मानव शरीर में गर्मी सहन करने की कितनी क्षमता, रिसर्च से चलेगा पता

सिडनी विश्वविद्यालय के गर्मी व स्वास्थ्य प्रयोगशाला में मनुष्य के गर्मी सहन करने की क्षमता का परीक्षण किया जा रहा
1. अपनी चार साल की बच्ची को गर्मी से बचाने की जद्दोजहद करती पाकिस्तान के सिंध प्रान्त में एक महिला; फोटो: फाइल फोटो: हीरा हाशमी/ यूएनडीपी
1. अपनी चार साल की बच्ची को गर्मी से बचाने की जद्दोजहद करती पाकिस्तान के सिंध प्रान्त में एक महिला; फोटो: फाइल फोटो: हीरा हाशमी/ यूएनडीपी
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मानव कितनी अधिक से अधिक कितनी गर्मी सहन करते हुए जीवित रह सकता है? अब वैज्ञानिक इसे प्रयोगशाला में इस बात की सीमा तय करने की तैयारी कर रहे हैं। ध्यान रहे कि गर्मी में जीवित रहने की सीमा सोची गई सीमा से कम है।

शोधकर्ता अत्याधुनिक जलवायु लैब का उपयोग करके यह पता लगा रहे हैं कि कब भीषण गर्मी से जीवन को सबसे अधिक खतरा पैदा होता है। शोधकर्ता लगातार अत्यधिक गर्मी के कारण शरीर पर पड़ने वाले सबसे खतरनाक प्रभावों व जलवायु परिवर्तन से स्वास्थ्य समस्याओं में किस तरह की वृद्धि हो रही है, आदि पर गहन शोध में जुटे हुए हैं।

न्यूयॉर्क टाइम्स में छपी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि 2019 में फिजियोलॉजिस्ट ओली जे ने एक ऐसा कक्ष डिजाइन करना शुरू किया जो आज और भविष्य की गर्मी के थपेड़ों को सहन कर सके। 18 महीने बाद बने इस कक्ष का निर्माण ऑस्ट्रेलिया के ब्रिसबेन में किया गया है।

अब जे सहित शोधकर्ता इसका उपयोग अत्यधिक गर्मी में मानव अस्तित्व की सीमाओं का परीक्षण करने में जुटे हुए हैं। सिडनी विश्वविद्यालय में गर्मी और स्वास्थ्य प्रयोगशाला का निर्देशन करने वाले जे कहते हैं कि समस्या यह है कि आज आपके पास ऐसी परिस्थितियां हैं जो गर्म लग सकती हैं, लेकिन हम वास्तव में नहीं जानते कि यह गर्मी लोगों पर क्या असर डालने वाली है।

रिपोर्ट में उनके हवाले से कहा गया है कि उन परिस्थितियों का विश्लेषण करके और लोगों को उनके संपर्क में लाकर सावधानीपूर्वक चिकित्सा परीक्षण कर हम लोगों के शरीर विज्ञान को बेहतर ढंग से समझ सकते हैं। जे की टीम यह भी पता लगा रही है कि गर्मी के संपर्क में आने से होने वाले स्वास्थ्य जोखिमों को कम करने के लिए कौन सी शीतलन रणनीतियां सबसे अच्छी कारगर साबित होंगी।

जैसे-जैसे जलवायु परिवर्तन पृथ्वी को गर्म कर रहा है, उसी तेजी से दुनिया भर में मौसम की रिपोर्ट में चिलचिलाती धूप वाले दिन का होना अब आम बात होते जा रही है। पिछले महीने दुनिया के सबसे गर्म दिन का रिकॉर्ड दो बार टूटा था और संयुक्त राष्ट्र ने अत्यधिक गर्मी पर कार्रवाई के लिए वैश्विक आह्वान तक किया था ताकि विज्ञान का उपयोग करके समाज के कमजोर लोगों, श्रमिकों और अर्थव्यवस्थाओं की मदद की जा सके। ध्यान रहे कि वैश्विक कार्यबल का लगभग 70 प्रतिशत यानी 2.4 अरब लोग वर्तमान में अत्यधिक गर्मी झेल रहे हैं।

ऐसी भयावह स्थिति होने के बावजूद उच्च तापमान से निपटने के तरीके के बारे में सार्वजनिक रूप जारी होने वाली मौसम संबंधी चेतावनी का स्तर बेहद खराब है। अब तक लोगों को प्रभावी ढंग से खुद को ठंडा करने के तरीकों का अच्छी तरह से अध्ययन नहीं किया गया है।

रिपोर्ट में यूनिवर्सिटी पार्क में पेंसिल्वेनिया स्टेट यूनिवर्सिटी के फिजियोलॉजिस्ट लैरी केनी कहते हैं कि यदि आप यूएस सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन, विश्व स्वास्थ्य संगठन जैसे प्रतिष्ठित संगठनों की गर्मी संबंधी सलाहों को देखें तो आप पाएंगे कि वह मानव शरीर विज्ञान के बारे में अनेक कमियों से भरा हुआ है।

जे कहते हैं कि मनुष्यों के लिए ताप सीमा को आंशिक रूप से इसलिए गलत तरीके से परिभाषित किया गया है क्योंकि सार्वजनिक स्वास्थ्य निकायों ने 2010 में प्रकाशित एक सैद्धांतिक अध्ययन एक पर अत्यधिक भरोसा किया है। उस पेपर में शोधकर्ताओं ने गणितीय मॉडल का उपयोग करके “वेट-बल्ब तापमान” (डब्ल्यूबीटी) को परिभाषित किया।

डब्ल्यूबीटी एक ऐसा उपाय है जिसका उपयोग वैज्ञानिक ताप के तनाव का अध्ययन करने के लिए करते हैं क्योंकि यह गर्मी और आर्द्रता के प्रभावों को ध्यान में रखता है। मॉडल ने मानव अस्तित्व की सीमा के रूप में 35 डिग्री सेल्सियस का डब्ल्यूबीटी निकाला। उस सीमा पर शरीर का आंतरिक तापमान अनियंत्रित रूप से बढ़ जाएगा लेकिन मॉडल ने मानव शरीर को एक बिना कपड़ों वाली वस्तु के रूप में माना जो पसीना नहीं बहाता या हिलता नहीं है, जिससे परिणाम वास्तविक दुनिया में कम असरकारक होता है।

लैब का दूसरा लक्ष्य है प्रभावी शीतलन रणनीतियों को खोजना। उन वातावरणों की स्थितियों की नकल करना शामिल है, जहां गर्मी श्रमिकों के स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकती है। एक परीक्षण में जे की टीम शीतलन रणनीतियों का परीक्षण कर रही है जो बांग्लादेश में कपड़े के कारखाने में काम करने वाले श्रमिकों की मदद कर सकती हैं, जहां लोग आमतौर पर गर्म जलवायु में लंबे समय तक काम करते हैं और जहां एयर कंडीशनिंग की बहुत कम पहुंच होती है।

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1. अपनी चार साल की बच्ची को गर्मी से बचाने की जद्दोजहद करती पाकिस्तान के सिंध प्रान्त में एक महिला; फोटो: फाइल फोटो: हीरा हाशमी/ यूएनडीपी

शोधकर्ताओं ने पहले राजधानी ढाका में एक कपड़ा कारखाने की तीन मंजिलों में गर्मी और नमी को मापा था। उन्होंने कहा हमने चैंबर में उन स्थितियों को फिर से बनाया और लोगों ने जो काम किया, महिलाओं ने सिलाई की और पुरुषों ने इस्त्री की। परीक्षण प्रतिभागियों ने ऐसे कपड़े पहने थे जो कर्मचारी आमतौर पर कारखाने में पहनते हैं।

लगभग 240 जलवायु-कक्ष परीक्षणों में टीम ने लोगों के शरीर के कार्यों और उनकी कार्य उत्पादकता को मापा क्योंकि समस्या यह है कि जब लोगों को गर्मी अधिक लगती है तो उनकी कार्य की गति धीमी हो जाती है। वैज्ञानिकों ने पंखे का उपयोग करने और नियमित रूप से पानी पीने जैसे शीतलन विधियों का परीक्षण किया और कारखाने की छत के रंग को बदलने के प्रभावों को भी नापा।

शोधकर्ताओं ने यह भी पता लगाया है कि गर्मी और आर्द्रता के विभिन्न संयोजनों में बिजली के पंखे और त्वचा को गीला करने से वृद्ध लोगों में हृदय पर कैसे प्रभावित होता है। शोधकर्ताओं ने पाया कि नमी वाली परिस्थितियों में पंखे का इस्तेमाल कम से कम 38 डिग्री सेल्सियस के वायु तापमान तक हृदय पर पड़ने वाले दबाव को कम करता है। लेकिन शुष्क गर्मी में पंखे का इस्तेमाल हृदय पर पड़ने वाले दबाव को बढ़ाता है। शुष्क और आर्द्र गर्मी दोनों में त्वचा को गीला करना लाभदायक था।

ऐसी स्थितियों की पहचान करना जरूरी है जिनमें सामान्य शीतलन रणनीतियां, जैसे कि पंखे का इस्तेमाल और त्वचा पर पानी डालना सबसे अच्छा काम करती हैं। सार्वजनिक स्वास्थ्य की रक्षा के लिए यह एक आवश्यक उपाय है। ध्यान रहे कि जे की टीम ने दुनिया भर में अपने उपयोगकर्ताओं के लिए गूगल क्राम ब्राउजर द्वारा जारी वैश्विक हीट-अलर्ट सिस्टम को आकार देने में भी मदद की है।

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