क्लाइमेट फाइनेंस के अपने लक्ष्य से अभी भी 1.32 लाख करोड़ रुपए पीछे हैं अमीर देश

अमीर देशों ने 2020 तक हर वर्ष कमजोर देशों को 7.9 लाख करोड़ रुपए (100 बिलियन डॉलर) की धनराशि क्लाइमेट फाइनेंस के रूप में देने का लक्ष्य रखा था
क्लाइमेट फाइनेंस के अपने लक्ष्य से अभी भी 1.32 लाख करोड़ रुपए पीछे हैं अमीर देश
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साधन संपन्न देशों द्वारा कमजोर देशों को जो राशि हर साल क्लाइमेट फाइनेंस के रूप में दी जाती है वो अभी भी उनके लक्ष्य से करीब 1.32 लाख करोड़ रुपए (16.7 बिलियन डॉलर) कम है। गौरतलब है कि 2009 में इन अमीर देशों ने 2020 तक हर वर्ष कमजोर देशों को 7.9 लाख करोड़ रुपए (100 बिलियन डॉलर) की धनराशि क्लाइमेट फाइनेंस के रूप में देने का लक्ष्य रखा था।

यह जानकारी आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओईसीडी) द्वारा जारी नवीनतम रिपोर्ट ‘एग्रीगेट ट्रेंडस ऑफ क्लाइमेट फाइनेंस प्रोवाइडेड एंड मोबिलाइस्ड बॉय डेवलप्ड कन्ट्रीज इन 2013-20’ में सामने आई है। आंकड़ों की माने तो इन साधन संपन्न देशों द्वारा 2020 में करीब 6.6 लाख करोड़ रुपए की राशि क्लाइमेट फाइनेंस के रूप में दी गई थी।

हालांकि ओईसीडी के अनुसार इसमें 2019 की तुलना में 4 फीसदी की वृद्धि हुई थी, जबकि 2018 -19 के दौरान इसमें करीब एक फीसदी की ही वृद्धि हुई थी। ऐसे में कयास लगाए जा रहे हैं कि क्लाइमेट फाइनेंस के रूप में हर साल 100 बिलियन डॉलर देने का यह लक्ष्य 2023 तक ही हासिल हो पाएगा। देखा जाए तो 2020 में क्लाइमेट फाइनेंस में यह जो वृद्धि आई है उसके लिए मुख्य रूप से पब्लिक फ्लो में वृद्धि बड़ी वजह थी।

इस बारे में ओईसीडी महासचिव माथियास कॉर्मन का कहना है कि हम जानते हैं कि इस विषय पर कहीं ज्यादा प्रयास करने की जरुरत है।  यह सही है कि 2019-20 के बीच जलवायु वित्त में वृद्धि आई है। लेकिन इसके बावजूद वो लक्ष्यों को हासिल करने के लिए काफी नहीं थी। 

देखा जाए तो इस फाइनेंस का करीब 42 फीसदी हिस्सा एशिया को मिला था जोकि करीब-करीब उसकी आबादी के हिस्से जितना ही है, वहीं अफ्रीका को इसका 26 फीसदी और अमेरिका को 17 फीसदी हिस्सा दिया गया था।

रिपोर्ट के मुताबिक इस क्लाइमेट फाइनेंस का ज्यादातर हिस्सा (58 फीसदी) क्लाइमेट मिटिगेशन के लिए दिया गया था, लेकिन अनुकूलन के लिए दी जा रहे वित्त में भी वृद्धि हो रही है जोकि क्लाइमेट फाइनेंस का करीब एक तिहाई था। पता चला है कि मिटिगेशन  ज्यादातर पैसा ऊर्जा और परिवहन जैसी गतिविधियों पर केंद्रित था, जबकि अनुकूलन के लिए दिए वित्त को जल आपूर्ति, कृषि, मछली पकड़ने, वृक्ष रोपण और स्वच्छता जैसे कामों पर खर्च किया गया था।

कर्ज के रूप में था इसका 71 फीसदी हिस्सा

वहीं यदि आय के लिहाज से देखें तो इस फाइनेंस का करीब इसका करीब 43 फीसदी हिस्सा निम्न-मध्यम-आय वाले देशों को दिया गया था। वहीं 27 फीसदी उच्च-मध्य-आय वाले देशों और 8 फीसदी कम आय वाले देशों (एलआईसी) को चला गया था, जबकि 3 फीसदी उच्च आय वाले देशों के हिस्से में था। रिपोर्ट से पता चला है कि इस फाइनेंस का करीब 71 फीसदी हिस्सा कर्ज के रूप में था, जोकि 2019 के मुकाबले 8 फीसदी ज्यादा था। वहीं इसका करीब 26 फीसदी अनुदान के रूप में दिया गया था।

क्लाइमेट फाइनेंस पर हाल ही में अंतराष्ट्रीय संगठन ऑक्सफेम ने क रिपोर्ट प्रस्तुत की थी। इस रिपोर्ट में क्लाइमेट फाइनेंस पर गंभीर चिंता व्यक्त की गई थी। इसके अनुसार पहले ही जलवायु परिवर्तन की मार झेल रहे इन कमजोर देशों के लिए क्लाइमेट फाइनेंस एक नई समस्या बनता जा रहा है|

जलवायु परिवर्तन के कारण पैदा होने वाले खतरों जैसे बाढ़, तूफान, सूखा, भुखमरी आदि से निपटने के लिए यह देश लम्बे समय से अमीर देशों से मदद लेते आए हैं। वहीं मदद के नाम पर दिया जा रहा यह फण्ड इन देशों को कर्जदार बना रहा है, जिसको चुका पाना अपने आप में एक बड़ी समस्या है।

रिपोर्ट के मुताबिक अमीर राष्ट्रों और विभिन्न संस्थानों द्वारा विकासशील देशों को करीब 60 बिलियन डॉलर का वित्त दिया गया था, पर सच्चाई यह है कि उन देशों के पास इसका करीब एक तिहाई ही पहुंच पाया था जबकि बाकि पैसा ब्याज, पुनर्भुगतान और अन्य लागतों के रूप में काट दिया गया था। अनुमान है कि 2017-18 के दौरान केवल 19 से 22.5 बिलियन डॉलर की रकम ही इन देशों तक पहुंच पाई थी।

वहीं संयुक्त राष्ट्र और ओईसीडी के आंकड़ों पर आधारित इस रिपोर्ट के मुताबिक क्लाइमेट फाइनेंस के रूप में दिया गया करीब 80 फीसदी पैसा कर्ज के रूप में था, जोकि करीब 47 बिलियन डॉलर था। जबकि इसमें से करीब आधा 24 बिलियन डॉलर गैर-रियायती था, मतलब कि यह ऋण कड़ी शर्तों पर दिया गया था।

ऑक्सफैम से जुडी ट्रेसी कार्टी का इस बारे में कहना है कि क्लाइमेट फाइनेंस दुनिया के कई देशों के लिए जलवायु से जुडी आपदाओं से निपटने का सहारा है। उनका कहना है कि जलवायु संकट के नाम पर जरुरत से ज्यादा लिया जा रहा कर्ज एक ऐसा घोटाला है जिसपर अब तक ध्यान नहीं दिया जा रहा है। दुनिया के सबसे पिछड़े देश जो पहले ही कर्ज के भंवर में डूबे हुए हैं, उनको जलवायु संकट के नाम पर और ऋण लेने के लिए मजबूर किया जाना सही नहीं है।

कार्टी के अनुसार विकसित देशों को कर्ज के बजाय अनुदान के रूप में ज्यादा क्लाइमेट फाइनेंस करना चाहिए। उन्हें जलवायु संकट से निपटने को वरीयता देनी चाहिए। साथ ही पिछड़े देशों को अधिक प्राथमिकता देना चाहिए। 

1 डॉलर = 79.03 भारतीय रुपए

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