एक नए अध्ययन के मुताबिक पहाड़ों में विदेशी पेड़ो की प्रजातियों के फैलने और उनके प्रबंधन के माध्यम से पानी के बहने या जलग्रहण को बहाल किया जा सकता है। सूखे के दौरान नदी का कम प्रवाह जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम कर सकता था। यह अध्ययन केप टाउन विश्वविद्यालय (यूसीटी) में अफ्रीकी जलवायु और विकास पहल (एसीडीआई) के डॉ पेट्रा होल्डन के नेतृत्व में किया गया है।
जलवायु परिवर्तन चरम मौसम की घटनाओं जैसे सूखा और बाढ़ पर असर डाल रहा है। प्रकृति आधारित समाधान, जैसे जलग्रहण की फिर से बहाली करने में सामाजिक चुनौतियों का समाधान करना। इसके साथ ही पारिस्थितिक तंत्र के साथ भी काम करना शामिल है। इन चुनौतियों में जल संसाधनों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव भी शामिल हैं। अब तक के अध्ययनों ने प्राकृतिक जलवायु बदलाव से पानी की उपलब्धता, मानवजनित जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने में प्रकृति आधारित समाधानों की भूमिका को अलग नहीं किया है।
अध्ययनकर्ता जल संसाधन अनुकूलन योजना को लागू करना चाहते हैं। शोधकर्ताओं की टीम ने यह नया अध्ययन, उदाहरण के रूप में केप टाउन 'डे ज़ीरो' सूखे का उपयोग करके तैयार किया है। उनका ध्यान पहाड़ों में आक्रामक विदेशी पेड़ो की प्रजतियों के प्रबंधन के माध्यम से एक विशिष्ट प्रकार के जलग्रहण की बहाली करने का था।
होल्डन ने बताया कि केप पहाड़ों की मूल वनस्पति की तुलना में आक्रामक विदेशी पेड़ों में उच्च वाष्पोत्सर्जन दर होती है, इस तरह पानी के बहने की गति कम हो जाती है।
शोध दल ने "डे ज़ीरो" सूखे के दौरान धारा प्रवाह का सिमुलेशन करने के लिए जलवायु मॉडल और हाइड्रोलॉजिकल मॉडल को एक साथ जोड़ा। उन्होंने तब इस चीज का परीक्षण किया कि यदि मानवजनित जलवायु परिवर्तन नहीं होता तो जल विज्ञान संबंधी सूखा कितना गंभीर होता। उनका उद्देश्य जलवायु परिवर्तन के प्रभावों और केप टाउन को पानी की आपूर्ति के लिए पहाड़ी जलग्रहण क्षेत्रों से बहने वाले पानी तथा विदेशी पेड़ों के प्रबंधन का था।
होल्डन ने बताया कि मौजूदा अध्ययन जलवायु परिवर्तन के मानवजनित जिम्मेवारी के हिस्से में प्रकृति-आधारित समाधानों के प्रभाव को अलग नहीं करते हैं। विशेष रूप से सूखे की घटनाओं के लिए जो पहले भी हो चुके हैं। कुछ अध्ययन मानवजनित कारणों के लिए जैव-भौतिक प्रभावों को जिम्मेवार ठहराते हैं। इस प्रभाव में सुधार करने के प्रकृति-आधारित समाधानों की भूमिका की जांच के साथ-साथ सूखे की घटनाओं पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को भी देखा जाता है।
इस नए विश्लेषण से पता चलता है कि जलवायु परिवर्तन ने जलवायु पर मानवजनित प्रभाव के बिना दुनिया के सापेक्ष सूखे के दौरान पानी के प्रवाह को 12 से 29 फीसदी तक कम कर दिया। इसके अलावा, यह दर्शाता है कि सूखे की मार से पहले जलग्रहण क्षेत्र में मौजूद विदेशी पेड़ों को साफ करने से पानी बहने की गति पर मानवजनित जलवायु परिवर्तन का प्रभाव कम हो सकता था, लेकिन प्रभाव विदेशी पेड़ों के फैलने की सीमा पर निर्भर करता है।
आक्रामक पेड़ों के मध्यम स्तर में सुधार करने जैसे कि कुछ जलग्रहण क्षेत्रों में 40 फीसदी तक कवरेज देखा गया। इसके परिणामस्वरूप पानी के बहने की गति पर मानवजनित जलवायु परिवर्तन प्रभाव का 3 से 16 फीसदी तक सुधार होता है। मौजूदा स्तरों से पूर्ण जलग्रहण आक्रामक विदेशी पेड़ों के फैलने को रोकना मानवजनित जलवायु परिवर्तन के कारण धारा प्रवाह में 10 से 27 फीसदी की अतिरिक्त कटौती से बचा जा सकता है।
शोधकर्ताओं ने यह भी पाया कि जलग्रहण प्रक्रियाओं के कारण जलवायु परिवर्तन का प्रभाव बढ़ गया था। उदाहरण के लिए, धारा प्रवाह में 12 से 29 फीसदी की कमी, मानवजनित जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाली वर्षा में 7 से 15 फीसदी कमी से अधिक देखी गई। सूखे की घटनाओं में वाष्पीकरण की भूमिका निभाने के बावजूद, शोधकर्ताओं ने वाष्पीकरण पर जलवायु परिवर्तन का बड़ा प्रभाव नहीं पाया।
यह अध्ययन जलवायु परिवर्तन अनुकूलन योजना को हल करने के लिए मात्रात्मक आकलन के महत्व को उजागर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। शोधकर्ता यह दिखाने में सक्षम थे कि जलग्रहण की बहाली ने मानवजनित जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम किया, लेकिन मानवजनित जलवायु परिवर्तन के सभी प्रभावों को पूरी तरह से दूर करने में सफल नहीं हुए।
होल्डन ने कहा कि ढलने या अनुकूलन रणनीतियों के योगदान को छेड़ना चाहे वे प्रकृति-आधारित हों या नहीं, जलवायु में मानवजनित बनाम प्राकृतिक बदलाव से समाज को सुरक्षित करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है। हालांकि, अनुकूलन योजना को लागू करना महत्वपूर्ण है ताकि जलवायु संबंधी खतरों के प्रबंधन रणनीति हो सके। उन तरीकों से जुड़ा हुआ है जो शुरूआती सीमा को बदलने पर विचार करते हैं। यह अध्ययन कम्युनिकेशन अर्थ एंड एनवायरनमेंट पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।