
हाल में जारी इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज की छठी आकलन रिपोर्ट में बताया गया है कि, ग्लोबल वार्मिंग के चलते कई जलवायु संबंधी चरम घटनाएं बढ़ रही हैं तथा इनका तेजी से बढ़ना जारी रहेगा।
पेरिस समझौते ने 21वीं सदी में पूर्व-औद्योगिक समय की तुलना में तापमान के दो स्तर निर्धारित किए थे। आदर्श रूप में यह 1.5 डिग्री सेल्सियस और ऊपरी सीमा के रूप में यह 2.0 डिग्री सेल्सियस था।
जलवायु संबंधी खतरे जलवायु चरम सीमाओं में हो रहे बदलावों के साथ-साथ वैश्विक जनसंख्या आकार और स्थानीय जनसंख्या वितरण में परिवर्तन के परिणामस्वरूप होते हैं।
हाल ही में चाइनीज एकेडमी ऑफ साइंसेज के इंस्टीट्यूट ऑफ एटमॉस्फेरिक फिजिक्स (आईएपी) के डॉ. किन पेहुआ और उनके सहयोगियों ने युग्मित मॉडल इंटरकंपेरिसन प्रोजेक्ट फेज 6 में वैश्विक जलवायु मॉडल के साथ जलवायु चरम सीमाओं का जनसंख्या को होने वाले खतरों की जांच की।
अध्ययनकर्तओं ने जलवायु की चरम सीमाओं और बढ़ते तापमान के तहत वैश्विक जनसंख्या को होने वाले खतरों में मध्यम वृद्धि देखी गई। तेजी से बढ़ते तापमान का स्तर दक्षिणी एशिया और मध्य अफ्रीका के इलाकों में मुख्य रूप से इस तरह की वृद्धि में अहम भूमिका निभा रहा है।
तापमान के 1.5 डिग्री सेल्सियस से बढ़ने पर जनसंख्या में कमी के कारण पूर्वी एशिया में 2.0 डिग्री सेल्सियस तक गर्म होने के कारण, चरम सीमा पर जनसंख्या पर खतरा थोड़ा कम देखा गया है।
अध्ययन के मुताबिक 156.9 से 235.8 करोड़ की कुल आबादी तेजी से नमी या लगातार बारिश वाले दिनों, शुष्क या लगातार शुष्क दिनों, गर्मी के दिनों और ठंढ के दिनों पर तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस, तापमान 2.0 डिग्री सेल्सियस के चरम सीमा पर पहुंच जाएगी।
बढ़ते तापमान का स्तर 1.5 से 2.0 डिग्री सेल्सियस तक होगा। इसके अतिरिक्त, विश्व की कुल जनसंख्या के दो-तिहाई से अधिक को उपरोक्त अवधियों के दौरान सभी चार चरम सीमाओं पर भारी ठंड का सामना करना पड़ सकता है।
अध्ययनकर्ता किन ने कहा कि जाहिर है, हमें बढ़ते तापमान के तहत संभावित जलवायु के खतरों का सामना और अधिक करना होगा। यह अध्ययन एटमोस्फियरिक रिसर्च नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।
इसके अलावा 1.5 डिग्री सेल्सियस बनाम 2 डिग्री सेल्सियस तक गर्म होती दुनिया स्थानीय प्रजातियों के खतरों, विलुप्त होने के खतरे बढ़ गए हैं।
ग्लोबल वार्मिंग के 2 डिग्री सेल्सियस के तहत 18 फीसदी कीड़े, 16 फीसदी पौधे, 8 फीसदी कशेरुकी पर जलवायु रूप से निर्धारित भौगोलिक सीमा के आधे से अधिक के नुकसान होने के आसार हैं। 1.5 डिग्री सेल्सियस वार्मिंग के तहत प्रजातियों की संख्या में 6 फीसदी कीड़ों, 8 फीसदी पौधों और 4 फीसदी तक कशेरुकियों के कम होने का अनुमान है।
अन्य जैव विविधता से संबंधित कारकों से जुड़े जोखिम, जैसे कि जंगल की आग, चरम मौसम की घटनाएं, आक्रामक प्रजातियों, कीटों और बीमारियों का प्रसार, पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं पर प्रभाव वार्मिंग के 2 डिग्री सेल्सियस की तुलना में 1.5 डिग्री सेल्सियस पर कम होगी।
ग्लोबल वार्मिंग को 2 डिग्री सेल्सियस की तुलना में 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने से मक्का, चावल, गेहूं और संभावित रूप से अन्य अनाज फसलों, विशेष रूप से उप-सहारा अफ्रीका, दक्षिण पूर्व एशिया और मध्य और दक्षिण अमेरिका में प्रभाव पड़ेगा।
कई समुदायों और क्षेत्रों के लिए काफी आर्थिक परिणामों के साथ, वैश्विक स्तर पर लगभग 2 डिग्री सेल्सियस वार्मिंग के लिए वैश्विक स्तर पर 7 से 10 फीसदी पशुधन के नुकसान होने के आसार हैं।