जलवायु परिवर्तन के कारण कौन से जीव हैं विलुप्त होने के कगार पर, अध्ययन में लगाया पता

शोधकर्ताओं ने 9,200 से अधिक प्रजातियों को कवर करने वाले 290,000 से अधिक जीवाश्म रिकॉर्ड का उपयोग करते हुए, प्रमुख लक्षणों का एक डेटासेट एकत्र किया
जलवायु में बदलाव के कारण जंगलों में आग लगने की घटनाएं बढ़ रहीं है जिसके कारण वन्यजीव और वनस्पति बुरी तरह प्रभावित होती है। फोटो साभार : आईसटॉक
जलवायु में बदलाव के कारण जंगलों में आग लगने की घटनाएं बढ़ रहीं है जिसके कारण वन्यजीव और वनस्पति बुरी तरह प्रभावित होती है। फोटो साभार : आईसटॉक
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एक नए अध्ययन में, शोधकर्ताओं ने जीवाश्म रिकॉर्ड का उपयोग कर इस बात का पता लगाया कि जलवायु परिवर्तन के कारण जीवों के विलुप्त होने का कितना खतरा है। अध्ययन के परिणाम उन प्रजातियों की पहचान करने में मदद कर सकते हैं जो आज मानवजनित जलवायु परिवर्तन के कारण सबसे अधिक खतरे में हैं।

जलवायु परिवर्तन पृथ्वी पर जीवन के इतिहास के दौरान अनगिनत प्रजातियों के विलुप्त होने के लिए जिम्मेदार रहा है। लेकिन, आज तक, यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि कौन से कारण हैं जो प्रजातियों को इस तरह के परिवर्तन के प्रति अधिक या कम लचीला बनाते हैं और जलवायु परिवर्तन की भयावहता विलुप्त होने के खतरे को कैसे प्रभावित करती है।

ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं के नेतृत्व में किए गए इस नए अध्ययन में पिछले 48.5 करोड़ वर्षों में समुद्री अकशेरूकीय (जैसे समुद्री अर्चिन, घोंघे और शेलफिश) के जीवाश्म रिकॉर्ड का विश्लेषण करके इस प्रश्न का उत्तर देने की कोशिश की गई। समुद्री अकशेरुकी जीवों का एक अच्छी तरह से अध्ययन किया गया जीवाश्म रिकॉर्ड है, जिससे यह पहचानना संभव हो जाता है कि प्रजातियां कब और क्यों विलुप्त हो जाती हैं।

9,200 से अधिक प्रजातियों को कवर करने वाले 290,000 से अधिक जीवाश्म रिकॉर्ड का उपयोग करते हुए, शोधकर्ताओं ने प्रमुख लक्षणों का एक डेटासेट एकत्र किया जो विलुप्त होने से बचने को प्रभावित कर सकता है, जिसमें पसंदीदा तापमान जैसे पहले गहराई से अध्ययन नहीं किए गए लक्षण भी शामिल हैं। जलवायु परिवर्तन के दौरान विलुप्त होने के खतरों का पता लगाने में कौन से कारण सबसे महत्वपूर्ण थे, यह समझने के लिए एक मॉडल विकसित करने के लिए इस जानकारी को जलवायु सिमुलेशन के आंकड़ों के साथ जोड़ा गया था।

अध्ययनकर्ताओं ने पाया कि जलवायु परिवर्तन के अधिक संपर्क में आने वाली प्रजातियों के विलुप्त होने के आसार अधिक थे। विशेष रूप से, जिन प्रजातियों ने भू-वैज्ञानिक चरणों में सात डिग्री सेल्सियस या उससे अधिक तापमान में बदलाव का अनुभव किया, वे विलुप्त होने के प्रति काफी अधिक संवेदनशील थे।

अध्ययनकर्ताओं ने यह भी पाया कि चरम जलवायु में रहने वाली प्रजातियों के विलुप्त होने के अधिक आसार थे, जो जानवर केवल तापमान की एक संकीर्ण सीमा (विशेष रूप से 15 डिग्री सेल्सियस से कम रेंज) में रह सकते थे, उनके विलुप्त होने की काफी अधिक आशंका थी।

हालांकि, भौगोलिक सीमा का आकार विलुप्त होने के खतरों का सबसे शक्तिशाली भविष्यवक्ता था। बड़ी भौगोलिक सीमाओं वाली प्रजातियों के विलुप्त होने की संभावना काफी कम थी। शरीर का आकार भी महत्वपूर्ण था, छोटे शरीर वाली प्रजातियों के विलुप्त होने की अधिक आसार थे। यह अध्ययन साइंस पत्रिका में प्रकाशित किया गया है।

अध्ययन किए गए सभी लक्षणों का विलुप्त होने के खतरों पर भारी प्रभाव पड़ा। उदाहरण के लिए, छोटी भौगोलिक सीमाओं और संकीर्ण तापीय सीमाओं वाली प्रजातियां उन प्रजातियों की तुलना में विलुप्त होने के लिए और भी अधिक संवेदनशील थीं जिनमें इनमें से केवल एक लक्षण था।

अध्ययनकर्ता कूपर मालानोस्की ने कहा हमारे अध्ययन से पता चला है कि भौगोलिक सीमा समुद्री अकशेरूकीय के लिए विलुप्त होने के खतरे के सबसे सटीक पूर्वानुमान थे, लेकिन जलवायु परिवर्तन की भयावहता भी एक विलुप्त होने के पूर्वानुमान के लिए अहम है, जिसका आज जलवायु परिवर्तन की स्थिति में जैव विविधता पर प्रभाव पड़ता है

वर्तमान मानवजनित जलवायु परिवर्तन पहले से ही कई प्रजातियों को विलुप्त होने के कगार पर पहुंचा रहा है, ये परिणाम उन जानवरों की पहचान करने में मदद कर सकते हैं जो सबसे अधिक खतरे में हैं और उनको बचाने के लिए रणनीतियों की जानकारी दे सकते हैं।

प्रमुख-अध्ययनकर्ता प्रोफेसर एरिन सॉपे ने कहा भूवैज्ञानिक अतीत के साक्ष्य से पता चलता है कि जलवायु परिवर्तन के अनुमानों को देखते हुए, वैश्विक जैव विविधता को एक खतरनाक भविष्य का सामना करना पड़ रहा है। विशेष रूप से, हमारा मॉडल सुझाव देता है कि ध्रुवों या उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में रहने वाली 15 डिग्री सेल्सियस से कम की प्रतिबंधित थर्मल रेंज वाली प्रजातियों के विलुप्त होने का सबसे बड़ा खतरा होने के आसार हैं।

हालांकि, यदि स्थानीय आधार पर जलवायु में बदलाव का अंतर काफी बड़ा होता है, तो यह विश्व स्तर पर भारी विलुप्ति का कारण बन सकता है, जो हमें छठे सामूहिक विलुप्ति के करीब धकेल सकता है।

शोध टीम के अनुसार, भविष्य के काम में यह पता लगाना चाहिए कि जलवायु परिवर्तन विलुप्त होने के अन्य कारणों, जैसे कि समुद्र के अम्लीकरण और एनोक्सिया या समुद्री जल में ऑक्सीजन की कमी के साथ कैसे संपर्क करता है।

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