हिंद महासागर के तेजी से गर्म होने से बढ़ेगी विनाशकारी घटनाएं, अध्ययन में दी गई चेतावनी

महासागरों के तेजी से गर्म होने के बीच, सतह के तापमान के मौसमी चक्र में बदलाव होने का अनुमान है, जिससे इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में चरम मौसम की घटनाएं बढ़ सकती हैं
समुद्री हीटवेव के कारण प्रवाल विरंजन, समुद्री घास का विनाश, जिससे मत्स्य पालन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। वे चक्रवातों की तीव्रता में भी बढ़ोतरी करते हैं।  फोटो साभार: आईस्टॉक
समुद्री हीटवेव के कारण प्रवाल विरंजन, समुद्री घास का विनाश, जिससे मत्स्य पालन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। वे चक्रवातों की तीव्रता में भी बढ़ोतरी करते हैं। फोटो साभार: आईस्टॉक
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एक नए अध्ययन के अनुसार, 2020 से 2100 के बीच हिंद महासागर की सतह का तापमान 1.7 से 3.8 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ने के आसार हैं, इस बढ़ते तापमान के कारण समुद्री हीटवेव और चरम चक्रवातों में तेजी आएगी जिसके कारण मॉनसून प्रभावित होगा और समुद्र का स्तर बढ़ जाएगा।

उष्णकटिबंधीय हिंद महासागर के लिए भविष्य का अनुमान नामक अध्ययन पुणे स्थित भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान (आईआईटीएम) के जलवायु वैज्ञानिक रॉक्सी मैथ्यू कोल के नेतृत्व में किया गया है। अध्ययन से पता चला है कि समुद्री लू या हीटवेव (असामान्य रूप से उच्च महासागर तापमान की अवधि) हर साल 20 दिन (1970-2000 के दौरान) से बढ़कर 220-250 दिन प्रति वर्ष होने का अनुमान है, जिससे 21वीं सदी के अंत तक उष्णकटिबंधीय हिंद महासागर बेसिन में स्थायी रूप से हीटवेव की स्थिति में पहुंच जाएगा।

अध्ययन में कहा गया है, समुद्री हीटवेव के कारण प्रवाल विरंजन, समुद्री घास का विनाश, जिससे मत्स्य पालन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। वे चक्रवातों की तीव्रता में भी बढ़ोतरी करते हैं।

हिंद महासागर में तेजी से बढ़ रही गर्मी सिर्फ़ सतह तक सीमित नहीं है। सतह से लेकर 2,000 मीटर की गहराई तक हिंद महासागर की ऊष्मा सामग्री वर्तमान में 4.5 ज़ेटा-जूल प्रति दशक की दर से बढ़ रही है और भविष्य में इसके 16 से 22 ज़ेटा-जूल प्रति दशक की दर से बढ़ने का अनुमान है।

अध्ययन के हवाले से अध्ययनकर्ता ने कहा, भविष्य में हीटवेव में होने वाली वृद्धि, एक दशक तक, हर सेकंड, पूरे दिन, हर दिन, एक हिरोशिमा परमाणु बम विस्फोट के बराबर ऊर्जा जोड़ने के बराबर है।

अरब सागर सहित उत्तर-पश्चिमी हिंद महासागर में अधिकतम गर्मी होगी, जबकि सुमात्रा और जावा तटों पर गर्मी कम होगी।

महासागरों के तेजी से गर्म होने के बीच, सतह के तापमान के मौसमी चक्र में बदलाव होने का अनुमान है, जिससे इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में चरम मौसम की घटनाएं बढ़ सकती हैं।

अध्ययन के मुताबिक, जबकि 1980 से 2020 के दौरान हिंद महासागर में अधिकतम बेसिन-औसत तापमान पूरे वर्ष 26 डिग्री सेल्सियस से 28 डिग्री सेल्सियस के बीच रहा, भारी उत्सर्जन परिदृश्य के तहत 21वीं सदी के अंत तक न्यूनतम तापमान पूरे वर्ष 28.5 डिग्री सेल्सियस और 30.7 डिग्री सेल्सियस के बीच रहेगा।

28 डिग्री सेल्सियस से ऊपर समुद्र की सतह का तापमान आम तौर पर गहरे संवहन और चक्रवात के लिए अनुकूल होता है। अध्ययन में अध्ययनकर्ताओं ने कहा कि 1950 के दशक से भारी बारिश की घटनाएं और भयंकर चक्रवात पहले ही बढ़ चुके हैं और समुद्र के तापमान में वृद्धि के साथ इनके और बढ़ने का अनुमान है।

समुद्र की बढ़ती गर्मी के कारण समुद्र का जलस्तर भी बढ़ सकता है। पानी में गर्मी का विस्तार हिंद महासागर में समुद्र के जलस्तर में आधे से अधिक वृद्धि में योगदान देता है, जो ग्लेशियर और समुद्री बर्फ के पिघलने से होने वाली बढ़ोतरी से कहीं अधिक है।

मॉनसून और चक्रवात निर्माण को प्रभावित करने वाली एक घटना, हिंद महासागर द्विध्रुव में भी बदलाव आने का अनुमान है। 21वीं सदी के अंत तक चरम द्विध्रुवीय घटनाओं की आवृत्ति में 66 प्रतिशत की वृद्धि होने का अनुमान है, जबकि मध्यम घटनाओं की आवृत्ति में 52 प्रतिशत की कमी आने का अनुमान है।

अध्ययन में अध्ययनकर्ताओं ने भविष्यवाणी की है कि सदी के अंत तक समुद्र का अम्लीकरण तीव्र हो जाएगा, सतह का पीएच 8.1 से ऊपर के पीएच से घटकर 7.7 से नीचे आ जाएगा। सतही क्लोरोफिल और उत्पादकता में भी गिरावट आने का अनुमान है, जिसमें पश्चिमी अरब सागर में लगभग आठ से 10 प्रतिशत की सबसे बड़ी कमी होगी।

पीएच में अनुमानित बदलाव समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र के लिए हानिकारक हो सकते हैं क्योंकि कई समुद्री जीव, विशेष रूप से कोरल और जीव जो अपने खोल के निर्माण और रखरखाव के लिए कैल्सीफिकेशन पर निर्भर करते हैं, समुद्र की अम्लता में परिवर्तन के प्रति संवेदनशील हैं। परिवर्तन को समझना तब आसान हो सकता है जब हम महसूस करते हैं कि मानव रक्त पीएच में 0.1 की गिरावट से स्वास्थ्य पर गंभीर असर पड़ता है और कई अंगों का काम करना रुक सकता है।

40 देशों की सीमा से लगे और वैश्विक आबादी के एक तिहाई हिस्से का घर, हिंद महासागर क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन का सामाजिक और आर्थिक प्रभाव बहुत बड़ा है।

वर्तमान में, हिंद महासागर और इसके आसपास के देश वैश्विक स्तर पर प्राकृतिक आपदाओं के सबसे अधिक खतरे वाले क्षेत्र के रूप में उभरे हैं, जहां तटीय इलाकों में रहने वाले लोगों पर मौसम और चरम जलवायु का भारी प्रभाव पड़ता हैं।

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