प्राकृतिक आपदाओं के बीच बीत रहा है साल 2022, नौ माह में लगभग रोजाना हुई दुर्घटना

लगभग रोजाना आपदा झेलने से भारत में पिछले नौ माह में 2,755 लोगों की मृत्य, 18 लाख हैक्टेयर फसल क्षेत्र प्रभावित, 4 लाख घर नष्ट, 70 हजार से मवेशियों की मौतें हुईं
प्राकृतिक आपदाओं के बीच बीत रहा है साल 2022, नौ माह में लगभग रोजाना हुई दुर्घटना
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भारत में लोगों ने वर्ष 2022 के नौ माहों में लगभग प्रतिदिन किसी न किसी रूप में प्राकृतिक आपदा को झेला है। और इसी का नतीजा है कि इस दौरान 2,755 लोगों की जानें चली गईं। इतना ही नहीं इस दरमियान

18 लाख हैक्टेयर फसल क्षेत्र प्रभावित हुआ और 4 लाख घर नष्ट हुए जबकि लगभग 70,000 पशु मारे गए। यह बात सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) और डाउन टू अर्थ पत्रिका द्वारा किए गए एक नए आकलन में सामने आया है। यह अतिविषम मौसमी चरम घटनाएं 1 जनवरी से 30 सितंबर, 2022 के बीच दर्ज की गईं हैं।

रिपोर्ट को जारी करते हुए सीएसई की महानिदेशक सुनीता नारायण ने कहा, “देश ने 2022 में अभी तक जो कुछ भी देखा है, वह तेजी से गर्म होती दुनिया में नया असामान्य है। जो अतिविषम घटनाएं हम देख रहे हैं, उसकी तीव्रता और बार-बार होने की प्रक्रिया में वृद्धि होते हुए भी देख रहे हैं।”

उन्होंने कहा कि यह रिपोर्ट अतिविषम मौसम की घटनाओं और उनसे जुड़े नुकसान और क्षति पर मौसमवार, महीनेवार और क्षेत्रवार विश्लेषण उपलब्ध कराती है। यह भारत में अतिविषम मौसम की घटनाओं की तीव्रता और उसके भूगोल पर एक साक्ष्य आधार भी तैयार करने का प्रयास है। यह अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि इस विषय पर जो आंकड़े सार्वजनिक रूप से उपलब्ध हैं, वह अपूर्ण हैं और पूरी तस्वीर पेश नहीं करते। 

रिपोर्ट में बताया गया है कि वर्ष 2022 के नौ माह में भारत ने प्रतिदिन एक आपदा झेली। इसमें गर्म और सर्द हवाओं से लेकर चक्रवात, आकाशीय बिजली गिरना, भारी बारिश, बाढ़ और भूस्खलन की घटनाएं शामिल थीं। रिपोर्ट तैयार करने वालों में से एक रजित सेनगुप्ता कहते हैं कि इन आपदाओं में 2,755 जानें गर्इं, 18 लाख हैक्टेयर फसल का क्षेत्र प्रभावित हुआ, 4,16, 667 से अधिक घर नष्ट हुए, लगभग 70,000 पशु मारे गए।

यही नहीं उनका कहना था कि यह नुकसान और क्षति का जो आकलन किया गया है उसे संभवत: कम करके आंका गया है क्योंकि हर घटना के आंकड़े विस्तृत रूप् से एकत्रित नहीं किए गए हैं। आपदाओं के हर दूसरे दिन होने वाली घटना के मामले में मध्य प्रदेश में ऐसे दिनों की संख्या अधिक थी। वहीं हिमाचल प्रदेश में सबसे अधिक 359 लोगों की मौतें हुईं। मध्य प्रदेश और असम दोनों में एक सामान 301 लोगों की मौतें हुईं। मध्य प्रदेश में आधिकारिक रिकॉर्ड के अनुसार किसी भी फसल क्षेत्र के नुकसान की सूचना दर्ज नहीं है।  

भारत ने 1901 के बाद से 2022 में अपना सातवां सबसे नम जनवरी माह दर्ज किया। मार्च भी 121 वर्ष में अब तक का सबसे गर्म और तीसरा सबसे सूखा रहा। पूर्वी और पूर्वोत्तर भारत ने 121 वर्षों में सबसे गर्म और सबसे शुष्क जुलाई देखा। इस क्षेत्र ने 2022 में अपना दूसरा सबसे गर्म अगस्त और चौथा सबसे गर्म सितंबर भी दर्ज किया। देश के 30 राज्यों में आकाशीय बिजली और तूफान से 773 लोगों की जानें गईं।

इसी प्रकार से मानसून के तीन माह जून से अगस्त तक के प्रत्येक दिन देश के कुछ हिस्सों में भारी से अत्यधिक वर्षा होने के संकेत मिले हैं। यही कारण है कि बाढ़ की तबाही ने किसी भी क्षेत्र को नहीं छोड़ा। उदाहरण के लिए असम का एक बड़ा हिस्सा जलमग्न हो गया था, जिससे जानमाल और आजीविका का भारी नुकसान हुआ। 

लू ने 45 लोगों की जान ले लीं, लेकिन जो आधिकारिक आंकड़ों में दर्ज नहीं है, यह उत्तर भारत में लोगों पर लंबे समय तक उच्च तापमान का प्रभाव है। किसानों से लेकर श्रमिकों ने भीषण गर्मी का सामना किया। अच्छी खबर यह है कि चक्रवातों के कारण होने वाली मौतों की संख्य कम थी। देश में 95,066 हेक्टेयर क्षेत्रों को नष्ट करने वाले चक्रवातों के उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार केवल दो लोगों की जानें गईं।

नारायण ने कहा कि यह भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) द्वारा चक्रवात की भविष्यवाणी पर किए गए महत्वपूर्ण कार्यों के कारण संभव हुआ है जिससे राज्य सरकारों को पर्याप्त चेतावनी दी जा सके। ऐसा इसलिए भी संभव हुआ क्योंकि राज्य सरकारें, विशेषकर ओडिशा, आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल ने आपदा प्रबंधन की अपनी प्रणालियों में महत्वपूर्ण सुधार किया है। वह कहती हैं कि यह स्पष्ट है कि अब, इन घटनाओं की तीव्रता और सिर्फ आपदाओं को ही गिनने की जरूरत नहीं है, इससे होने वाले नुकसान और क्षति पर विश्वसनीय आंकड़ों की भी बहुत अधिक आवश्यकता है। 

नारायण ने बताया कि यही कारण है कि सीएसई द्वारा तैयार अतिविषम मौसम रिपोर्ट कार्ड को समझना महत्वपूर्ण है। वह कहती हैं कि यह रिपोर्ट इन अतिविषम घटनाओं के प्रबंधन के लिए बहुत कुछ करने की बात करती है। हमें जोखिम को कम करने और लचीलेपन में सुधार करने के लिए आपदा के प्रबंधन से आगे बढ़ना होगा।

यही कारण है कि हमें बाढ़ प्रबंधन के लिए प्रणालियों को बेहतर बनाने की आवश्यकता है। वह कहती हैं कि यह रिपोर्ट उन देशों से नुकसान के लिए क्षतिपूर्ति की मांग करने की आवश्यकता की भी बात करती है जिन्होंने वातावरण में उत्सर्जन का योगदान दिया और इस क्षति के लिए जिम्मेदार हैं।

जलवायु परिवर्तन के प्रभावों की व्याख्या करने वाले मॉडल स्पष्ट करते हैं कि अतिविषम मौसम की घटनाएं बार-बार होंगी और इनकी तीव्रता में वृद्धि होगी। यह रिपोर्ट कार्ड अच्छी खबर नहीं है लेकिन इसे पढ़ने की जरूरत है ताकि हम प्रकृति के प्रतिशोध को समझ सकें जो हम आज देख रहे हैं और यह भी समझें कि अगर हम जलवायु परिवर्तन के साथ उस पैमाने पर मुकाबल नहीं करते हैं जिसकी अभी जरूरत है, तो कल यह और बदतर हो जाएगा। 

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