वो स्वास्थ्य के लिए लाभदायक गुणों पर भी असर डालेगा।

जलभराव उन पर्यावरणीय संकेतों को रोक देगा जिसके कारण पौधे, चाय का जायका बढ़ाने वाले रसायनों को छोड़ते हैं। इनके कारण चाय में एंटीऑक्सिडेंट गुण पैदा होते हैं। इन सुगंधित यौगिकों को सेकेंडरी मेटाबॉलिट्स कहा जाता है, जो शरीर में प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ावा देने में मदद कर सकते हैं, साथ ही इनमें सूजन को कम करने वाले गुण भी होते हैं। ऐसे में इसका खामियाजा चाय पीने वालों को चुकाना होगा।

ग्लोबल वार्मिंग के चलते दुनिया के कई हिस्सों में बेमौसम भारी बारिश होगी, क्योंकि प्रति 0.6 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के साथ वातावरण की पानी धारण करने की क्षमता 4 फीसदी बढ़ जाएगी। जब वातावरण में ज्यादा पानी होगा तो भारी बारिश भी होगी। इसका असर चीन के युन्नान और भारत में असम और दार्जीलिंग जैसे क्षेत्रों पर पड़ेगा। जहां बड़ी मात्रा में चाय पैदा की जाती है। चाय के पौधे एक निश्चित सीमा तक ही बारिश को सहन कर सकते हैं। इन क्षेत्रों में बारिश उनकी सहन-सीमा से ज्यादा हो रही है। इसका असर यह होगा कि पत्ते पहले से ज्यादा बड़े जरूर होंगे पर उनमें वो स्वाद और वो गुण नहीं रहेंगें जिसके लिए वो मशहूर हैं।

रिपोर्ट के अनुसार जलवायु परिवर्तन के चलते केन्या के जिन इलाकों में सबसे ज्यादा चाय की पैदावार होती थी, वो 2050 तक करीब 26.2 फीसदी घट जाएंगें, वहीं मध्यम स्तर के चाय उत्पादक क्षेत्रों में यह गिरावट 39 फीसदी होने का अनुमान है।

भारत में भी चाय की पैदावार और गुणवत्ता पर पड़ेगा व्यापक असर

वहीं यदि भारत को देखें तो वो दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा चाय उत्पादक देश है। जहां ज्यादातर चाय असम के उत्तर पूर्वी क्षेत्रों और उत्तरी बंगाल के दार्जलिंग जिले में पैदा की जाती है। वहां जलवायु परिवर्तन, पैदावार के साथ-साथ खेतों में काम करने वाले किसानों और मजदूरों पर भी असर डाल रहा है। वहां उत्पादकों पर किए एक सर्वेक्षण में 88 फीसदी बागान प्रबंधकों और 97 फीसदी छोटे किसानों ने माना था कि जलवायु परिवर्तन निश्चित तौर पर उनके और उत्पादन के लिए  संकट पैदा कर रहा है।

जलवायु परिवर्तन के चलते असम में भारी बारिश और सूखा दोनों ही पड़ रहे हैं। तापमान और बारिश में आने वाला यह बदलाव पारम्परिक चाय उत्पादक क्षेत्रों पर व्यापक प्रभाव डाल रहा है। एक तरफ जहां इन पारम्परिक क्षेत्रों में चाय का उत्पादन गिर रहा है वहीं नए क्षेत्र इसकी पैदावार के काबिल बन रहे हैं। जलवायु परिवर्तन के चलते जहां पौधों पर असर पड़ रहा है वहीं बारिश के चलते होने वाला जलभराव और मिटटी का कटाव जड़ों के विकास पर असर डाल रहा है। जिसका असर दार्जलिंग जैसी चाय की किस्मों, जो अपने आप में ख़ास है उसकी खेती में लगे किसानों पर पड़ रहा है।

दार्जिलिंग टी रिसर्च और विकास केंद्र द्वारा किए एक अध्ययन के अनुसार तापमान और बारिश में आ रहे बदलावों के चलते चाय की पैदावार पर भारी असर पड़ा है।  जहां 1994 में 1.13 करोड़ किलोग्राम दार्जलिंग चाय की पैदावार हुई थी वो 2018 में घटकर 80 से 85 लाख किलोग्राम रह गई थी। वहां न केवल इसके उत्पादन में, साथ ही गुणवत्ता में भी गिरावट आई है।

यह चाय अपने ख़ास स्वाद और सुगंध के लिए जानी जाती है पर उसपर भी जलवायु परिवर्तन का असर पड़ रहा है। इसके साथ ही बढ़ते कीटों और कीड़ों का हमला भी किसानों के लिए एक नई चुनौती पैदा कर रहा है। ऐसे में जरुरी है कि बढ़ते उत्सर्जन को कम किया जाए और साथ ही विकसित देश इन गरीब और पिछड़े इलाकों को जलवायु परिवर्तन और मौसम की चरम घटनाओं के प्रभाव से उबरने के लिए आर्थिक मदद भी करें। 

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