जलवायु परिवर्तन और चरम मौसम का असर अब देश की राजधानी पर भी दिखने लगा है। सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरमेंट (सीएसई) ने अपनी नई रिपोर्ट “स्वैल्ट्रिंग नाइट्स: डीकोडिंग अर्बन हीट स्ट्रेस इन दिल्ली” में खुलासा किया है कि दिल्ली में जलवायु परिवर्तन के चलते मौसम तेजी से बदल रहा है। इसकी वजह से तापमान की तुलना में वातावरण में मौजूद नमी में तेजी से इजाफा हो रहा है।
दिल्ली में खत्म होती गर्मियों पर किए इस हालिया अध्ययन से पता चला है कि जलवायु परिवर्तन ने शहर को पहले के मुकाबले कहीं ज्यादा गर्म और नम बना दिया है, जिससे सर्दियों की शुरूआत के बावजूद रातों में पारा नीचे नहीं जा रहा। इसका खामियाजा आम लोगों को भुगतना पड़ रहा है, जिन्हें इन बदलावों की वजह से पहले से कहीं ज्यादा एसी-कूलर की जरूरत पड़ रही है। जो लोगों के स्वास्थ्य के लिहाज से ठीक नहीं है।
इतना ही नहीं रिसर्च में यह भी सामने आया है कि इसकी वजह से दिल्ली में बिजली की खपत तेजी से बढ़ रही है। गौरतलब है कि ऐसा ही कुछ इस साल 2023 में मानसून के दौरान सामने भी आया था, जब दिल्ली में बिजली की दैनिक मांग अपने रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई थी।
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) के शोधकर्ताओं ने अपने इस अध्ययन में दिल्ली में गर्मी, आर्द्रता और सतह के तापमान के साथ-साथ मानसून और गर्मियों के महीनों में बिजली की मांग पर पड़ते उनके प्रभावों का विश्लेषण किया है। रिसर्च के जो नतीजे सामने आए हैं उनसे पता चला है कि दिल्ली में गर्मियों के सीजन में बदलाव का अनुभव हो रहा है।
हालांकि राजधानी में तापमान की तुलना में नमी तेजी से बढ़ रही है। लेकिन साथ ही हाई हीट इंडेक्स वाले दिनों की संख्या में भी इजाफा हुआ है। विशेष रूप से मानसून के सीजन में ऐसा देखने को मिला है जब वातावरण में मौजूद अतिरिक्त नमी शहर के तापमान को पांच से सात डिग्री सेल्सियस तक बढ़ा देती है।
हावी हो रहा जलवायु परिवर्तन
अध्ययन से पता चला है कि 2011 के बाद से दिल्ली में गर्मियों के औसत दैनिक तापमान में कोई खास बदलाव नहीं आया है, लेकिन वातावरण में नमी बढ़ गई है। यदि पिछले 12 वर्षों को देखें तो 2022 में सबसे ज्यादा भीषण गर्मी पड़ी थी, जब औसत तापमान 31.2 डिग्री सेल्सियस पर पहुंच गया था। वहीं 2023 में यह केवल 28.9 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया, जब मौसम सबसे ठंडा रहा।
शोधकर्ताओं के मुताबिक इसकी वजह गर्मियों में होने वाली बेमौसम बारिश थी। यदि 2001-10 से पिछले दस गर्मियों के सीजन की तुलना करे तो उस दौरान औसत तापमान थोड़ा कम रहा है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि दिल्ली में गर्मी कम हो रही है।
इसकी सबसे बड़ी वजह विशेष रूप से मानसून से पहले बारिश के पैटर्न में आता बदलाव है, जिस दौरान होती बेमौसम बारिश के चलते नमी में बढ़ोतरी हुई है। इससे दिल्ली में मौसम कहीं ज्यादा उमस भरा हो गया है।
रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2023 में मार्च से मई के दौरान नमी का औसत 49.1 फीसद रहा, जो 2001 से 2010 के बीच दर्ज औसत नमी से करीब 21 फीसदी ज्यादा है। वहीं मानसून के दौरान औसत नमी 73 फीसदी रही, जो पिछले दस वर्षों (2001-10) के औसत से 14 फीसदी अधिक है।
शोधकर्ताओं का कहना है कि जब हीट इंडेक्स 41 डिग्री सेल्सियस पर पहुंचता है तो वो इंसानों के लिए जानलेवा साबित हो सकता है। यूएस नेशनल वेदर सर्विस ने भी हीट इंडेक्स में तापमान के साथ-साथ नमी को महत्वपूर्ण बताया है। जो तय करती है कि वास्तव में हमें कितनी गर्मी महसूस होती है। रिसर्च ने पुष्टि की है कि नमी की तरह ही 2011 से मौसमी हीट इंडेक्स भी बढ़ रहा है।
यदि पिछले दस वर्षों में देखें तो दिल्ली में तेज गर्मी वाले दिनों की संख्या घटी है। लेकिन नमी वाले दिन और नमी का स्तर दोनों बढ़ रहे हैं। यदि 2001 से 2010 के बीच देखें तो औसतन हर साल 46 दिन ऐसे थे जब तापमान 40 डिग्री सेल्सियस को पार कर गया था, लेकिन 2023 में ऐसे दिनों की संख्या केवल 17 ही दर्ज की गई थी।
वहीं 2018 में ऐसे दिनों की संख्या 55 थी, जबकि 2012 से 2022 के बीच इनका औसत 52 दर्ज किया गया था। 2020 में इन दिनों की संख्या केवल 32 दर्ज की गई थी।
रातों को भी ठंडी नहीं दिल्ली, बढ़ रही एसी की मांग
सीएसई रिपोर्ट से पता चला है कि पिछले दस वर्षों (2001-2010) के औसत की तुलना में देखें तो प्री-मानसून और मानसून दोनों अवधियों के दौरान नमी (आरएच) में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। देखा जाए तो यह बढ़ी हुई नमी हीट इंडेक्स पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालती है, जिससे मानसून के दौरान उमस महसूस होती है।
यह उमस वास्तविक तापमान में पांच से आठ डिग्री सेल्सियस का इजाफा कर देती है। इस साल मानसून में इसमें औसतन 6.7 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि देखी गई जो 2001-2010 के औसत 5.6 डिग्री सेल्सियस से कहीं ज्यादा है। इसकी वजह से बारिश में कूलर भी काम नहीं कर रहे और लोग एसी की ओर रुख कर रहे हैं।
देखा जाए तो असल दिकक्त यह है कि दिल्ली में रात में भी तापमान कम नहीं हो रहा। गर्म रातें, दिन की चिलचिलाती गर्मी जितनी ही खतरनाक होती हैं क्योंकि रात में तापमान घटने से लोगों को गर्मी से थोड़ी राहत मिलती है। इससे शारीरिक तनाव कुछ कम हो जाता है। 2022 में लैंसेट प्लैनेटरी हेल्थ में प्रकाशित एक अध्ययन से पता चला है कि अत्यधिक गर्म रातों के चलते मृत्यु का जोखिम करीब छह गुना तक बढ़ सकता है।
2001 से 2010 के बीच प्री-मॉनसून सीजन में दिल्ली का औसत तापमान दिन के चरम तापमान की तुलना में रात में 14.3 डिग्री सेल्सियस तक कम हो जाता था। हालांकि 2023 में यह केवल 12.3 डिग्री सेल्सियस तक ठंडा हुआ। ऐसा ही कुछ सतह के तापमान के साथ भी देखने को मिला जो 2001 से 10 के बीच दिन की तुलना में रात में औसतन 15 डिग्री सेल्सियस कम हुआ करता था, लेकिन 2023 में यह केवल 12.2 डिग्री सेल्सियस तक कम हुआ। वहीं मानसून के दौरान यह स्थिति और बदतर हो गई थी।
देखा जाए तो शहर के बीचों बीच मौजूद हरियाली दिन के दौरान तापमान कम रहता है, लेकिन यह प्रभाव रात में उतना अच्छा काम नहीं करता। शोधकर्ताओं के मुताबिक इसे समझने के लिए और अधिक जांच की आवश्यकता है।
मानसून में गर्म उमस भरे मौसम का सीधा असर दिल्ली में बिजली की मांग पर पड़ रहा है जो तेजी से बढ़ रही है। औसतन, पिछले छह वर्षों में मानसून के दौरान बिजली की अधिकतम दैनिक मांग प्री-मानसून सीजन की अधिकतम मांग से 40 फीसदी अधिक रही। वहीं 2023 में यह मांग 47 फीसदी यानी करीब 2,000 किलोवाट अधिक दर्ज की गई। जो 2018 के बाद से सबसे ज्यादा है।
विश्लेषण से यह भी पता चला है कि गर्मी के अधिकांश दिनों में बिजली की सबसे ज्यादा मांग अक्सर आधी रात के आसपास रहती है। वहीं मानसून के दौरान, रात के समय बिजली की औसत मांग मॉनसून से पहले की तुलना में करीब 40 फीसदी अधिक होती है।
एक्सपर्ट्स की माने तो हीट इंडेक्स में हर एक डिग्री की वृद्धि के चलते बिजली की दैनिक मांग में 140 से 150 मेगावाट की वृद्धि होती है। वहीं रात के समय कमरों को ठंडा रखने की अधिक आवश्यकता होती है जिसके कारण रात के दौरान बिजली की मांग में 190 से 200 मेगावाट तक की वृद्धि हो जाती है।
एक्सपर्ट्स के मुताबिक जल स्रोतों और हरियाली वाले क्षेत्रों में सतह का तापमान तुलनात्मक रूप से कम होता है। वहीं दूसरी तरफ कंक्रीट या खुली बंजर जमीन कहीं ज्यादा गर्म होती है। दिल्ली में एक तरफ जहां ग्रीन कवर बढ़ रहा है जो 2003 में 196 वर्ग किलोमीटर से बढ़कर 2022 में 359 वर्ग किलोमीटर हो गया है। दिल्ली का 32.6 फीसदी हिस्सा हरियाली से भरा थो जो अब 2022 में बढ़कर 44.2 हो गया है। इसमें जंगल, पार्क और खेत आदि शामिल हैं।
वहीं दूसरी तरफ पिछले तीन देशों में दिल्ली में कंक्रीट का जंगल भी बढ़ा है। जो अर्बन हीट आईलैंड प्रभाव में इजाफा कर रहे हैं। शोधकर्ताओं के मुताबिक शहर की खुद को ठंडा कर पाने की क्षमता में 12 से 21 फीसदी की कमी आई है।
सीएसई के शोधकर्ताओं का कहना है कि जो स्थानीय रुझान सामने आए हैं वो इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) की छठी मूल्यांकन रिपोर्ट (एआर6 डब्ल्यूजी-आई) के निष्कर्षों से मेल खाते हैं। यह रिपोर्ट शहरी क्षेत्रों में लू जैसी गर्मी की चरम परिस्थितियों पर भी प्रकाश डालती है, जहां वातावरण का तापमान आसपास के क्षेत्रों की तुलना में खासकर रात में कई डिग्री अधिक हो सकता है।
आईपीसीसी ने अपनी रिपोर्ट में यह भी चेतावनी दी थी कि अर्बन हीट आइलैंड का प्रभाव स्थानीय तौर पर बढ़ते तापमान को दो डिग्री सेल्सियस तक बढ़ा सकता है, जिससे शहरों की अनुकूलन क्षमता कम हो सकती है और संबंधित जोखिम बढ़ सकते हैं।
जलवायु में आते बदलावों की वजह से शहर इतने गर्म और नम हो रहे हैं कि रात के दौरान भी पर्याप्त रूप से ठंडा नहीं हो पा रहे, जिससे लोगो अच्छी-खासी परेशानी हो रही है। नतीजतन बिजली की मांग भी बढ़ रही है।
क्या है समाधान
सीएसई की कार्यकारी निदेशक अनुमिता रॉयचौधरी शहरों में गर्मी के रुझान की निगरानी के महत्व पर जोर देते हुए कहती है कि, "ये रुझान लोगों के आराम से जुड़े हैं। बढ़ता तापमान और नमी एयर कंडीशनिंग की मांग को बढ़ा सकते हैं, जिससे बिजली की मांग और ऊर्जा सुरक्षा प्रभावित हो सकती है।"
रॉयचौधरी का सुझाव है कि शहरों में बढ़ती गर्मी को कैसे मैनेज किया जाए, इसेके लिए हमें इन रुझानों को समझना और ध्यान में रखना जरूरी है। इसमें गर्मी के तनाव को कम करने के लिए इमारतों के बेहतर डिजाइन और सामग्री का चयन शामिल है।
हाल ही में दिल्ली ने अपना नया हीट एक्शन प्लान जारी किया है। ऐसे में रॉयचौधरी ने इस बात पर जोर दिया है कि दिल्ली के इस नए हीट एक्शन प्लान में लू के साथ-साथ अन्य बातों पर भी ध्यान रखना जरूरी है। इसमें बढ़ती गर्मी के सभी स्रोतों से निपटने के लिए निरंतर और व्यवस्थित प्रयास शामिल होने चाहिए। जैसे इमारतों, वाहनों, उद्योगों से निकलने वाली गर्मी के साथ-साथ बुनियादी ढांचे, कंक्रीट और निर्माण सामग्री पर भी गौर करना चाहिए।
वहीं सीएसई की अर्बन लैब के सीनियर प्रोग्राम मैनेजर अविकल सोमवंशी ने सार्वजनिक स्वास्थ्य को मद्देनजर रखते हुए दिन और रात के अधिकतम तापमान के साथ-साथ सापेक्ष आर्द्रता पर भी विचार करने की बात कह है। उनके मुताबिक गर्मी की समस्या केवल दिन का अधिकतम तापमान नहीं है। यह उससे कहीं ज्यादा जटिल है। उन्होंने गर्मी और तापमान के साथ, सतह द्वारा सोखे जा रहे तापमान, भूमि उपयोग में आते बदलावों, वनस्पति, और जल स्रोतों के प्रभाव पर भी गौर करने को कहा है।
एक्सपर्टस का कहना है कि दिल्ली को सिर्फ कागजों पर नहीं बल्कि जमीनी समाधानों की जरूरत है। इसके लिए लगातार प्लानिंग जरूरी है। दिल्ली में जल स्रोतों और ग्रीन कवर में भी इजाफा करने की जरूरत है। साथ ही वाहनों में कमी, बिल्डिंग में बेहतर निर्माण, वेंटिलेशन, बिजली की खपत में गिरावट जैसे उपाय जरूरी हैं।
जलवायु और मौसम में आते बदलावों पर नजर रखें के लिए सटीक आंकड़े भी बेहद जरूरी हैं। रिपोर्ट में शोधकर्ताओं ने आंकड़ों के वैज्ञानिक अध्ययन और विश्लेषण पर भी जोर दिया है। उन्होंने लोगों को जागरूक करने के साथ-साथ जलवायु सूचना, प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली को आम लोगों से जोड़ने की बात कही है।