बिगड़ने की कगार पर पहुंचा प्रकृति का संतुलन: ग्लोबल टिपिंग प्वाइंट रिपोर्ट की चेतावनी

वैज्ञानिकों की चेतावनी: पृथ्वी के कई जलवायु तंत्र खतरे में, समय रहते ठोस वैश्विक कदम उठाना जरूरी।
वैज्ञानिकों के अनुसार, वर्तमान तापमान (लगभग 1.4 डिग्री सेल्सियस) पहले ही प्रवाल भित्तियों के सहनशील स्तर (1.2 डिग्री सेल्सियस) से अधिक है। इनका बड़े पैमाने पर खत्म होना लगभग तय है।
वैज्ञानिकों के अनुसार, वर्तमान तापमान (लगभग 1.4 डिग्री सेल्सियस) पहले ही प्रवाल भित्तियों के सहनशील स्तर (1.2 डिग्री सेल्सियस) से अधिक है। इनका बड़े पैमाने पर खत्म होना लगभग तय है।फोटो साभार: आईस्टॉक
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सारांश
  • वैज्ञानिकों के अनुसार, वर्तमान तापमान (लगभग 1.4 डिग्री सेल्सियस) पहले ही प्रवाल भित्तियों के सहनशील स्तर (1.2 डिग्री सेल्सियस) से अधिक है। इनका बड़े पैमाने पर खत्म होना लगभग तय है।

  • ग्रीनलैंड और वेस्ट अंटार्कटिका के आइस शीट अपने टिपिंग पॉइंट के करीब हैं। यदि ये टूटते हैं, तो समुद्र का स्तर स्थायी रूप से कई मीटर तक बढ़ सकता है।

  • बढ़ते तापमान और जंगल की कटाई मिलकर अमेजन को घास के मैदान में बदल सकते हैं, जिससे कार्बन जमा करने की क्षमता घटेगी और जलवायु परिवर्तन और तेज होगा।

  • अटलांटिक महासागर की धारा जिसमें गल्फ स्ट्रीम भी शामिल है, यदि रुकती है तो यूरोप में तीव्र सर्दी, वैश्विक मानसून में गड़बड़ी और कृषि उत्पादकता में भारी गिरावट आएगी।

हाल ही में जारी हुई ग्लोबल टिपिंग प्वाइंट रिपोर्ट 2025 ने दुनिया को एक गंभीर चेतावनी दी है। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि अगर हम जल्दी कदम नहीं उठाएंगे तो पृथ्वी के कई महत्वपूर्ण पारिस्थितिक तंत्र, खासकर उष्णकटिबंधीय प्रवाल भित्तियां (कोरल रीफ्स) और ध्रुवीय हिमखंड (पोलर आइस शीट), अनिश्चित और लगातार नुकसान का सामना करेंगे।

यह रिपोर्ट अंतरराष्ट्रीय जलवायु वैज्ञानिकों की टीम द्वारा तैयार की गई है, जिनमें गोएथे यूनिवर्सिटी, सेंकेनबर्ग रिसर्च इंस्टीट्यूट फ्रैंकफर्ट और यूनिवर्सिटी ऑफ एक्सेटर जैसे प्रतिष्ठित संस्थान शामिल हैं।

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तापमान बढ़ने से क्या होगा?

रिपोर्ट के अनुसार, पृथ्वी का औसत तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस बढ़ने वाला है, जो औद्योगिक क्रांति से पहले के स्तर से 1.5 डिग्री सेल्सियस अधिक होगा। यह सीमा पार होते ही कई ऐसे "टिपिंग प्वाइंट" पार हो सकते हैं, जिनका मतलब है कि पृथ्वी के कुछ प्राकृतिक प्रणाली में ऐसी परिवर्तनशीलता आएगी जो वापस नहीं आ पाएगी।

सबसे पहले, उष्णकटिबंधीय प्रवाल भित्तियां जो समुद्र में जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, वे पहले ही अपने तापीय थर्मल लिमिट (लगभग 1.2 डिग्री सेल्सियस) से ऊपर पहुंच चुकी हैं। इसका मतलब यह है कि इन प्रवाल भित्तियों का व्यापक रूप से मरना लगभग तय हो चुका है। अगर तापमान को 1.0 डिग्री सेल्सियस से नीचे लाने के लिए दुनिया भर में सख्त कदम नहीं उठाए गए तो इनको दोबारा हासिल करना बहुत मुश्किल होगा।

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ध्रुवीय हिमखंड और समुद्र का स्तर

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि ग्रीनलैंड और पश्चिम अंटार्कटिका के हिमखंड ऐसे टकराव के करीब हैं जहां उनका पिघलना तेज हो सकता है। इससे समुद्र का स्तर कई मीटर तक बढ़ सकता है, जो तटीय इलाकों के लिए एक बड़ा खतरा होगा। एक बार अगर ये हिमखंड पूरी तरह पिघल गए, तो यह प्रक्रिया रुकना मुश्किल होगी।

अमेजन वर्षावन और महासागरीय धारा

अमेजन वर्षावन भी खतरे में है। बढ़ता तापमान और जंगलों के काटे जाने मिलकर इसे सवाना (घास के मैदान) में बदल सकते हैं, जो न केवल स्थानीय जीवन को प्रभावित करेगा बल्कि वैश्विक जलवायु को भी नुकसान पहुंचाएगा।

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साथ ही, अटलांटिक मरोनल ओवरटर्निंग सर्कुलेशन (एएमओसी), जिसे आमतौर पर गल्फ स्ट्रीम के नाम से जाना जाता है, अगर टूट गया तो यूरोप के सर्दियों के मौसम में काफी ठंडक आ सकती है और वैश्विक मानसून प्रणाली भी प्रभावित होगी, जिससे कृषि उत्पादन पर बुरा असर पड़ेगा।

टिपिंग प्वाइंट का खतरा

रिपोर्ट में खासतौर पर यह बात कही गई है कि जब एक सिस्टम का टिपिंग प्वाइंट पार हो जाता है, तो यह अन्य सिस्टम के टकराव को भी तेज कर सकता है। इसे वैज्ञानिकों ने “डोमिनो इफेक्ट” बताया है। उदाहरण के तौर पर, अगर हिमखंड तेजी से पिघलते हैं, तो यह महासागरीय धाराओं को प्रभावित कर सकता है, जो आगे चलकर यूरोप और विश्व के अन्य हिस्सों के मौसम को बदल देगा।

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रिपोर्ट ने सिर्फ खतरे ही नहीं बताए, बल्कि यह भी बताया कि समाज में सकारात्मक टर्निंग प्वाइंट भी आ सकते हैं। उदाहरण के लिए, नवीकरणीय ऊर्जा अब कई जगह पारंपरिक जीवाश्म ईंधन से सस्ती हो चुकी है। इलेक्ट्रिक वाहन तेजी से बढ़ रहे हैं और धीरे-धीरे पेट्रोल-डीजल वाहनों की जगह ले रहे हैं। सरकारें भी स्थायी ऊर्जा प्रणालियों, जैसे सस्टेनेबल हीटिंग और फ्रेट ट्रांसपोर्ट के लिए नीतियां बना रही हैं।

लोगों में भी अपने जीवनशैली में बदलाव लाने की प्रवृत्ति बढ़ रही है, जैसे मांसाहार कम करना या सार्वजनिक यातायात का उपयोग बढ़ाना। ये सकारात्मक बदलाव "सामाजिक संक्रमण" (सोशल कोंटाजोन) के रूप में तेजी से फैल सकते हैं और जलवायु संरक्षण की दिशा में बड़ा कदम साबित हो सकते हैं।

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वैश्विक सहयोग की जरूरत

ग्लोबल टिपिंग प्वाइंट रिपोर्ट 2025 के अनुसार, पृथ्वी के इन टकराव बिंदुओं से निपटने के लिए एकजुट वैश्विक प्रयास की जरूरत है। 100 से अधिक वैज्ञानिकों ने 20 से अधिक देशों से इस रिपोर्ट पर काम किया है। इसका उद्देश्य है कि विश्व की सरकारें, संस्थान और आम जनता मिलकर जलवायु संकट को समझें और उसके खिलाफ मिलकर कदम उठाएं।

ग्लोबल प्वाइंट पॉइंट रिपोर्ट 2025 हमें एक सशक्त चेतावनी देती है कि अगर हम वर्तमान तापमान वृद्धि को नियंत्रित नहीं कर पाए तो प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्रों के कई हिस्से, जैसे प्रवाल भित्तियां, अमेजन वर्षावन और ध्रुवीय हिमखंड, भारी नुकसान उठाएंगे। यह न केवल पर्यावरणीय संकट होगा, बल्कि मानव समाज, अर्थव्यवस्था और सुरक्षा पर भी गंभीर प्रभाव डालेगा।

लेकिन साथ ही यह रिपोर्ट हमें बताती है कि सकारात्मक बदलाव संभव हैं और सामाजिक व तकनीकी टर्निंग प्वाइंट हमें जलवायु संरक्षण की ओर तेजी से बढ़ा सकते हैं। अब वक्त आ गया है कि हम सभी मिलकर न केवल जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए ठोस कदम उठाएं, बल्कि प्रकृति और मानवता के भविष्य को सुरक्षित बनाएं।

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