आवरण कथा: इस साल दिन तो क्या रातों में भी बरस रहे अंगार, कैसे रह रहे हैं एसी के बिना लोग

डाउन टू अर्थ ने कई शहरों में रातों की गर्मी से बेहाल लोगों और राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों से बातचीत कर जाना कि साल 2024 क्यों इस कदर गर्म बीत रहा है
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फोटो : विकास चौधरी / सीएसईधधकती धरती
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बढ़ता तापमान गर्मी के प्रति मानवीय सहनशीलता की सीमाओं का इम्तिहान ले रहा है। दिन का अधिकतम तापमान ही नहीं अब रात के बढ़ते हुए न्यूनतम तापमान ने भी आम लोगों का जीना मुहाल कर दिया है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक बीते एक दशक (2013-2023) में 6,012 लोगों की मृत्यु हीट वेव के कारण हुई है। 2024 ने भी अप्रत्याशित और जानलेवा गर्मी और लू का अनुभव किया है। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट द्वारा किए गए एक अध्ययन से पता चलता है कि शहर बहुत तेजी से मानव स्वास्थ्य पर संभावित रूप से गंभीर प्रभाव डालने वाले हीट आइलैंड में बदल रहे हैं। यहां तक कि सबसे स्थिर जलवायु वाले स्थानों में गिने जाने वाले पूर्वोत्तर के सिक्किम में भी इस गर्मी में हीट वेव के दिनों ने दहाई का आंकड़ा पार कर लिया है। गर्मी का यह विकराल रूप मानवता के लिए सबसे बड़ी चुनौती बनकर उभरा है। दिल्ली से अनिल अश्विनी शर्मा, विवेक मिश्रा, अक्षित संगोमला, हरियाणा से शगुन के साथ रजनीश सरीन, मिताशी सिंह और निमिश गुप्ता का विश्लेषण

दिन की झुलसाती गर्मी में तो हम अपना सिर जैसे-तैसे छाया ढूंढ़ कर बचा लेते हैं, लेकिन अब रात को ताप से बचने के लिए कहां जाएं, क्योंकि अब तो रातें भी अधिक तप रही हैं। यह बात राजस्थान के चुरू बस स्टैंड पर दिहाड़ी मजदूरी कर रहे सलीम मोहम्मद ने कही।

सलीम कहते हैं कि मई में तो दिन में दिहाड़ी करना मुश्किल हो रहा था तो मालिक से विनती करने पर उसने रात की पाली शुरू कर दी थी लेकिन अब तो जून में रात को काम करना भी असंभव हो गया है। सलीम की मुसीबत को इस बात से समझा जा सकता है कि जून में उत्तर और पश्चिम भारत में रात का तापमान सामान्य से 3-6 डिग्री सेल्सियस अधिक रिकॉर्ड हुआ। जून की भयावह गर्मी ने बिहार में, 8 जून तक स्कूलों को बंद करने के सरकारी आदेश को आगे बढ़ाने पर मजबूर कर दिया और तब राज्य सरकार ने इसे 20 जून तक कर दिया।

दिल्ली स्थित सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) के नए अध्ययन ने तापमान की स्थिति को उजागर किया है। अध्ययन में छह प्रमुख शहरों दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, हैदराबाद, चेन्नई और बेंगलुरु के 23 वर्षों ( जनवरी 2001-अप्रैल 2024) की अवधि के आंकड़ों का विश्लेषण किया गया। इसमें पाया गया कि जहां पहले शहर रात में काफी ठंडे हो जाते थे, वहीं हाल के वर्षों में रात के समय की यह ठंडक काफी कम हो गई है।

उत्तर और पश्चिम भारत में रात के तापमान सामान्य से अधिक होने के कारण गरीबों के स्वास्थ्य को गंभीर खतरा पैदा हो गया है। अधिकतर मजदूर टिन या एस्बेस्टस शीट से बने अस्थायी कमरों में रहते हैं। ये कमरे दिन भर गर्मी सोखते हैं और रात में भट्टी में तब्दील हो जाते हैं। अहमदाबाद स्थित मजदूरों के घर कैसे तप रहे हैं। यह जानने के लिए डाउन टू अर्थ की टीम एक फैक्ट्री में काम करने वाली महिला मजदूर के घर पहुंची।

रात के 10 बज रहे हैं और अहमदाबाद की एक कपड़ा फैक्ट्री में 12 घंटे की शिफ्ट के बाद चंपा डावर अपने छोटे से संकरे कमरे में पंखा चालू किए बिना ही बैठी हैं। वह शिकायत करती हैं, “यह केवल गर्म हवा ही देता और इससे कमरा और भट्ठी बन जाता है।” कमरे के अंदर कोई वेंटिलेशन नहीं है और गर्मी से निपटने के लिए गरीबों के पास पंखा ही होता है। लेकिन रात का तापमान ऐसा है कि पंखा मौजूदा गर्म परिस्थितियों को और भयावह बना रहा है। देश के कई हिस्से अभूतपूर्व गर्मी की स्थिति से गुजर रहे हैं।

सबसे चिंताजनक बात रात के तापमान में असामान्य वृद्धि है। कई उत्तरी और पश्चिमी शहरों में रात का तापमान खतरनाक रूप से अधिक रहा है, जो 30 डिग्री सेल्सियस से ऊपर रहा है। आईएमडी के अनुसार 18 जून, 2024 को दिल्ली में न्यूनतम तापमान 33.8, अहमदाबाद में 30.7, अंबाला में 31.1, अमृतसर में 31.1, अलवर में 37, जयपुर में 33.6 और लखनऊ में 32.6 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया।

यह तापमान साल के जून माह में सामान्य से 3-6 डिग्री सेल्सियस अधिक हैं और यह स्थिति कमजोर आबादी को सबसे अधिक प्रभावित करती है। जैसे चंपा और उनके पति दोनों दिन भर चिलचिलाती गर्मी में काम करते हैं, लेकिन लंबी गर्मी उनके शरीर को रात में भी ठंडा होने का मौका नहीं देती। खुले स्थानों पर काम करने वालों पर अधिक खतरा तब होता है जब न्यूनतम तापमान अधिक होता है।

नेचर कंजर्वेंसी के ग्लोबल साइंस डिवीजन के जलवायु वैज्ञानिक ल्यूक पार्सन्स ने कहा, “जो लोग पूरे दिन गर्मी में रहते हैं, उनके लिए ठंडा होना, शरीर को आराम देना और ठीक होने तक आराम पाना जरूरी है। इसलिए यदि वे ऐसी जगह पर हैं, जहां उनके पास खुद को ठंडा करने का कोई साधन नहीं है और वहां गर्मी बनी रहती है, तो यह उनके स्वास्थ्य पर बुरा असर डाल सकता है। अगर शरीर ठंडा नहीं होता है, तो व्यक्ति को गर्मी से थकावट और हीट स्ट्रोक हो सकता है।”

मई की झुलसाती गर्मी में सैकड़ों कच्ची ईंटों की कतारों के बीच बैठे 34 वर्षीय बिरेश कुमार फरीदाबाद जिले (हरियाणा) के भूपानी गांव में ईंटें पाथ (ढालना) रहे हैं। बिरेश इन दिनों सुबह 8 से दोपहर एक बजे तक और फिर दो घंटे के आराम के बाद इस काम में जुटते हैं। वह कहते हैं, "मेरे शरीर के अंदर का हाड़मांस इन ईंटों की तरह ही सूखता जा रहा है, हालांकि मेरा बाहरी शरीर पसीने से तरबतर हो चुका है लेकिन लगता है कि मेरे शरीर के अंदर के कतरे भी एक-एक करके सूखते जा रहे हैं।'

भारत में काम करने वाले कुल कार्यबल का 82 प्रतिशत हिस्सा असंगठित क्षेत्रों में काम कर रहा है और इसमें करीब 90 प्रतिशत लोगों के पास औपचारिक तौर पर ही रोजगार उपलब्ध है।

भट्ठों पर काम करने वाले मजदूरों को बाहर की तेज गर्मी के साथ ही उस भट्टी की असहनीय गर्मी का भी सामना करना पड़ता है। बिरेश कहते हैं, “इतनी तेज गर्मी में भी हमें काम करना पड़ता है क्योंकि हमारा काम ही ऐसा है।” वह कहते हैं कि घंटों धूप में बैठकर काम करने से मेरे घुटनों में दर्द रहने लगा है।

अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर ऑक्यूपेशनल सेफ्टी एंड हेल्थ की सलाह है कि जो लोग गर्मी में काम करते हैं, उन्हें हर 15-20 मिनट में 237 मिली लीटर पानी पीना चाहिए। लेकिन कुमार और सोमवीर जैसे कामगारों के लिए इसका मतलब होगा दिन के लक्ष्य से चूकना, जिससे रोजी का नुकसान। थोड़ी ही दूरी पर खाट पर बैठे कुमार के सहकर्मी सोमवीर को दो दिनों से शरीर में दर्द, थकान और बुखार है, जिससे उन्हें काम छोड़ना पड़ा और इसके चलते उनकी मजदूरी भी गई।

फरीदाबाद के खेड़ी कलां के सरकारी स्वास्थ्य केंद्र के मेडिकल ऑफिसर नीरज कौशिक ने बताया कि मई-जून के दिनों में डिहाईड्रेशन व बेहोशी की शिकायत लेकर आने वालों में ईंट-भट्ठे के मजदूरों की संख्या इस बार तेजी से बढ़ी है। आर्थिक सर्वेक्षण 2021-22 के अनुसार, बिरेश कुमार और सोमवीर भारत के असंगठित क्षेत्र में कार्यरत लगभग 44 करोड़ लोगों में शामिल हैं। लेकिन उनकी स्थिति दिखाती है कि कैसे श्रमिकों को ग्लोबल वार्मिंग के कारण बढ़ते तापमान की मार झेलने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है।

इस संबंध में आईआईटी दिल्ली के सेंटर फॉर एटमोस्फेरिक साइंस की प्रमुख प्रोफेसर मंजू मोहन ने डाउन टू अर्थ को बताया, “हीटवेव की बढ़ती तीव्रता और अवधि के लिए जलवायु परिवर्तन व स्थानीय प्रभाव मुख्य रूप से जिम्मेदार हैं। जैसे कि निर्माणाधीन संरचनाएं, मानवजनित ऊष्मा और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के कारण शहरों के तापमान में तेजी से वृद्धि हो रही है।” यूरोपीय संघ की कोपरनिकस जलवायु परिवर्तन सेवा की 5 जून 2024 की रिपोर्ट के अनुसार, मई 2024 तापमान के रिकॉर्ड तोड़ने वाला माह साबित हुआ। भारत के लिए 2023 दूसरा सबसे गर्म वर्ष था।

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लू की चपेट

गत 24 मई 2024 को डाउन टू अर्थ टीम ने ईंट-भट्ठों (जिसमें कुमार और सोमवीर काम करते हैं) पर तापमान नापने वाले उपकरण से साइट पर 43 डिग्री सेल्सियस का तापमान रिकॉर्ड किया, जबकि तब आनुपातिक नमी 38.5 प्रतिशत और वेट बल्ब तापमान (यह तापमान और नमी दोनों को दर्शाता है) 30 डिग्री सेल्सियस था। देश के उत्तरी, उत्तर-पश्चिम और मध्य क्षेत्र इन दिनों जबरदस्त लू की चपेट में हैं, जहां 28 मई को राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली के कुछ हिस्सों में तो तापमान 50 डिग्री सेल्सियस से अधिक दर्ज किया गया।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक एक मार्च से 25 मई तक 60 लोगों की मौतें हो चुकी हैं। यही नहीं 21 जुलाई 2023 को लोकसभा में पूछे गए एक सवाल के जवाब में बताया गया, “2015 से 2023 के बीच लू (हीटवेव) से कुल 4,057 लोगों की मृत्यु हुई है।” लू से मरने वालों की यह संख्या एक भयावह आंकड़ा है।

अन्ना विश्वविद्यालय के पर्यावरण अध्ययन केंद्र के प्रोफेसर कोरियन जोसेफ कहते हैं, “लू मानव स्वास्थ्य सहित सभी प्रकार के जीवन के लिए खतरनाक है।” आईएमडी द्वारा जारी “एनुअल क्लाइमेट समरी ऑफ इंडिया” रिपोर्ट में कहा गया है कि 1981-2010 के बीच भारत में सबसे गर्म वर्ष पिछले 14 वर्षों में दर्ज किए गए। इस संबंध में प्रोफेसर कोरियन जोसेफ ने बताया कि गर्मी की गंभीरता केवल तापमान वृद्धि से जुड़ी नहीं है।

चरम गर्मियों में, आर्द्रता का स्तर भी बढ़ जाता है, जिससे गर्मी का तनाव बढ़ जाता है। वह कहते हैं कि अत्यधिक गर्मी का सामना करने पर इंसानों को पसीना आता है। पसीने के वाष्पीकरण से शरीर ठंडा होता है। लेकिन अगर हवा में नमी बहुत अधिक है, तो वाष्पीकरण की दर धीमी या नगण्य होती है। ऐसी स्थिति में, इंसानों द्वारा महसूस की जाने वाली गर्मी देखे गए तापमान से अधिक होती है। ऐसे में शरीर का तापमान बढ़ने लगता है, यह जानलेवा भी साबित हो सकता है।

हालांकि अमेरिका के पेन स्टेट कॉलेज ऑफ हेल्थ एंड ह्यूमन डेवलपमेंट फिजियोलॉजी व काइनेसियोलॉजी के प्रोफेसर डब्ल्यू लैरी केनी कहते, “यह तत्काल खतरा नहीं है, लेकिन राहत है। अगर लोगों को कुछ घंटों के भीतर ठंडा होने के लिए कोई तरीका नहीं मिलता है, तो इससे गर्मी से थकावट, हीट स्ट्रोक और कार्डियोवैस्कुलर सिस्टम पर दबाव पड़ सकता है, जिससे कमजोर लोगों में दिल का दौरा पड़ सकता है।”

केनी कहते हैं कि गर्मी और आर्द्रता का आकलन तापमान और आर्द्रता के संयुक्त प्रभाव को वास्तविक महसूस किए गए तापमान का आकलन करने के लिए किसी क्षेत्र के वेट-बल्ब तापमान की गणना करके पकड़ा जा सकता है।

हीटवेव के कारण दिन तो तप ही रहा है रात के तामपान ने भी रिकॉर्ड तोड़ दिया है। बिहार में हीटवेव से दिन ही नहीं रातें भी अात्याधिक गर्म हुईं हैं। भीषण गर्मी के कारण 29 मई 2024 को राज्य के कई जिलों में 100 से अधिक स्कूली छात्र बेहोश हो गए।

ऐसे में अभिभावकों के हंगामे के बाद राज्य के मुख्यमंत्री ने 8 जून तक सभी सरकारी स्कूलों को बंद करने का आदेश दिया। यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि राज्यभर में जिन स्कूलों का संचालन किया जा रहा है, यह बिहार हीट एक्शन प्लान (एचएपी) का सीधा उल्लंघन है क्योंकि एचएपी के दिशा-निर्देशों के अनुसार मई के अंत तक स्कूलों के समय को समायोजित किया जाना चाहिए था, लेकिन राज्य सरकार ने इस बात की सुध नहीं ली और घटना घटित होने के बाद स्कूलों को बंद करने का आनन-फानन में आदेश जारी किया।

बिहार के आमजन न केवल तपती दोपहरी से जूझ रहे हैं बल्कि वे रातों को भी बहुत अधिक तप रहे हैं। आईएमडी पटना के मौसम वैज्ञानिक एसके पटेल ने डाउन टू अर्थ को बताया कि स्थानीय मौसम विभाग ने 30 मई 2024 को पटना सहित 14 जिलों में तेजी से गर्म होती रातों के लिए ऑरेंज अलर्ट जारी किया था। उन्होंने बताया, “हमने इस साल गर्म रातों का पूर्वानुमान लगाना शुरू कर दिया है क्योंकि लोग रातों में असहज महसूस कर रहे हैं। ऐसी स्थिति पहले कभी नहीं हुई थी।”

औरंगाबाद जिले के रघुनाथपुर निवासी मजहर खान ने कहा कि गर्मी के कारण रात में सोना मुश्किल हो गया है। वह कहते हैं, “रात में पंखे-कूलर कोई काम के नहीं रह गए हैं। रातें गर्म होने से नींद पूरी नहीं हो पा रही है, ऐसे में बीमार होने की संभावना बढ़ गई है।” पटेल ने कहा कि बिहार में दिन के तापमान में वृद्धि के कारण रातें गर्म रहती हैं, क्योंकि तापमान में उल्लेखनीय कमी नहीं आती। गर्म रातें दिन के अधिकतम तापमान और रात के न्यूनतम तापमान पर निर्भर करती हैं।

आईएमडी की 2024 में जारी रिपोर्ट के अनुसार 1980-2020 के दौरान “नम गर्मी के तनाव” की तीव्रता में 30 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई है। आईएमडी की हीटवेव परिभाषा में आर्द्रता को ध्यान में नहीं रखा जाता क्योंकि मौसम विभाग किसी स्थान के वेट-बल्ब तापमान की गणना नहीं करता। ऐसी गर्मी की स्थिति में, घर के अंदर रहना भी अधिकांश लोगों के लिए समाधान नहीं है, विशेषकर गरीबों के लिए।

कुमार और सोमवीर के मामले को ही देखें तो ईंट की दीवारों और टिन की छत वाले उनके अस्थायी घरों में वेंटिलेशन नहीं के बराबर है। ब्रिटेन के कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर रमित देबनाथ ने डाउन टू अर्थ को बताया, “घर के अंदर रहने से वेंटिलेशन और कूलिंग की कमी जैसी खराब स्थितियों के कारण जोखिम और अधिक बढ़ जाता है।” ब्रिटेन की रॉयल स्टैटिस्टिकल सोसाइटी द्वारा प्रकाशित पत्रिका सिग्निफिकेंस में किए गए विश्लेषण के अनुसार 2005 के आंकड़े भारत में महिलाओं की गर्मी से हुई मौतों में धीरे-धीरे वृद्धि को दर्शा रहे हैं।

भारत में महिलाओं को पुरुषों की तुलना में 54 प्रतिशत अधिक समय तक घर के अंदर बिताना पड़ता है। कुमार और सोमवीर के लिए देर शाम या रात तक काम करना भी कोई विकल्प नहीं है, क्योंकि गर्मियों में सूर्यास्त के बाद तापमान में कोई गिरावट नहीं आती, जबकि आर्द्रता का स्तर काफी बढ़ जाता है। सोमवीर कहते हैं, “मुझे इस काम की आदत थी और गर्मी की कभी चिंता नहीं करता था, लेकिन पिछले दो सालों में धूप में काम करना मेरे लिए असंभव हो गया है।”

भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा ईंट उत्पादक देश  है। इस क्षेत्र में 2. 3 करोड़ लोगों को राेजगार मिलता है। लेकिन इन मजदूरों पर लगातार अत्याधिक गर्मी का खतरा बना रहता है (फोटो : जोयल माइकल / सीएसई)
भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा ईंट उत्पादक देश है। इस क्षेत्र में 2. 3 करोड़ लोगों को राेजगार मिलता है। लेकिन इन मजदूरों पर लगातार अत्याधिक गर्मी का खतरा बना रहता है (फोटो : जोयल माइकल / सीएसई)धधकती धरती

कितनी गर्मी कार्य करने के लिहाज से अधिक

अमेरिका में व्यावसायिक सुरक्षा व स्वास्थ्य के लिए राष्ट्रीय संस्थान की सिफारिशें गर्म वातावरण में 34 डिग्री सेल्सियस तापमान और 30 प्रतिशत आनुपातिक नमी की स्थिति में काम करने की अनुमति देती हैं। 2024 का हर महीना अब तक वैश्विक गर्मी का रिकॉर्ड तोड़ रहा है। इस साल 1850 के बाद पहली बार इतनी गर्मी जनवरी में देखी गई, उसके बाद मार्च बहुत ही गर्म महीना रहा और अब मई रिकॉर्ड तोड़ने वाला माह बन गया है।

15 मई, 2024 को एक वैश्विक अध्ययन में वर्ल्ड वेदर एट्रिब्यूशन ग्रुप के 13 प्रमुख जलवायु वैज्ञानिकों की एक अंतरराष्ट्रीय टीम के विश्लेषण के अनुसार, भारत समेत पूरे एशिया में रिकॉर्ड तोड़ने वाली इस गर्मी की बढ़ोतरी में जलवायु परिवर्तन व अलनीनो के प्रभाव ने मुख्य भूमिका निभाई है।

जलवायु परिवर्तन से उपजी लू ने एक तरफ पूरी दुनिया पर असर डाला है, वहीं दूसरी ओर कड़े शारीरिक श्रम करने वाले मजदूरों को पहले से कहीं ज्यादा खतरे में डाल दिया है क्योंकि वे सीधे धूप का सामना करते हैं। कई और प्रकार के काम करने वाले जैसे खेतिहर मजदूर, निर्माणाधीन साइटों के मजदूर, गिग वर्कर्स, ऑटो रिक्शा चालक, गलियों में ठेले पर सामान बेचने वाले लोग शामिल हैं। इनका काम ही ऐसा है और आर्थिक स्थितियां भी ऐसी हैं कि उन्हें लू के मौसम में भी बाहर निकलकर काम करना ही पड़ता है।

उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले के लालपुर गांव के खेत में मेड़ बांध रहे मधुसूदन कहते हैं कि ये काम तो मैं पिछले 10 सालों से कर रहा हूं लेकिन, पिछले एक-दो साल से यह काम करना सूरज देव ने असंभव कर दिया है, इस गर्मी में लगता है कपार (सिर) ही फट जाएगा।

वहीं दूसरी ओर पश्चिम राजस्थान के जाडन गांव की 58 वर्षीय जमना बाई दिहाड़ी मजदूर हैं, उनकी मानें तो वह 16 साल की उम्र से मजदूरी कर रहीं हैं। उन्होंने जीवन में मौसम को लेकर कई बदलाव देखे हैं, पर अब वह कहती हैं, “विगत दो-एक सालों में मजूरी करते समय गर्म हवा के थपेड़े अब सहन नहीं हो रहे। तेज आंधी ने तो हमारे इलाके के रेतीले टीले को न जाने कहां गायब कर दिया है।”

वह कहती हैं कि अब तो रातें भी गर्म होने लगी हैं। पहले तो हम रात में 12 बजे के बाद रजाई रखते थे। इस संबंध में राजस्थान विश्वविद्यालय पर्यावरण विभाग के पूर्व प्रमुख टीआई खान ने बताया कि भारत में हीटवेव तीसरी ऐसी आपदा है जिसमें सबसे अधिक मौतें होती हैं। वह बताते हैं, “पिछले एक दशक से इस इलाके में रेतीले टीले खत्म होते जा रहे हैं। तेज आंधी से ये बस्तियों से दूर होते जा रहे हैं। ऐसे में अब इस इलाके में बस ठोस जमीन ही बच रही है, जिसे ठंडी होने में समय लगता है। जब रेत थी तो वह जितनी तेजी से गर्म होती थी, उतनी ही तेजी से ठंडी भी हो जाती थी।”

गर्मी के दिनों में बाहर काम करने वालों के लिए काम करना लगातार मुश्किल होते जा रहा है। इस संबंध में पटना मेडिकल कॉलेज के पूर्व मेडिसीन और गैस्ट्रो विभागाध्यक्ष विजय प्रकाश ने बताया कि जिन लोगों के शरीर में पानी या पोषण की कमी होती है, उनका शरीर जल्दी गर्म हो जाता है। पानी या पोषण की कमी वाले लोगों के शरीर में हीट निकालने वाला तंत्र कमजोर होता है। वह कहते हैं कि हाइपरथर्मिया की स्थिति में शरीर अपना सामान्य काम नहीं कर पाता और यह स्थिति जानलेवा होती है।

सोमवीर 6 साल से अलग-अलग ईंट-भट्ठों पर काम रहे हैं। वह कहते हैं कि पिछले एक-दो सालों से गर्मी हमारे शरीर के सहन करने की क्षमता का इम्तिहान ले रही है। यही काम कुछ समय पहले तक सामान्य लगता था। कुमार और सोमवीर मिलकर प्रतिदिन औसतन 2,500 ईंटें बनाते हैं और प्रति 1,000 ईंटों पर 520 रुपए कमाते हैं। हालांकि, तापमान बढ़ने पर उनके द्वारा बनाई जाने वाली ईंटों की संख्या में कमीबेशी हो जाती है और इसके कारण उनके हाथ में पैसे भी कम आते हैं।

अप्रत्यािशत लू
स्रोत: भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के आंकड़ों का विश्लेषण डाउन टू अर्थ ने किया है। आईएमडी द्वारा रोजाना जारी होने वाले आंकड़ों और 14 जून, 2024 को जारी हीटवेव मैप के आधार पर तैयार किया गया हैअप्रत्यािशत लू

अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) ने 2019 की रिपोर्ट में अनुमान लगाया है कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण भारत में 2030 तक 5.8 प्रतिशत कामकाजी घंटों का नुकसान संभव है, जो उत्पादकता के हिसाब से 3.4 करोड़ पूर्णकालिक नौकरियों के बराबर है। विश्व बैंक के अनुमान के अनुसार, भारत में मजदूरी करने वाले लगभग 3.8 करोड़ लोगों पर गर्मी का सीधा प्रभाव पड़ता है।

ईंट भट्ठों में ईंधन डालने वाले मजदूर लगातार सूरज की गर्मी के साथ ही भट्ठे के अंदर की गर्मी का भी सामना करते हैं। वे भट्टों में 1,100 से 1,200 डिग्री सेल्सियस के तापमान पर ईंटों को पकाते हैं। डाउन टू अर्थ ने 24 मई को जिस भट्ठे का दौरा किया, उनमें से 7 मजदूरों का एक समूह लगातार भट्ठों में ईंधन डालने के काम में लगा हुआ था। उस समय दिन के साढ़े तीन बज रहे थे और तब सामान्य तापमान 48 डिग्री सेल्सियस और वेट बल्ब तापमान 30.3 डिग्री सेल्सियस था।

वहां से महज दो सौ मीटर की दूरी पर तापमान रिकॉर्ड किया गया तो वह दो डिग्री सेल्सियस कम यानी 46 डिग्री सेल्सियस पाया गया। भारत दुनिया में दूसरा सबसे बड़ा ईंट उत्पादक देश है। यहां इस क्षेत्र में हर साल 233 करोड़ ईंटों का निर्माण होता है और लगभग 2.3 करोड़ लोगों को रोजगार मिलता है। इन मजदूरों को अत्यधिक गर्मी का खतरा लगातार बना रहता है। ईंट उद्योग तेजी से आगे बढ़ रहा है क्योंकि बढ़ते शहरीकरण के कारण ईंटों की मांग में भी लगातार तेजी बनी हुई है।

दिल्ली के पास द्वारका एक्सप्रेस-वे पर राजमिस्त्री का काम कर रहे मधु मंडल की यह बात चौंकती है, “क्या कोई ऐसी जगह भी मिलेगी, जहां मजदूरी के समय गर्मी से छुटकारा मिले सके।” मधु और उनकी पत्नी द्वारका एक्सप्रेस-वे की एक निर्माणाधीन साइट पर काम करते हैं। ईंट-भट्ठा क्षेत्र तेजी से बढ़ते निर्माण उद्योग को मदद करता है। इसके 2024 से 2033 के बीच 06 प्रतिशत की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर से बढ़ने का अनुमान है।

राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय 2016-17 के अनुसार, यह क्षेत्र भारत में कृषि के बाद दूसरा सबसे बड़ा नियोक्ता है, जो लगभग 7.4 करोड़ मजदूरों को रोजगार देता है। एक ऐसे देश में जहां सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी का लगभग 50 प्रतिशत योगदान उन मजदूरों द्वारा किया जाता है, जो सीधे गर्मी के संपर्क में रहकर काम करते हैं, क्या वहां सुरक्षा के पर्याप्त उपाय हैं?

मोटे तौर पर इसका जवाब है, नहीं। गुजरात के अहमदाबाद में एक निर्माणाधीन शाॅपिंग मॉल के टॉप फ्लोर पर काम करने वाले पासवान अपने मैनेजर से काम करने वाली जगह पर ग्रीन नेट लगाने का अनुरोध करते हैं, लेकिन उनकी बात अनसुनी कर दी जाती है। ऐसे में जब उन्हें ब्रेक मिलता है, तो वह छाया तलाशते हैं। बाहरी कार्यस्थल के विभिन्न स्थानों पर तापमान रीडिंग से पता चला कि खुले क्षेत्र की तुलना में छायादार क्षेत्र में तापमान 3-4 डिग्री सेल्सियस तक कम रहता है।

ग्लोबल वार्मिंग
आईएलओ के अनुसार ग्लोबल वार्मिंग के कारण भारत में 2030 तक 5.8 प्रतिशत कामकाजी घंटों का नुकसान संभव है। यह उत्पादकता के हिसाब से 3.4 करोड़ पूर्णकालिक नौकरियों के बराबर है (फोटो : विकास चौधरी / सीएसई)

दिल्ली स्थित सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) के अध्ययन की प्रमुख और सीएसई की कार्यकारी निदेशक अनुमिता राॅयचौधरी ने कहा, “हरे स्थानों को बढ़ाने से तापमान को 5 डिग्री सेल्सियस तक कम किया जा सकता है। अहमदाबाद स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ऑक्यूपेशनल हेल्थ-इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च द्वारा 29 निर्माण मजदूरों के साथ किए गए एक अध्ययन के अनुसार गर्मी के महीनों के दौरान निर्माणाधीन कार्यस्थलों पर गर्मी का जोखिम बहुत अधिक होता है।

ऐसे स्थानों का वेट बल्ब तापमान ही 33 डिग्री तक पहुंच जाता है। यह गर्म वातावरण में मध्यम स्तर की कार्य गतिविधियों के लिए अंतरराष्ट्रीय मानक सीमा से अधिक है। नेचुरल रिसोर्सेज डिफेंस काउंसिल इंडिया में स्वास्थ्य और क्लाइमेट रेजीलिएंस के प्रमुख ए. तिवारी के अनुसार, “जलवायु परिवर्तन से बढ़े सभी खतरों के बीच, गर्मी नि:संदेह एक बड़ी आपदा है, जो आगे और बढ़ जाएगी। किसी देश के विकास के दौरान आपदा जोखिम पर भी निश्चित तौर पर विचार किए जाने की जरूरत है।”

(इस स्टोरी के लिए पुलित्जर सेंटर के सहयोग से कुछ इलाकों की यात्रा की गई)

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