भारत सहित दुनिया के कई देशों में गर्मी ने झुलसाया, कौन है जिम्मेवार

क्यों भारत के कई हिस्से इतना ज्यादा तप रहे हैं। क्या इसके लिए सिर्फ जलवायु में आता बदलाव जिम्मेवार है या फिर बढ़ता शहरीकरण, घटते पेड़ और जलस्रोत भी वजह हैं
गर्मियों के साथ तापमान का बढ़ना और लू जैसी घटनाओं का होना कोई नया नहीं है। लेकिन जिस तरह से पिछले कुछ वर्षों से इनका जोखिम बढ़ रहा है वो आम आदमी के लिए नई चुनौतियां पैदा कर रहा है; फोटो: आईस्टॉक
गर्मियों के साथ तापमान का बढ़ना और लू जैसी घटनाओं का होना कोई नया नहीं है। लेकिन जिस तरह से पिछले कुछ वर्षों से इनका जोखिम बढ़ रहा है वो आम आदमी के लिए नई चुनौतियां पैदा कर रहा है; फोटो: आईस्टॉक
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भारत सहित दुनिया के कई हिस्सों में बढ़ती गर्मी से हालात बेकाबू होते जा रहे हैं। देश में स्थिति किस कदर खराब हो चुकी है इसका अंदाजा राजधानी दिल्ली में बढ़ते तापमान को देखकर लगाया जा सकता है, जहां 29 मई को ज्यादातर जगहों पर अधिकतम तापमान 45 डिग्री सेल्सियस को पार कर गया।

कई जगहों पर तो यह 48 से 49 डिग्री के बीच भी रहा। सबसे ज्यादा हैरान कर देने वाले आंकड़े तो मुंगेशपुर से सामने आए जहां अधिकतम तापमान 53 डिग्री सेल्सियस के करीब तक पहुंच गया।

हालात किस कदर खराब हो गए कि भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) को दिल्ली में बढ़ते तापमान के बारे में अलग से जानकारी तक साझा करनी पड़ी। कुछ ऐसी ही स्थिति पड़ोसी देश पाकिस्तान की भी है, पाकिस्तानी मौसम विभाग के मुताबिक सिंध प्रान्त में गत सोमवार को तापमान 52.2 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया। नतीजन लू और भीषण गर्मी ने लोगों के लिए रोजमर्रा की जिंदगी को बेहद मुश्किल बना दिया है।

ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्यों भारत के कई हिस्से इतना तप रहे हैं। क्या इन सबके लिए सिर्फ जलवायु में आता बदलाव जिम्मेवार है। या हम इंसानों ने जिस तरह प्रकृति के साथ छेड़छाड़ की है उसका भी असर अब हम पर पड़ रहा है।

वैज्ञानिकों की मानें तो इसमें कोई शक नहीं कि वैश्विक स्तर पर बढ़ता तापमान हर दिन नए रिकॉर्ड बना रहा है। इसका नजारा वर्ष की शुरूआत से ही दिखने लगा था जब 2024 के शुरूआती चारों महीनों ने बढ़ते तापमान का रिकॉर्ड कायम किया था। अप्रैल 2024 में तो वैश्विक तापमान सामान्य से 1.32 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ गया।

नेशनल ओशनिक एंड एटमोस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन के साथ-साथ अप्रैल 2024 के अब तक के सबसे गर्म अप्रैल होने की पुष्टि यूरोप की कॉपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस (सी3एस) ने भी की थी। वैज्ञानिक भी 2024 के अब तक के सबसे गर्म वर्ष होने की 61 फीसदी आशंका जाता चुके हैं। दक्षिण पूर्व एशिया के लिए भी यह अब तक का सबसे गर्म अप्रैल रहा। जब भीषण गर्मी और लू के थपेड़ों ने इस क्षेत्र को बड़े पैमाने पर प्रभावित किया।

जलवायु परिवर्तन की भूमिका से नहीं किया जा सकता इंकार

भारत, दक्षिण-पूर्व चीन और फिलीपींस के कई क्षेत्रों में अप्रैल के दौरान भीषण गर्मी और लू का कहर दर्ज किया गया। भारतीय मौसम विभाग ने भी पुष्टि की है कि 1901 के बाद से पूर्वी भारत के लिए यह अब तक का सबसे गर्म अप्रैल था

आंकड़ों की मानें तो जून 2023 से कोई भी महीना ऐसा नहीं रहा जब बढ़ते तापमान ने रिकॉर्ड न बनाया हो। देखा जाए तो धरती ही नहीं समुद्र भी तप रहे हैं, जहां बढ़ता तापमान नए शिखर तक पहुंच गया है।

एशिया में भारत के साथ-साथ, बांग्लादेश, म्यांमार, नेपाल, मलेशिया और फिलीपींस में भीषण गर्मी पड़ रही है। अकेले बांग्लादेश के 64 में से 57 जिले इस दौरान भीषण गर्मी से जूझ रहे थे, यानी 12 करोड़ से ज्यादा लोग इससे प्रभावित हुए हैं। म्यांमार में 28 अप्रैल 2024 को पारा 48.2 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया जो उस देश में दर्ज अब तक का सबसे ज्यादा तापमान है। इसी तरह नेपाल का नेपालगंज शहर पिछले कई हफ्तों से 40 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा तापमान की चपेट में है।

इसी तरह अफ्रीका के कई हिस्सों में भी इस साल लम्बे समय तक लू का कहर जारी था। बांग्लादेश, फिलीपींस और दक्षिण सूडान में भीषण गर्मी और लू से स्थिति इस कदर बिगड़ गई कि वहां स्कूलों तक को बंद कर देना पड़ा।

दुनिया में तेजी से बढ़ते तापमान की छवि को स्पष्ट करती एक और रिपोर्ट क्लाइमेट सेंट्रल ने जारी की है। इस रिपोर्ट के मुताबिक जलवायु में आते बदलावों के चलते पिछले साल मानव जाती को औसतन 26 दिन ज्यादा गर्मी सहनी पड़ी। वैज्ञानिकों की मानें तो जलवायु में बदलाव न होते तो यह स्थिति न बनती।

उनके मुताबिक 2023 अब तक का सबसे गर्म वर्ष था और उसकी सबसे बड़ी वजह हम इंसानों द्वारा किया जा रहा उत्सर्जन था। मतलब की हम इंसान ही हैं जिसने बढ़ते तापमान को नए शिखर तक पहुंचा दिया है। इस रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया की 78 फीसदी आबादी यानी 630 करोड़ लोग मई 2023 से ही असामान्य गर्मी से जूझ रहे हैं।

समय के साथ बढ़ रहा गर्मी और लू का कहर

आंकड़ों की मानें तो मई 2023 से मई 2024 के बीच इस आबादी ने 12 महीनों की अवधि में कम से कम 31 दिनों तक भीषण गर्मी का सामना किया था। जो 1991 से 2020 के बीच स्थानीय स्तर पर दर्ज 90 फीसदी तापमान से अधिक थी। इस भीषण गर्मी में इंसानों के कारण हो रहे जलवायु परिवर्तन की भूमिका कम से कम दोगुणी थी।

यह रिपोर्ट क्लाइमेट सेंट्रल, वर्ल्ड वेदर एट्रिब्यूशन, और रेड क्रॉस रेड क्रिसेंट क्लाइमेट सेंटर द्वारा जारी की गई है। इस रिपोर्ट में वैज्ञानिकों ने 15 मई 2023 से 15 मई 2024 के बीच भीषण गर्मी और लू पर जलवायु परिवर्तन के पड़ते प्रभावों का विश्लेषण किया है।

इस अध्ययन में वैज्ञानिकों ने 90 अलग-अलग देशों में सामने आई भीषण गर्मी और लू की 76 घटनाओं की पहचान की है। इन घटनाओं ने दक्षिण और पूर्वी एशिया, से लेकर अफ्रीका में साहेल, दक्षिण अमेरिका के घनी आबादी वाले क्षेत्रों सहित अरबों लोगों के जीवन को खतरे में डाल दिया था। वैज्ञानिकों ने इस बात की भी पुष्टि की है कि गर्मी में आया यह अंतर क्षेत्र और देश के आधार पर अलग-अलग रहा।

जहां कुछ देशों में सिर्फ दो या तीन सप्ताह ज्यादा गर्मी पड़ी। वहीं कोलंबिया, इंडोनेशिया और रवांडा जैसे देशों में 120 दिन से भी ज्यादा सामान्य से ज्यादा गर्मी पड़ी। उदाहरण के लिए जलवायु परिवर्तन के बिना सूरीनाम में बेहद गर्म दिनों की संख्या 182 के बजाय 24 होती। इसी तरह इक्वाडोर में भी यह आंकड़ा 180 के बजाय 10, गुयाना में 174 के बजाय 33, अल साल्वाडोर में 163 के बजाय 15 और पनामा में 149 के बजाय 12 होता। वहीं भारत में 35 के बजाय 15 होता।

आंकड़ों की माने तो पिछले एक साल में भीषण गर्मी और लू से दसियों हजार लोगों की मौत हुई है, लेकिन रिपोर्ट के मुताबिक वास्तविक आंकड़े इससे कहीं ज्यादा हो सकते हैं, अंदेशा है कि लाखों लोग इस भीषण गर्मी शिकार बने हैं। चूंकि गर्मी और लू अन्य आपदाओं की तुलना में धीरे-धीरे जान लेती है और इसका प्रभाव ज्यादा स्पष्ट नहीं होता, ऐसे में इसका शिकार बने लोगों की पहचान आसान नहीं होती।

मोनाश विश्विद्यालय ने अपनी एक नई रिसर्च में खुलासा किया है, लू और गर्म हवाएं हर साल दुनिया भर में 153,078 जिंदगियों को निगल रही हैं। इससे ज्यादा परेशान करने वाला क्या हो सकता है कि इनमें से हर पांचवी मौत भारत में हो रही है। यदि आंकड़ों की मानें तो भारत में लू की वजह से हर साल औसतन 31,748 मौतें हो रही हैं। ऐसे में बढ़ती गर्मी और लू से बचाव के लिए कहीं ज्यादा संजीदा रहने की जरूरत है।

ऐसे में इस बात से कतई भी इंकार नहीं किया जा सकता कि देश दुनिया में पड़ती भीषण गर्मी और लू में जलवायु परिवर्तन और उसकी वजह से तापमान में होती वृद्धि का बहुत बड़ा हाथ है। लेकिन दिल्ली जैसे भारतीय शहरों में इतना ज्यादा तापमान और गर्मी की तपिश क्यों महसूस किया जा रहा है, क्योंकि सिर्फ जलवायु परिवर्तन अकेले इस बढ़ती गर्मी की वजह नहीं हो सकता।

इन्सानों के विनाश की वजह बन रही उसकी खुद की महत्वाकांक्षा

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), भुवनेश्वर ने भी अपनी रिपोर्ट में इस पर प्रकाश डाला है, जिसके मुताबिक भारतीय शहरों में बढ़ती गर्मी के लिए बढ़ता शहरीकरण और पेड़ों, जलस्रोतों का होता विनाश भी जिम्मेवार है। 140 से अधिक शहरों पर किए इस अध्ययन के मुताबिक शहरीकरण की वजह से देश के इन शहरों में गर्मी आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में औसतन 60 फीसदी अधिक है।

इस रिपोर्ट के मुताबिक जबलपुर, गोरखपुर, आसनसोल, जमशेदपुर, मंगलौर में पड़ती गर्मी पर शहरीकरण का सबसे ज्यादा असर देखा गया। इसी तरह ओडिशा के भुवनेश्वर में शहरीकरण ने बढ़ते तापमान में करीब 90 फीसदी का योगदान दिया है। दिल्ली में पड़ती भीषण गर्मी के 32.6 फीसदी हिस्से के लिए शहरीकरण को जिम्मेवार माना है।

भारतीय शहरों में बढ़ते तापमान, भीषण गर्मी और लू को लेकर हाल ही में सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) ने भी रिपोर्ट जारी की है। 'डिकोडिंग द अर्बन हीट स्ट्रेस अमंग इंडियन सिटीज' नामक इस रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली, मुंबई, हैदराबाद, बेंगलुरु, कोलकाता और चेन्नई जैसे शहरों अब रात में भी ठन्डे नहीं हो रहे। गौरतलब है कि 2001 से 10 के दौरान गर्मियों में जमीन की सतह का तापमान दिन के अधिकतम तापमान की तुलना में रात में 6.2 से 13.2 डिग्री सेल्सियस तक गिर जाता था।

सीएसई ने सुझाया समाधान

लेकिन पिछली 10 गर्मियों में 2014 से 23 के बीच रात के समय तापमान में आने वाली यह गिरावट घटकर 6.2 से 11.5 डिग्री सेल्सियस के बीच रह गई है। रिपोर्ट में लैंसेट प्लैनेटरी हेल्थ में प्रकाशित एक अध्ययन का हवाला देते हुए कहा है कि अत्यधिक गर्म रातों में मौत का खतरा करीब छह गुणा तक बढ़ जाएगा।

सीएसई की अर्बन लैब के सीनियर प्रोग्राम मैनेजर अविकल सोमवंशी का कहना है कि, “गर्म रातें दोपहर के चरम तापमान जितनी ही खतरनाक होती हैं। अगर रात भर तापमान अधिक रहता है, तो लोगों को दिन की गर्मी से उबरने का मौका कम मिलता है।“

यह अध्ययन जनवरी 2001 से अप्रैल 2024 के आंकड़ों के विश्लेषण पर आधारित है। इस अध्ययन के मुताबिक कुछ शहरों में हवा का तापमान बहुत ज्यादा नहीं बढ़ा है, लेकिन बढ़ती नमी लोगों के लिए गर्मी के तनाव को बढ़ा रही है।

रिपोर्ट में इस बात की भी पुष्टि की है कि बेंगलुरु को छोड़कर, दिल्ली सहित अन्य पांच महानगरों में 2001 से 2010 के औसत की तुलना में 2014 से 2023 के बीच गर्मियों के दौरान औसत सापेक्ष आर्द्रता में पांच से दस फीसदी का इजाफा हुआ है। इसके साथ ही रिपोर्ट में जानलेवा गर्मी के लिए बढ़ते शहरीकरण को भी जिम्मेवार माना है।

रिपोर्ट ने पुष्टि की है कि सभी शहरों में निर्मित क्षेत्र और बढ़ते कंक्रीट में भारी इजाफा हुआ है। यह कंक्रीट अर्बन हीट आइलैंड इफेक्ट में इजाफा कर रहा है, जिसकी वजह से शहर और ज्यादा गर्म हो रहे हैं। देखा जाए तो शहरों में बढ़ता कंक्रीट और डामर गर्मी को रोके रखता है। नतीजन हवा में बढ़ता तापमान और नमी गर्मी के तनाव को बढ़ा रही है।

रिपोर्ट में इस बात पर भी प्रकाश डाला है कि पिछले दस वर्षों में दिल्ली, मुंबई, कोलकाता में मानसून सीजन और ज्यादा गर्म हो गया है। वहीं चेन्नई में मानसून के साथ देखी जाने वाली मामूली ठंड गायब हो चुकी है। हालांकि बेंगलुरू और हैदराबाद में मानसून सीजन अभी भी प्री-मानसून की तुलना में थोड़ा ठंडा है, लेकिन इस दौरान महसूस की जाने वाली ठंडक में गिरावट आई है।

इस बढ़ती गर्मी के लिए पेड़ों का कम होना भी जिम्मेवार है। उदाहरण के लिए जहां चेन्नई में पिछले दो दशकों में हरित क्षेत्र में करीब 14 फीसदी की कमी आई है, वहीं कंक्रीटीकरण दोगुना हो गया है। रिपोर्ट में बढ़ते उत्सर्जन, एयर कंडीशनर, रेफ्रिजरेटर आदि की वजह से वातावरण पर पड़ते असर को भी उजागर किया है, जिनकी वजह से एक तरफ जहां बिजली की मांग बढ़ रही है। साथ ही गर्मी में भी इजाफा हो रहा है।

ऐसे में जहां बढ़ते उत्सर्जन और तापमान पर लगाम लगाना जरूरी है। साथ ही शहरी योजना बनाते समय भी इसपर ध्यान देने की जरूरत है। सीएसई ने भी अपनी रिपोर्ट में हरित क्षेत्रों और जलाशयों का विस्तार करने पर जोर दिया है। रिपोर्ट में न केवल लू और भीषण गर्मी के दौरान आपातकालीन कदम उठाने की बात कही है साथ थी ऐसी योजनाओं को लागू करने की सिफारिश की है, जिनकी मदद से शहरों में बढ़ती गर्मी से निपटा जा सके। इनमें इमारतों, वाहनों और उद्योगों की वजह से बढ़ती गर्मी पर ध्यान देने पर जोर दिया है।

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