इसमें कोई शक नहीं कि जलवायु में आता बदलाव मानसून और लम्बी अवधि में होने वाली बारिश को प्रभावित कर रहा है, लेकिन क्या वो रोजमर्रा में होने वाली बारिश पर भी असर डाल रहा है? यह अपने आप में बड़ा सवाल है। इसकी जांच के लिए चोन्नम राष्ट्रीय विश्वविद्यालय, पोहांग यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी, यूनिवर्सिटी ऑफ वाशिंगटन, यूनिवर्सिटी ऑफ हवाई के साथ पुसान राष्ट्रीय विश्वविद्यालय से जुड़े शोधकर्ताओं ने एक नया अध्ययन किया है।
अध्ययन के नतीजे इस बात की पुष्टि करते हैं कि वैश्विक स्तर पर बढ़ता तापमान हर दिन होने वाली बारिश को प्रभावित कर रहा है। वैश्विक स्तर पर दिन-प्रतिदिन बारिश के पैटर्न में आते इन बदलावों को उजागर करने के लिए वैज्ञानिकों ने डीप लर्निंग मॉडल जैसी उन्नत कंप्यूटर तकनीक को विकसित किया है। उन्होंने इस मॉडल का उपयोग बारिश पर नजर रखने वाले उपग्रहों से प्राप्त आंकड़ों के विश्लेषण के लिए किया है।
विश्लेषण से पता चला है कि साल 2015 के बाद से, वैश्विक स्तर पर आधे से ज्यादा दिनों में बारिश के पैटर्न में उल्लेखनीय बदलाव आया है। वैज्ञानिकों ने इस बात की भी पुष्टि की है कि यह बदलाव प्राकृतिक विविधताओं के चलते नहीं बल्कि इंसानों के कारण वैश्विक तापमान में होती वृद्धि का परिणाम है।
पारंपरिक अध्ययनों के विपरीत, जो मासिक या वार्षिक वर्षा के दीर्घकालिक रुझानों पर आधारित होते हैं, इस अध्ययन में वैज्ञानिकों ने रोजमर्रा के छोटे अंतराल में बारिश के पैटर्न में आते बदलावों का अध्ययन किया है। अपने इस अध्ययन में वैज्ञानिकों ने कृत्रिम बुद्धिमत्ता जैसी तकनीकों का उपयोग किया है।
गौरतलब है कि यह जलवायु में आते बदलावों का ही नतीजा है जो भारत में अगस्त 2023 में पिछले 123 वर्षों का सबसे सूखा महीना दर्ज किया गया। यह महीना ने केवल बारिश की कमी का शिकार था, साथ ही इस दौरान तापमान भी रिकॉर्ड गर्म था। इस बारे में भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) ने जो जानकारी साझा की है उससे पता चला है कि अगस्त के दौरान भारत में कुल 161.7 मिलीमीटर बारिश हुई थी, जो सामान्य से 35 फीसदी कम है। 1901 के बाद से देश में कभी भी अगस्त में इतनी कम बारिश नहीं हुई।
दैनिक बारिश में आते बदलावों के चलते बढ़ रहा है भारी बारिश और लू का खतरा
बता दें कि अतीत में, वैज्ञानिक जलवायु परिवर्तन का अध्ययन करने के लिए पारंपरिक सांख्यिकीय तरीकों का इस्तेमाल करते थे, लेकिन ये तरीके दैनिक बारिश के पैटर्न में आते जटिल बदलावों की प्रभावी गणना के लिए काफी नहीं थे। हालांकि डीप लर्निंग तकनीक, एक अलग दृष्टिकोण की वजह से इन जटिलताओं को कहीं बेहतर तरीके से समझ सकती है।
अध्ययन के नतीजे 30 अगस्त 2023 को अंतराष्ट्रीय जर्नल नेचर में प्रकाशित हुए हैं। जो दर्शाते हैं कि दैनिक जैसे समय के छोटे पैमाने पर बारिश में आते बदलाव कहीं ज्यादा प्रबल हो रहे हैं।
रिसर्च की मानें तो बारिश में आते यह बदलाव ग्लोबल वार्मिंग के सबसे स्पष्ट संकेत हैं। अध्य्यन ने इस बात की भी पुष्टि की है कि रोजमर्रा की बारिश में होने वाले सबसे बड़े बदलाव उपोष्णकटिबंधीय पूर्वी प्रशांत क्षेत्र के साथ उन क्षेत्रों में दर्ज किए गए हैं, जहां अक्सर मध्यम ऊंचाई पर तूफान आते हैं।
अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता और प्रोफेसर यू-ग्यून हैम ने समझाया कि, "दैनिक बारिश में आते अधिक उतार-चढ़ाव का मतलब है कि एक तरफ जहां बार-बार भीषण बारिश का सामना करना होगा, वहीं साथ ही गर्मियों में लम्बे समय तक सूखा रहने के चलते लू का कहर भी कहीं ज्यादा विकराल रूप ले लेगा।"
ऐसे में प्रोफेसर सेउंग-की मिन का कहना है कि, “जिस तरह से वैश्विक तापमान में वृद्धि हो रही है, उसको देखते हुए भविष्य में भीषण बारिश और लू की घटनाओं के बढ़ने की आशंका है। ऐसे में उनसे निपटने के लिए तैयार रहने की जरूरत है।"