कभी सूखा, तो कभी भारी बारिश, तेजी से बदल रहा मौसम का मिजाज। जानिए कौन है इन सबके लिए जिम्मेवार?

गंभीर सूखे के दौरान नमी वाले क्षेत्रों में, मिट्टी और पौधों के सूखने से पानी तेजी से वाष्पित होता है, जिसकी वजह से अतिरिक्त नमी हवा में ऊपर चली जाती है, जो भारी बारिश का कारण बनती है
कभी सूखा, तो कभी भारी बारिश, तेजी से बदल रहा मौसम का मिजाज। जानिए कौन है इन सबके लिए जिम्मेवार?
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क्या आपने कभी सोचा है कि ऐसा क्यों हो रहा है कि जिन इलाकों में गंभीर सूखा पड़ रहा था, वहां एकाएक भारी बारिश के बाद बाढ़ आ जाती है। चिंता की बात तो यह है कि इस तरह के बदलाव किसी एक जगह नहीं बल्कि दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में बार-बार सामने आ रहे हैं। वैज्ञानिकों की मानें तो इनके पीछे की वजह भी जलवायु में आता बदलाव है, जिसकी वजह से मौसम का मिजाज पूरी तरह बदल रहा है। मौसम इतना अनियमित होता जा रहा है, कि उसका पूर्वानुमान तक करना कठिन होता जा रहा है।

इस बारे में द यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास के शोधकर्ताओं द्वारा किए नए अध्ययन से पता चला है कि भीषण सूखे से भारी बारिश के बीच बार-बार आते इन बदलावों के पीछे जलवायु परिवर्तन का हाथ है। उनके मुताबिक शायद यह बदलाव जमीन के अंदर फीडबैक लूप से प्रभावित हैं। सरल शब्दों में कहें तो मिट्टी में मौजूद नमी और वायुमंडल के बीच परस्पर क्रिया के चलते शुष्क स्थिति में भी भारी बारिश की स्थिति पैदा हो रही है।

गौरतलब है कि हाल के वर्षों में ऐसे कई उदाहरण सामने आए हैं जब गंभीर सूखे से मौसम अचानक भारी और संभावित रूप से खतरनाक बारिश में बदल गया। उदाहरण के लिए दिसंबर 2022 में अमेरिका का कैलिफोर्निया इतने विकट सूखे का सामना कर रहा था, जितना वहां पिछले 1,000 वर्षों में भी नहीं देखा गया। लेकिन एकाएक मौसम ने करवट ली और बारिश के चलते परिस्थितियां तेजी से बदलने लगी। इसकी वजह से जनवरी, फरवरी और मार्च 2023 में कैलिफोर्निया में रिकॉर्ड बाढ़ आ गई थी।

अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने वैश्विक स्तर पर मौसम और पानी से जुड़े 40 वर्षों के आंकड़ों का विश्लेषण किया है। उन्होंने दुनिया भर में उन सात विशिष्ट क्षेत्रों की पहचान की जहां यह प्रवृत्ति तेजी से गंभीर रूप ले रही है। इन क्षेत्रों में उत्तरी अमेरिका के पूर्वी हिस्से, यूरोप, पूर्वी- दक्षिण पूर्व एशिया, दक्षिणी ऑस्ट्रेलिया, दक्षिणी अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका के दक्षिणी हिस्से शामिल हैं।

इस बारे में टेक्सास विश्वविद्यालय और अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता प्रोफेसर जोंग-लियांग यांग ने प्रेस विज्ञप्ति में सूखे से बाढ़ में अचानक आते बदलाव के बारे में चिंता व्यक्त करते हुए बताया कि, "सूखे जैसी प्राकृतिक आपदा से निपटना ही समाज के लिए चुनौतीपूर्ण है, लेकिन जब अचानक बाढ़ आती है, तो प्रतिक्रिया देना और भी मुश्किल हो जाता है। यह बदलाव कई जगहों पर हो रहे हैं।"

इस पैटर्न को समझने के लिए शोधकर्ताओं ने 1980 से 2020 के बीच मौसम और जल संबंधी आंकड़ों का अध्ययन किया है। उन्होंने पाया कि उस अवधि के दौरान साल-दर-साल सूखे से भारी बारिश की संभावना बढ़ गई है। हालांकि प्रति वर्ष इसकी सम्भावना में होने वाली वृद्धि बेहद मामूली थी जो प्रति वर्ष 0.25 से लेकर एक फीसदी की बीच दर्ज की गई। यह वृद्धि कितनी होगी यह उसके स्थान पर निर्भर करता है।

जानिए कैसे बदल रहे हैं समीकरण

बता दें कि मौसम और जलवायु में अचानक आने वाले बदलावों के लिए कई कारक जैसे अल नीनोला नीना और जलवायु में आता बदलाव जिम्मेवार हो सकते हैं। हालांकि यह अपनी तरह का पहला अध्ययन है जो इस बात की जांच करता है कि कैसे जमीन से जुड़ी प्रक्रियाएं भी इन बदलावों में भूमिका निभा सकती हैं।

अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने भूमि-आधारित फीडबैक लूप की पहचान करने के लिए कार्य-कारण विश्लेषण नामक एक नई विधि का उपयोग किया है। यह एक सांख्यिकीय तकनीक है जो यह निर्धारित करने में मदद करती है कि क्या एक कारक सीधे तौर पर दूसरे का कारण बनता है।

अध्ययन के जो नतीजे सामने आए हैं उनके मुताबिक गंभीर सूखे के दौरान नमी वाले क्षेत्रों में, मिट्टी और पौधों के सूखने से पानी तेजी से वाष्पित होता है, जिसकी वजह से अतिरिक्त नमी हवा में ऊपर चली जाती है, जो भारी बारिश का कारण बनती है। वहीं दूसरी तरफ गंभीर सूखे के दौरान शुष्क क्षेत्रों में, गर्म मौसम और निम्न वायु दबाव ऐसी स्थिति पैदा करते हैं, जहां दबाव का अंतर समुद्र जैसे अन्य स्थानों से नमी खींच लेता है।

इस बारे में हांगकांग पॉलिटेक्निक यूनिवर्सिटी के एसोसिएट प्रोफेसर और अध्ययन से जुड़े अन्य शोधकर्ता शुओ वांग ने आशंका जताई है कि जलवायु परिवर्तन के चलते जलवायु में इस तरह एकाएक आने वाले बदलाव कहीं ज्यादा बार हो रहे हैं।

उनका कहना है कि, "जलवायु परिवर्तन के चलते लगातार सूखा और बाढ़ आ रही है, जिससे पर्यावरण, लोगों की संपत्ति और बुनियादी ढांचे को गंभीर नुकसान हो रहा है।" उन्हें उम्मीद है कि उनकी यह जानकारी शुष्क से नम परिस्थितियों में अचानक से आने वाले बदलावों के प्रभावों को कम करने के लिए प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली विकसित करने में मदद कर सकती है।

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