केरल, पुदुचेरी और अंडमान निकोबार केवल भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में बढ़ते तापमान से सबसे ज्यादा प्रभावित क्षेत्रों में शामिल रहे। जहां पिछले तीन महीनों में जून से अगस्त के बीच 60 या उससे ज्यादा दिनों तक जलवायु परिवर्तन सूचकांक (सीएसआई) चार या उससे ज्यादा रहा। यह जानकारी जलवायु परिवर्तन से जुड़े मुद्दों पर काम कर रहे अंतराष्ट्रीय संगठन क्लाइमेट सेंट्रल द्वारा जारी नए विश्लेषण में सामने आई है।
वहीं इस दौरान दो अन्य राज्यों मेघालय और गोवा में भी जलवायु परिवर्तन के चलते सीएसआई का स्तर तीन से ज्यादा रिकॉर्ड किया गया। गौरतलब है कि क्लाइमेट सेंट्रल द्वारा बनाया क्लाइमेट शिफ्ट इंडेक्स (सीएसआई) इस बात की गणना करता है कि जलवायु में आता बदलाव दुनिया भर के अलग-अलग स्थानों पर तापमान को कैसे प्रभावित कर रहा है। इससे हमें यह समझने में मदद मिलती है कि जलवायु परिवर्तन ने स्थानीय दैनिक तापमान को कितना प्रभावित किया है।
ऐसे में यदि सीएसआई का स्तर तीन या उससे ज्यादा है, जैसा भारत में केरल, अण्डमान निकोबार, पुदुचेरी, मेघालय और गोवा में देखा गया है, तो इसका मतलब है कि जलवायु परिवर्तन के चलते स्थानीय परिस्थितयां कम से कम तीन गुना अधिक प्रभावित हुई हैं।
वहीं यदि 1991 से 2020 के औसत तापमान की तुलना में देखें तो देश बिहार और झारखण्ड में स्थिति सबसे ज्यादा खराब है। पता चला है कि इन तीन महीनों के दौरान जहां बिहार में तापमान सामान्य से 1.6 डिग्री सेल्सियस ज्यादा था।
वहीं झारखण्ड में भी तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस ज्यादा दर्ज किया गया है। इसी तरह देश के 11 राज्यों बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, सिक्किम, त्रिपुरा, केरल और तेलंगाना में भी इन तीन महीनों के दौरान तापमान सामान्य से एक डिग्री सेल्सियस या उससे ज्यादा दर्ज किया गया।
क्लाइमेट सेंट्रल ने अपने इस विश्लेषण में सिर्फ भारत का ही जिक्र नहीं किया है, रिपोर्ट में बढ़ते तापमान के खतरे को दर्शाते हुए बताया है कि इंसानों द्वारा जलवायु में आते बदलावों का खामियाजा हम इंसानों को ही भुगतना पड़ रहा है। इसके चलते दुनिया के करीब-करीब हर इंसान ने जून से अगस्त के बीच बढ़ती तपिश को अनुभव किया था।
गौरतलब है कि हाल ही में विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) ने इस बात की पुष्टि की है की पिछले तीन महीने अब तक की सबसे गर्म अवधि थी जब उत्तरी गोलार्ध ने अब तक की सबसे ज्यादा गर्म गर्मियों के मौसम का सामना किया था। इस भीषण गर्मी के चलते उत्तरी अमेरिका और दक्षिणी यूरोप में लंबे समय तक लू का कहर जारी रहा। नतीजन कई जगहों पर जंगल में लगी भीषण आग की घटनाएं भी सामने आई हैं।
हर किसी ने महसूस की गई बढ़ते तापमान की तपिश
वहीं गर्मी से मरने वाले लोगों की संख्या में भी वृद्धि हुई है। इससे पहले जून और जुलाई अब तक के सबसे गर्म महीनों का खिताब अपने नाम कर चुके हैं। वहीं आंकड़ों ने भी अगस्त 2023 को अब तक के सबसे गर्म अगस्त होने की पुष्टि की है, जब बढ़ता तापमान औद्योगीकरण से पहले की तुलना में 1.5 डिग्री सेल्सियस बढ़ चुका है।
इस बारे में कॉपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस (सी3एस) की उप निदेशक सामंथा बर्गेस का कहना है कि 2023 में तापमान के कई रिकॉर्ड टूट चुके हैं। सबसे गर्म जुलाई और जून के बाद अगस्त 2023 भी अब तक का सबसे गर्म अगस्त का महीना था। इसके चलते 1940 के बाद से तापमान में रिकॉर्ड गर्मी देखी गई है। देखा जाए तो 2023 वर्तमान में दूसरा सबसे गर्म वर्ष है, जो 2016 की तुलना में केवल 0.01 डिग्री सेल्सियस ठंडा है, जबकि वर्ष में चार महीने बाकी हैं।
क्लाइमेट सेंट्रल द्वारा भारत सहित दुनिया के 180 देशों और 22 क्षेत्रों में तापमान के किए इस विश्लेषण में पाया है कि दुनिया की 98 फीसदी आबादी मतलब की 795 करोड़ लोग बढ़ते इंसानी उत्सर्जन के चलते जून से अगस्त 2023 के बीच सामान्य से कम से कम दो गुणा अधिक तापमान का सामना करने को मजबूर थे। इतना ही नहीं इंडेक्स के मुताबिक इन तीन महीनों के दौरान करीब 620 करोड़ लोगों ने एक न एक दिन ऐसी गर्मी का सामना किया जब तापमान सामान्य से पांच गुणा अधिक रहा।
जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर अपनी जिम्मेवारी से बच नहीं सकते जी20 देश
वहीं करीब 150 करोड़ लोगों ने इन तीन महीनों में औसतन हर दिन बेहद ज्यादा तापमान यानी तीन से ज्यादा सीएसआई का सामना किया था। इतना ही नहीं रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र किया गया है कि जलवायु में आते बदलावों से वो लोग सबसे ज्यादा प्रभावित रहे जो इसके लिए सबसे कम जिम्मेवार हैं। पता चला है कि यह देश दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं (जी20) की तुलना में जून से अगस्त के बीच बढ़ते तापमान से तीन से चार गुणा ज्यादा प्रभावित थे।
रिपोर्ट के मुताबिक 45 कमजोर अर्थव्यवस्थाओं ने औसतन 47 दिनों तक बढ़ते तापमान का अनुभव किया जब सीएसआई तीन या उससे ज्यादा था। हालांकि देखा जाए तो यह 45 देश वैश्विक स्तर पर बढ़ते उत्सर्जन के केवल छह फीसदी के लिए जिम्मेवार हैं। इसी तरह छोटे द्वीपीय देशों की बात करें तो उन 27 देशों ने 65 दिनों तक सीएसआई तीन या उससे ज्यादा तापमान का सामना किया। यह देश भी वैश्विक उत्सर्जन के केवल एक फीसदी के लिए जिम्मेवार हैं।
वहीं यदि जी 20 देशों की बात करें तो इन्होने जून से अगस्त के बीच 17 दिनों तक गर्म दिनों का सामना किया जब तापमान सीएसआई तीन या उससे ज्यादा रहा। हालांकि यह देश उत्सर्जन के करीब 73 फीसदी हिस्से के लिए जिम्मेवार हैं। ऐसे में यह जरूरी हो जाता है कि जब यह सभी देश दिल्ली में होने वाली जी 20 सम्मलेन के लिए एकजुट हो रहें है तो जलवायु में आते बदलावों पर गंभीरता से विचार करें, क्योंकि इनके द्वारा लिए फैसले पर आने वाले कल का भविष्य निर्भर करेगा।