A map of the eastern Pacific which warms during El Nino. Photo: iStock
A map of the eastern Pacific which warms during El Nino. Photo: iStock

सक्रिय हो गया है अल नीनो, एनओएए ने की पुष्टि, जानिए भारत व दुनिया पर क्या होगा असर

वैज्ञानिकों को आशंका है कि अल नीनो के साथ बढ़ता तापमान रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच सकता है। ऐसा ही कुछ 2016 में आए अल नीनो के साथ देखने को मिला था, जब तापमान रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया था
Published on

अमेरिका के नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए) ने पुष्टि की है कि अल नीनो  सक्रिय हो गया है। एनओएए ने इसकी स्थिति को लेकर जो जानकारी साझा की है उसके मुताबिक अभी अल नीनो  की जो मौजूदा स्थिति है, उसको देखते हुए इसके सर्दियों में धीरे-धीर मजबूत होने की आशंका है।

बता दें कि अल नीनो , मध्य और पूर्वी उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागर में होने वाली मौसमी घटना अल नीनो -दक्षिणी दोलन (ईएनएसओ) से जुड़ा है। जो महासागर की सतह के तापमान में होने वाले बदलावों से सम्बन्ध रखती हैं।

अल नीनो  के दौरान समुद्र की सतह का तापमान सामान्य से कहीं ज्यादा गर्म हो जाता है। इसकी वजह से हवा पूर्व की ओर बहने लगती है। इसकी प्रभाव न केवल समुद्र बल्कि वायुमंडल पर भी महसूस किया जाता है। जलवायु वैज्ञानिकों के मुताबिक इस घटना के चलते समुद्र का तापमान चार से पांच डिग्री सेल्सियस तक गर्म हो जाता है।

आमतौर पर अल नीनो की घटना हर दो से सात साल में होती है। यह पैटर्न आखिरी बार 2018-19 में देखा गया था। यह एक ऐसी मौसमी घटना है जिसका असर केवल प्रशांत महासागर तक सीमित नहीं रहता, बल्कि पूरी दुनिया में महसूस किया जाता है।

डब्ल्यूएमओ के मुताबिक इसकी वजह से जहां ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया और दक्षिणी एशिया के कुछ हिस्सों में गंभीर सूखा पड़ सकता है। वहीं दक्षिण अमेरिका और अमेरिका के दक्षिणी हिस्सों के साथ हॉर्न ऑफ अफ्रीका और मध्य एशिया के कुछ हिस्सों में बारिश होती है।

इस बारे में एनओएए के क्लाइमेट प्रिडिक्शन सेंटर से जुड़ी जलवायु वैज्ञानिक मिशेल एल ह्यूरेक्स ने जानकारी दी है कि, "अल नीनो  कितना शक्तिशाली है इसके आधार पर, कई तरह के प्रभाव पैदा कर सकता है, जैसे कि दुनिया के कुछ स्थानों में इसकी वजह से भारी बारिश होगी, वहीं कुछ स्थानों में सूखे का जोखिम बढ़ सकता है।"

रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच सकता है बढ़ता तापमान

उनके मुताबिक जलवायु परिवर्तन, अल नीनो से संबंधित कुछ प्रभावों को कम या ज्यादा कर सकता है। उदाहरण के लिए, अल नीनो की वजह से बढ़ता तापमान उन क्षेत्रों में नए विशेष तौर पर नए रिकॉर्ड बना सकता है जहां पहले ही अल नीनो के दौरान तापमान औसत से अधिक रहता है।

एनओएए ने अमेरिका पर इसके प्रभावों को लेकर जो जानकारी साझा की है उसके मुताबिक अल नीनो का प्रभाव गर्मियों के दौरान कमजोर रहता है। जो आगे चलकर बसंत तक कहीं ज्यादा स्पष्ट हो जाता है। वहीं सर्दियों तक इस बात की 84 फीसदी आशंका है कि यह मध्य दर्जे से कुछ ज्यादा मजबूत हो सकता है। वहीं मजबूत अल नीनो के बनने की 56 फीसदी आशंका है।

अनुमान है कि सर्दियों के दौरान मध्यम से मजबूत अल नीनो बनने की स्थिति में दक्षिणी कैलिफोर्निया से खाड़ी तट के साथ-साथ औसत से अधिक बारिश हो सकती हैं। वहीं प्रशांत के उत्तरी पश्चिमी हिस्सों और ओहियो घाटी में सामान्य से शुष्क स्थिति रह सकती है। वहीं सर्दियों में देश के उत्तरी हिस्सों में तापमान सामान्य से ज्यादा गर्म रह सकता है।

हालांकि वैज्ञानिकों का यह भी कहना है कि अल नीनो के चलते हो सकता है कि यह सभी प्रभाव सामने न आए, लेकिन इसकी वजह से इनके होने की आशंका बढ़ जाती है। ऐसा ही कुछ 2016 में आए अल नीनो के साथ हुआ था। जब जलवायु में आते बदलावों और अल नीनो की वजह से बढ़ता तापमान रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया था।

गौरतलब है कि विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) पहले ही अल नीनो को लेकर चेतावनी जारी कर चुका है, जिसके मुताबिक यह जुलाई के अंत तक बन सकता है। डब्ल्यूएमओ द्वारा जारी अपडेट के मुताबिक इस बात की 60 फीसदी आशंका है कि मई से जुलाई के बीच ईएनएसओ, अल नीनो में बदल जाएगा। वहीं जून से अगस्त के बीच इसके बनने की आशंका 70 फीसदी और सितंबर में बढ़कर 80 फीसदी पर पहुंच जाएगी।

देखा जाए तो असामान्य रूप से तीन साल तक चलने के बाद अब ला नीना का असर खत्म हो चुका है। जलवायु वैज्ञानिकों का अनुमान है कि जल्द ही यह स्थिति अल नीनो में बदल जाएगी।

भारत सहित दुनिया भर में किसानों को तैयार रहने की है जरूरत

जलवायु में आते बदलावों को लेकर डब्ल्यूएमओ के महासचिव प्रोफेसर पेटेरी तालास का कहना है कि, "पिछले तीन वर्षों तक ला नीना के बावजूद हमने आठ सबसे गर्म वर्षों को अनुभव किया।" इसकी पुष्टि कुछ दिनों पहले जारी "स्टेट ऑफ द ग्लोबल क्लाइमेट रिपोर्ट" ने भी की थी।

उनके अनुसार ला नीना ने बढ़ते तापमान को अस्थाई रूप से रोकने में मदद की थी। लेकिन अब अल नीनो  के साथ वैश्विक तापमान में वृद्धि हो सकती है। इससे तापमान के नए रिकॉर्ड पर पहुंचने की आशंका बढ़ जाएगी।

इसको लेकर डब्ल्यूएमओ का कहना है कि दुनिया को अल नीनो के लिए तैयार रहना चाहिए जो अपने साथ बारिश, भीषण गर्मी, और सूखे का कहर साथ लेकर आएगा। साथ ही यह मौसम और जलवायु से जुड़ी चरम घटनाओं को भी भड़का सकता है।

हाल ही में डाउन टू अर्थ ने अपने विश्लेषण में जानकारी दी थी कि उभरते अल नीनो के साथ भारत में लू का प्रकोप बढ़ सकता है। देखा जाए तो यह चेतावनी विश्व मौसम विज्ञान संगठन द्वारा जारी अपडेट से मेल खाती है, जिसमें डब्ल्यूएमओ ने वैश्विक तापमान में वृद्धि की आशंका जताई है। वहीं हाल ही में अंतराष्ट्रीय जर्नल नेचर क्लाइमेट चेंज में प्रकाशित एक अध्ययन से पता चला है कि बढ़ते तापमान के साथ 2040 तक अल नीनो की घटनाएं बढ़ जाएंगी।

जर्नल साइंस में प्रकाशित में प्रकाशित एक रिसर्च से पता चला है कि 2023 में बनने वाला अल नीनो वैश्विक अर्थव्यवस्था को 248 लाख करोड़ रूपए का नुकसान पहुंचा सकता है। इतना ही नहीं रिसर्च के अनुसार सदी के अंत तक दुनिया को अल नीनो की वजह 6,943.23 लाख करोड़ रुपए का नुकसान हो सकता है, जिसका व्यापक असर भारत पर भी पड़ेगा।

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मेट्रोलॉजी (आईआईटीएम), पुणे से जुड़े जलवायु वैज्ञानिक रॉक्सी मैथ्यू कोल ने डाउन टू अर्थ को बताया कि, "इस साल मॉनसून पर अल नीनो  का प्रभाव पड़ने की प्रबल आशंका है। ऐसे में देश के किसानों को इसके लिए तैयार रहने की जरूरत है।"

Down to Earth- Hindi
hindi.downtoearth.org.in