जानिए कैसे घट सकता है स्टील और सीमेंट से होने वाला उत्सर्जन, वैज्ञानिकों ने सुझाया रास्ता

सीमेंट उत्पादन से हर वर्ष करीब 230 करोड़ टन कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जित हो रही है, वहीं आयरन और स्टील निर्माण की वैश्विक सीओ2 उत्सर्जन में हिस्सेदारी करीब 7 फीसदी है
फोटो: एडम कोहन/ फ्लिकर
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स्टील और सीमेंट दो ऐसे तत्व हैं, जिन्होंने मानव सभ्यता के विकास में काफी हद तक मदद की है। आप चाहे अपने घर, ऑफिस, स्कूल, पुल, गगनचुंबी इमारतों या  कारों तक जहां भी नजर डालें आपको यह दोनों दिख ही जाएंगे। लेकिन साथ ही इस सच्चाई से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि यह दोनों दुनिया के सबसे ज्यादा प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों में से हैं।

वैज्ञानिकों के अनुसार जहां सीमेंट उत्पादन से हर वर्ष करीब 230 करोड़ टन कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ2) उत्सर्जित हो रही है, जोकि कुल वैश्विक कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन का 6.5 फीसदी है। वहीं लोहा और इस्पात निर्माण से भी हर वर्ष वातावरण में 260 करोड़ टन सीओ2 मुक्त होती है। मतलब की वैश्विक सीओ2 उत्सर्जन में इसकी हिस्सदारी करीब 7 फीसदी है।

ऐसे में जहां विकास जरुरी है साथ ही इस बढ़ते उत्सर्जन पर रोक लगाना भी जरुरी है। हाल ही में जर्नल नेचर में प्रकाशित एक अध्ययन में इन उद्योगों से होने वाले उत्सर्जन के बारे में जानकारी साझा की गई है। साथ ही उसमें कटौती की बात कही है और यह कैसे किया जा सकता है इसपर भी प्रकाश डाला गया है।

कैसे घट सकता है इन उद्योगों से होने वाला प्रदूषण

शोधकर्ताओं ने इसके लिए जो 9 उपाय सुझाए हैं उनमें सीमेंट, आयरन और स्टील के उपयोग में कमी लाना, निर्माण में नवीन तकनीकों का उपयोग करना शामिल हैं। साथ ही सीमेंट और इस्पात निर्माण प्रक्रिया में बदलाव, उपयोग होने वाले फ्यूल में बदलाव, कार्बन कैप्चर, स्टील रीसाइक्लिंग, सीओ2 को कंक्रीट में स्टोर करना और उद्योग को पर्यावरण अनुकूल बनने के लिए सब्सिडी देना जैसे उपाय शामिल हैं।    

देखा जाए तो इन दोनों उद्योगों से बड़ी मात्रा में होने वाले उत्सर्जन के लिए कहीं हद तक वैश्विक स्तर पर इनका तेजी से बढ़ता उपयोग है। जैसे-जैसे शहरीकरण बढ़ रहा है इन संसाधनों की मांग भी बढ़ रही है। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि यदि साफ पानी को छोड़ दे तो उसके बाद कंक्रीट दूसरा ऐसा उत्पाद है जिसकी धरती पर खपत सबसे ज्यादा है। आंकड़ों को देखें तो आज हर वर्ष प्रति व्यक्ति करीब 530 किलोग्राम सीमेंट और 240 किलोग्राम स्टील का उत्पादन दुनिया में हो रहा है। ऐसे में इनसे भारी उत्सर्जन का होना लाजिमी ही है।

लेकिन यदि इस खपत को कम कर दिया जाए तो इससे होने वाले प्रदूषण में भी गिरावट आ जाएगी।  इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी के अनुसार यदि आर्किटेक्ट, इंजीनियरों और ठेकेदारों को सही शिक्षा और बिल्डिंग कोड में महत्वपूर्ण बदलाव किए जाएं तो इनकी मदद से सीमेंट की 26 फीसदी और स्टील की 24 फीसदी तक मांग को कम कर सकते हैं ।  

इतना ही नहीं यदि सीमेंट और स्टील इंडस्ट्री में यदि नई तकनीकों का उपयोग किया जाए उससे भी उत्सर्जन को कम करने में काफी मदद मिलेगी। उदाहरण के लिए अकेले औद्योगिक संयंत्रों के इन्सुलेशन में सुधार करके उपयोग की जाने वाली करीब 26 फीसदी ऊर्जा को बचाया जा सकता है।

इसी तरह बेहतर बॉयलर ऊर्जा की जरूरतों में 10 फीसदी तक की कटौती कर सकते हैं। इतना ही नहीं हीट एक्सचेंजर्स के उपयोग से रिफाइनिंग प्रक्रिया के दौरान बिजली की मांग को 25 फीसदी तक कम किया जा सकता है। इसी तरह इस्पात उत्पादन के लिए जो पारम्परिक तरीकें उपयोग हो रहे हैं उनमें बदलाव कर दिया जाए तो उत्सर्जन में काफी कमी की जा सकती है।    

कड़े फैसलों के साथ करने होंगे बड़े बदलाव

इस्पात उत्पादन के लिए जो पारम्परिक तरीकें उपयोग हो रहे हैं उनमें बदलाव कर दिया जाए तो उत्सर्जन में काफी कमी की जा सकती है। इस उद्योग में कोयले से प्राप्त कोक का इस्तेमाल किया जाता है, जिसके जलने से प्रति टन स्टील के उत्पादन में करीब 1,800 किलोग्राम सीओ2 का उत्सर्जन होता है।

वहीं यदि इसके लिए हाइड्रोजन, मीथेन या ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोतो का उपयोग किया जाए तो इस उत्सर्जन को 61 फीसदी तक कम किया जा सकता है। जबकि यदि डीआरआई के लिए सिर्फ हाइड्रोजन का उपयोग किया जाए तो इस उत्सर्जन को 97 फीसदी तक कम कर सकते हैं। 

इसी तरह सीमेंट प्लांट में किए बदलाव भी उत्सर्जन में काफी हद तक कमी कर सकते हैं। एक पारम्परिक सीमेंट प्लांट में प्रति टन सीमेंट उत्पादन के चलते करीब 800 किलोग्राम सीओ2 पैदा होती है। जिसमें से 60 फीसदी उत्सर्जन कैल्सीनेशन रिएक्शन और बाकि फ्यूल जलने के कारण पैदा होता है। यदि इन दोनों में सुधार कर दिया जाए तो इस उत्सर्जन को कमी कम किया जा सकता है। यदि इन प्लांट्स में उपयोग होने वाले ईंधन में बदलाव कर दिया जाए तो उत्सर्जन में कमी की जा सकती है।   

कार्बन कैप्चर एंड स्टोरेज भी इस समस्या को हल करने में मददगार हो सकती है। अनुमान है कि हम अब तक दुनिया के केवल 0.1 फीसदी उत्सर्जन को ही कैप्चर एंड स्टोर कर पाए हैं। इस मामले में स्टील और सीमेंट प्लांट अभी भी काफी पिछड़े हैं, जिसमें सुधार की जरुरत है। इसी तरह सीओ2 को कंक्रीट में स्टोर करना एक बेहतर विकल्प हो सकता है।

शोध की मानें तो सीमेंट में सीओ2 मिलाने से वो मजबूत हो सकता है। यदि कंक्रीट में 1.3 फीसदी सीओ2 मिला दिया जाए तो उसकी मजबूती 10 फीसदी तक बढ़ सकती है। साथ ही इससे शुद्ध उत्सर्जन में करीब 5 फीसदी की कमी भी की जा सकती है। 

स्टील रीसाइक्लिंग भी उत्सर्जन में कमी का बेहतर विकल्प है, जिससे उत्सर्जन में कमी आने के साथ-साथ संसाधनों पर बढ़ता दबाव भी घटेगा। आज दुनिया का करीब एक चौथाई स्टील उत्पादन रीसाइकल्ड स्क्रैप पर आधारित है,जिसके 2050 तक दोगुना होने की उम्मीद है। इससे आज की तुलना में स्टील उत्पादन से होते उत्सर्जन में करीब 25 फीसदी तक की गिरावट आ सकती है। 

देखा जाए तो यह सभी उपाय काफी हद तक उत्सर्जन में गिरावट करने में मददगार हो सकते हैं। इसके साथ ही यदि सीमेंट और स्टील प्लांट में पर्यावरण अनुकूल तकनीकों और रिन्यूएबल एनर्जी उपयोग जैसे बदलावों के लिए सब्सिडी दी जाए तो वो काफी हद तक इन बदलावों को अपनाने के लिए प्रेरित कर सकती है।

उदाहरण के लिए यदि लाइमस्टोन और क्ले की मदद से बनने वाले सीमेंट (पोर्टलैंड) की बात करें तो इसके पूर्ण डीकार्बोनाइजेशन और सीसीएस पर करीब 100 अमेरिकी डॉलर प्रति टन का खर्चा आएगा मतलब इसकी कीमत लगभग दोगुनी हो जाएगी।

इसी तरह यदि नेट जीरो एमिशन स्टील की कीमत पारम्परिक स्टील की तुलना में 20 से 40 फीसदी तक ज्यादा हो सकती है। ऐसे में इन बढ़ती कीमतों के लिए सब्सिडी एक बेहतर विकल्प हो सकती है, इससे निर्माता और उपयोग करने वालों पर पड़ने वाले आर्थिक दबाव में कमी आएगी।   

देखा जाए तो उत्सर्जन मुक्त स्टील के उपयोग से वाहन की कीमत में केवल 0.5 से 2 फीसदी का इजाफा होगा। इसी तरह इसकी वजह से बिल्डिंग निर्माण में होने वाले खर्च में 15 फीसदी तक की वृद्धि हो सकती है, जोकि प्रॉपर्टी की कुल कीमत का 1 से 3 फीसदी के बीच होगा। इससे पहले की नेट जीरो की दौड़ में स्टील और सीमेंट बहुत पीछे रहे जाए, इन क्षेत्रों को भी बदलावों के लिए तैयार किया जाए। साथ ही समय आ गया है जब इस तरह के बदलावों को नीतियों में भी जगह दी जाए।     

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