रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचा क्लोरोफ्लोरोकार्बन, ओजोन को कर सकता है कमजोर

सीएफसी शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैसें हैं जो कार्बन डाइऑक्साइड की तुलना में 10 हजार गुना अधिक तेजी से गर्मी को फंसाते हैं, यही ग्लोबल वार्मिंग का सबसे बड़ा कारण है जो जलवायु में बदलाव के लिए जिम्मेवार है
फोटो साभार : विकिमीडिया कॉमन्स, सुयश द्विवेदी
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धरती को सूर्य से बचाने वाली ओजोन परत को कमजोर करने वाली क्लोरोफ्लोरोकार्बन पर दुनिया भर में प्रतिबंध लगा दिया गया था, लेकिन वैज्ञानिकों ने खुलासा किया कि कुछ मानव निर्मित क्लोरोफ्लोरोकार्बन रिकॉर्ड स्तर तक पहुंच गई है। जलवायु में बदलाव करने वाला यह उत्सर्जन लगातार बढ़ रहा है।

अध्ययन के अनुसार, मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के तहत प्रतिबंधित होने के बावजूद, पांच क्लोरोफ्लोरोकार्बन (सीएफसी) 2010 से 2020 तक वातावरण में तेजी से बढ़ गए, जो 2020 में रिकॉर्ड-उच्च स्तर तक पहुंच गए।

अध्ययन में कहा गया है कि यह वृद्धि शायद हाइड्रोफ्लोरोकार्बन (एचएफओ) सहित सीएफसी को बदलने के लिए बने रसायनों के उत्पादन के दौरान रिसाव के कारण हुआ था।

हालांकि मौजूदा स्तरों पर वे ओजोन परत की बहाली के लिए खतरा नहीं हैं, वे वातावरण को गर्म करने वाले अन्य उत्सर्जन में शामिल होकर एक अलग खतरे को बढ़ा सकते हैं।

सह-अध्ययनकर्ता इसहाक विमोंट ने कहा, यदि आप इन अगली पीढ़ी के यौगिकों के उत्पादन के दौरान ग्रीनहाउस गैसों और ओजोन को कमजोर करने वाले पदार्थों का उत्पादन कर रहे हैं, तो उनका जलवायु और ओजोन परत पर अप्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है। विमोंट, अमेरिका के नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन में ग्लोबल मॉनिटरिंग लेबोरेटरी में शोधकर्ता है। 

ग्लोबल कार्बन प्रोजेक्ट के आंकड़ों के मुताबिक, सीएफसी शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैसें हैं जो कार्बन डाइऑक्साइड की तुलना में 10 हजार गुना अधिक तेजी  से गर्मी को फंसाते हैं, यही ग्लोबल वार्मिंग का सबसे बड़ा कारण है जो जलवायु में बदलाव के लिए जिम्मेवार है।

1970 से 1980 के दशक में, सीएफसी का ठंडा करने के लिए और एयरोसोल स्प्रे में उपयोग किया जाता था। लेकिन इसके उपयोग के कारण अंटार्कटिका के ऊपर ओजोन परत में छेद का पता चला, जिसके बाद सीएफसी को प्रतिबंधित करने के लिए 1987 में वैश्विक समझौता किया गया।

इस समझौते को मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के नाम से जाना जाता है, इसके लागू होने के बाद, दुनिया भर में सीएफसी की मात्रा में लगातार गिरावट देखी गई।

ओजोन का कमजोर पड़ना एक शुरुआती चेतावनी

अध्ययन ने 2010 में दुनिया भर से इसको खत्म करने या वैश्विक फेज-आउट के बिंदु से शुरुआत करते हुए या कुछ वर्तमान में उपयोग की जाने वाले पांच सीएफसी का विश्लेषण किया।

ब्रिस्टल यूनिवर्सिटी और ग्लोबल मॉनिटरिंग लेबोरेटरी के सह-अध्ययनकर्ता ल्यूक वेस्टर्न ने कहा कि उन उत्सर्जनों का अब तक ओजोन परत पर मामूली प्रभाव पड़ा है और थोड़ा अधिक प्रभाव जलवायु पर पड़ा है। वे स्विट्जरलैंड के 2020 में सीओ2 उत्सर्जन के बराबर हैं, यह अमेरिका के कुल ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का लगभग एक प्रतिशत के बराबर है।

अध्ययन के मुताबिक प्रत्यक्ष माप शुरू होने के बाद से 2020 में सीएफसी की सभी पांचों गैसें अपनी उच्चतम स्तर पर थीं। लेकिन अगर इसी तरह तेजी जारी रहती है, तो उनका प्रभाव बढ़ जाएगा।

शोधकर्ताओं ने अपने निष्कर्षों को एक नए तरीके की शुरुआती चेतावनी कहा जिसमें सीएफसी ओजोन परत को खतरे में डाल रहे हैं। उत्सर्जन के उन प्रक्रियाओं के कारण होने की आशंका है जो वर्तमान में प्रतिबंध और अप्रतिबंधित उपयोगों के अधीन नहीं हैं।

मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल द्वारा प्रतिबंधित, उनको बदलने के लिए विकसित औद्योगिक एरोसोल की श्रेणी को अगले तीन दशकों में 1987 की संधि के हालिया संशोधन के तहत चरणबद्ध तरीके से समाप्त किया जाना है।

सीएफसी के अज्ञात स्रोत

प्रोटोकॉल ओजोन को कमजोर करने वाले पदार्थों के निकलने पर अंकुश लगाता है जो वातावरण में फैल सकते हैं, लेकिन कच्चे माल या उप-उत्पादों के रूप में अन्य रसायनों के उत्पादन में उनके उपयोग पर प्रतिबंध नहीं लगाते हैं।

यह पहली बार नहीं था कि अघोषित उत्पादन का सीएफसी स्तरों पर प्रभाव पड़ा। 2018 में वैज्ञानिकों ने पाया कि सीएफसी की गति पिछले पांच वर्षों की तुलना में आधी हो गई थी।

शोधकर्ताओं ने कहा कि उस मामले में साक्ष्य पूर्वी चीन में कारखानों की ओर इशारा करते हैं। एक बार जब उस क्षेत्र में सीएफसी का उत्पादन बंद हो गया, तो यह वापस पटरी पर आ गया।

अध्ययन में कहा गया है कि सीएफसी उत्सर्जन में हालिया वृद्धि के सटीक स्रोत को जानने के लिए और शोध की आवश्यकता है।

राष्ट्रव्यापी आंकड़ों की कमी के चलते यह निर्धारित करना मुश्किल हैं कि गैसें कहां से आ रही हैं और विश्लेषण किए गए कुछ सीएफसी के उपयोग के बारे में जानकारी नहीं है। वेस्टर्न ने कहा लेकिन ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के मामले में इन उत्सर्जन को खत्म करना एक आसान जीत है। यह अध्ययन नेचर जियोसाइंस नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।

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