जलवायु परिवर्तन से ‘मारमोट’ का जीवन खतरे में: अध्ययन

मारमोट एक प्रकार की बड़ी गिलहरी की प्रजाति है, जो भारतीय उपमहाद्वीप के हिमालय, लद्दाख और देओसाई पठार आदि में पाई जाती है
Photo credit: wikimedia commons
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मारमोट एक प्रकार की बड़ी गिलहरी की प्रजाति है। अभी तक इसकी 15 जातियों के बारे में जानकारी हैं, ये सभी मारमोटा वर्ग में आती हैं। कुछ प्रजातियां भारतीय उपमहाद्वीप के हिमालय, लद्दाख और देओसाई पठार, यूरोप के ऐल्प्स पर्वत सहित अमेरिका के रॉकी पर्वत, कास्केड पर्वत में पाई जाती हैं। कुछ प्रजातियां घास वाली जगहों को पसंद करती हैं और वहीं निवास करती हैं। जलवायु परिवर्तन ने अन्य जीवों की तरह इनके जीने के लिए भी कठिन परिस्थितियां उत्पन्न कर दी हैं।

कई जानवरों ने अपने आपको जीवित रखने और प्रजनन के पैटर्न पर पर्यावरणीय परिस्थितियों में होने वाले मौसमी बदलाव के अनुरूप विकसित किया है। छोटी अवधि और हल्की गर्मियां वनस्पति और भोजन के उत्पादन में वृद्धि करती हैं, जो बच्चों को जन्म देने का सही समय होता है। लंबे समय तक होने वाली कठोर सर्दियां जब भोजन की कमी होती है, इस समय जानवर काफी हद तक ऊर्जा के लिए वसा के भंडार पर निर्भर करते हैं। सर्दियों में अधिकतर जानवर सीतनिद्रा (हाइबरनेट) या पलायन करने लगते हैं।

हालांकि, जलवायु परिवर्तन इन मौसमी स्थितियों को बदल रहा है, जिसके लिए कई प्रजातियों ने अपने आपको इसके अनुरूप ढाल लिया है। लगातार तापमान में वृद्धि हो रही है, सर्दियों में बर्फबारी कम हो रही है, बर्फ समय से पहले पिघल रही है, गर्मियों की अवधि बढ़ रही है, और चरम घटनाओं जैसे, सूखा, बाढ़ की आवृत्ति बढ़ रही है।

प्रोसीडिंग्स ऑफ नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज में प्रकाशित इस नए अध्ययन में कहा गया है कि गर्मियों और सर्दियों के मौसम में जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से मारमोट का जीवन अलग तरह से प्रभावित होता है।

कोलोराडो में रॉकी माउंटेन बायोलॉजिकल लेबोरेटरी और उसके आस-पास किए गए शोध ने 40 साल के जीवन-इतिहास के आंकड़ों का विश्लेषण किया। विश्लेषण यह जानने के लिए किया गया कि कैसे पीले-बेल वाले मारमोट (बड़े बुरोइंग ग्राउंड गिलहरी) ने गर्मियों के मौसम की लंबी अवधि के दौरान जलवायु परिवर्तन से किस तरह मुकाबला किया।   

अन्य क्षेत्रों के अलावा, मारमोट पश्चिमी उत्तरी अमेरिका में पाए जाते हैं जहां महाद्वीप (आर्कटिक को छोड़कर) पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव कहीं और की तुलना में अधिक पड़ता है। यद्यपि मारमोट आकर में बहुत बड़े नहीं होते हैं और इनका अधिकतम वजन 6.5 किलोग्राम तक हो सकता है। लेकिन बहुत छोटे होने के कारण वे सर्दियों के दौरान सक्रिय नहीं रहते हैं और इसलिए लगभग 8 महीनों तक सीतनिद्रा (हाइबरनेशन) में चले जाते हैं।

मारमोट गर्मियों में अधिक ऊर्जा का भंडार करते है। कठोर वातावरण में जीवित रहने के लिए हाइबरनेशन एक प्रभावी तरीका होने के बावजूद, मारमोट के शरीर का वजन 40 प्रतिशत तक कम हो जाता हैं।

चार दशकों (1979-2018) के दौरान, आम तौर पर गर्मी में मारमोट के जीवन जीने की संभावना बढ़ गई थी, लेकिन सर्दियों में यह कम हो गई और ये प्रभाव इनके एक साल के बच्चों में सबसे अधिक देखी गई।

अध्ययन स्थल पर जलवायु परिवर्तन के कारण कम बर्फबारी के साथ गर्म सर्दियां, और गर्म, शुष्क गर्मियों की काफी लंबी अवधि देखी गई। बहुत छोटे बच्चे, एक साल के बच्चों और वयस्कों में समान मौसमी प्रभाव में जीवित रहने के रुझान के बावजूद, इन रुझानों को चलाने वाले पर्यावरणीय कारक आयु-वर्ग और मौसम के बीच अलग-अलग होते हैं।

उदाहरण के लिए, कम गर्मी के साथ सर्दियों में अधिक गर्मी होने से, इनके जीवित रहने की क्षमता अधिक थी, संभवत: गर्भावस्था के दौरान इन बच्चों की मां बेहतर स्थिति में थीं, क्योंकि बर्फ के जल्दी पिघल जाने के कारण पौधों जिन्हें ये चारे के रूप में खाते हैं, वे भी समय से पहले उग जाते है। सर्दियों में जीने की संभावना शुष्क ग्रीष्मकाल के बाद कम थी, हाइबरनेशन में जाने से सबसे अधिक आशंका इस बात की थी कि बच्चों की स्थिति खराब हो सकती थी।

अब तक, जलवायु परिवर्तन ने सर्दियों के हाइबरनेशन के दौरान मारमोट के अधिक कमजोर होने वाले मौसमों को छोड़कर इसका इनके जीवन पर सकारात्मक प्रभाव दिखा है। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि निरंतर जलवायु परिवर्तन गर्मियों के पैटर्न को बदल सकता है, क्योंकि अधिक गर्मी से पौधों के जीवित रहने पर असर पड़ेगा। इस तरह का वातावरण मारमोट आबादी को भी प्रभावित करेगा, उन्हें खाने का चारा नहीं मिलेगा और वे गर्म और शुष्क आवासों में नहीं रह पाएंगे।

एक मौसम के दौरान जलवायु परिवर्तन से कुछ प्रजातियों को लाभ हो सकता है, जबकि एक अन्य मौसम के दौरान प्रतिकूल परिस्थितियों के परिणामस्वरूप अन्य प्रजातियों में संभावित व्यापक परिणाम होते हैं, जैसे कि रेगिस्तान, पहाड़ और ध्रुवीय क्षेत्रों, जहां सबसे तेजी से परिवर्तन होते हैं। पहाड़ की चोटी के पास रहने वाले वन्यजीवों के लिए, मारमोट की तरह, पर्यावरणीय परिस्थितियां रहने लायक नहीं होंगी तो उनका जीना मुश्किल हो जाएगा।

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