कहते हैं जंग किसी के लिए फायदेमंद नहीं होती। इसमें शामिल सभी पक्षों को कहीं न कहीं इसकी कीमत चुकानी पड़ती है। ऐसा ही कुछ इजराइल-गाजा संघर्ष के मामले में भी देखने को मिला। एक ऐसा संघर्ष जो मानव जाति के लिए किसी त्रासदी से कम नहीं। यह संघर्ष न केवल अब तक हजारों लोगों की जिंदगियों को निगल चुका है। साथ ही इसकी वजह से बुनियादी ढांचें और अर्थव्यवस्था को भी भारी क्षति हुई है।
गाजा स्वास्थ्य मंत्रालय ने सोमवार को जो जानकारी साझा की है, उसके मुताबिक पिछले आठ महीनों में यह संघर्ष गाजा में 37,347 जिंदगियों को लील चुका है। मीडिया में छपी खबरों के मुताबिक गाजा पट्टी पर अब तक 85,372 लोग घायल हो चुके हैं। इतना ही नहीं इस संघर्ष की वजह से अब तक लाखों लोगों को विस्थापन की पीड़ा झेलनी पड़ी है। इजराइल में भी अब तक करीब 1,600 जाने जा चुकी हैं। वहीं घायलों का आंकड़ा 14 हजार के करीब पहुंच चुका है।
हालांकि मानवीय त्रासदी के बीच पर्यावरण और जलवायु को भी इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ी है। इस बारे में जारी एक नई रिपोर्ट से पता चला है कि यह संघर्ष इंसानों के साथ-साथ पर्यावरण के लिए भी बड़ी त्रासदी साबित हुआ है, जिसकी वजह से कार्बन उत्सर्जन काफी बढ़ गया।
इस रिपोर्ट में संघर्ष के पहले 120 दिनों के बारे में जो अनुमान जारी किए हैं उनके मुताबिक इन शुरूआती दिनों के दौरान संघर्ष की वजह से हुआ उत्सर्जन 26 देशों के वार्षिक उत्सर्जन से भी अधिक रहा। वहीं इजरायल और हमास ने इस दौरान युद्ध को लेकर जो निर्माण किए हैं यदि उनकों भी इसमें शामिल कर लिया जाए तो यह उत्सर्जन 36 देशों और क्षेत्रों के कुल उत्सर्जन से ज्यादा हो जाता है।
बता दें कि जहां इस दौरान हमास ने सुरंग नेटवर्क जैसी संरचनाओं का निर्माण किया, वहीं इजरायल ने भी सुरक्षा के लिए लोहे की दीवार जैसे बुनियादी ढांचे के निर्माण और सुदृढ़ीकरण का काम किया।
रिपोर्ट के मुताबिक अक्टूबर 2023 से फरवरी 2024 के इन शुरूआती 120 दिनों में सीधे तौर पर युद्ध की वजह से औसतन 536,410 टन कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ2) के बराबर उत्सर्जन हुआ था। जो बढ़कर 652,552 टन तक पहुंच सकता है। गौरतलब है कि इस अवधि के दौरान बड़े पैमाने पर बमबारी, टोही उड़ानों के साथ-साथ रॉकेटों से किए हमलों और सैन्य गतिविधियां में काफी तेजी देखी गई।
संघर्ष की जलवायु को चुकानी होगी भारी कीमत
अनुमान है कि हमास द्वारा 500 किलोमीटर में बनाए सुरंग नेटवर्क की वजह से औसतन 326,700 टन कार्बन डाइऑक्साइड के बराबर उत्सर्जन हुआ था। वहीं इजराइल द्वारा बनाई 65 किलोमीटर और छह मीटर लम्बी दीवार की वजह से औसतन 293,310 टन सीओ2 के बराबर उत्सर्जन हुआ।
इस नए विश्लेषण के अनुसार, संघर्ष के शुरूआती 120 दिनों के दौरान गाजा में करीब 200,000 बिल्डिंग्स को नुकसान पहुंचा या वो पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो गई। इनमें स्कूल, अस्पताल, अपार्टमेंट, विद्यालय के साथ-साथ जल और सीवेज संयंत्र शामिल थे। इस संघर्ष में गाजा की करीब 66 फीसदी इमारतें नष्ट या क्षतिग्रस्त हो गई हैं।
अनुमान है कि गाजा और इजराइल में इनके पुनर्निर्माण पर करीब 5,000 करोड़ डॉलर का वित्तीय बोझ पड़ेगा। इन बिल्डिंग्स के दोबारा निर्माण और मरम्मत से होने वाले उत्सर्जन को देखें तो वो छह करोड़ टन कार्बन डाइऑक्साइड के बराबर हो सकता है।
हालांकि हर एक ईमारत के निर्माण से कितना उत्सर्जन होगा यह अलग-अलग हो सकता है, लेकिन एक रूढ़िवादी अनुमान के मुताबिक इनमें से हर ईमारत के पुनर्निर्माण या मरम्मत से औसतन 300 टन कार्बन डाइऑक्साइड के बराबर उत्सर्जन होगा।
कुल मिलाकर कहें तो गाजा के पुनर्निर्माण की जो कार्बन लागत चुकानी होगी वो बहुत ज्यादा है। अनुमान है कि गाजा के पुनर्निर्माण से होने वाले कुल उत्सर्जन का यह आंकड़ा 135 से भी ज्यादा देशों के वार्षिक उत्सर्जन से अधिक होगा।
गौरतलब है कि ऐसा ही कुछ रूस और यूक्रेन के बीच चलते संघर्ष के मामले में भी देखने को मिला था। एक अध्ययन से पता चला है कि यह युद्ध हजारों किलोमीटर दूर भारत, अमेरिका, ब्राजील, फ्रांस, स्पेन जैसे देशों में भी जैवविविधता को भारी नुकसान पहुंचा सकता है।
इसमें कोई शक नहीं कि इस तरह के संघर्ष पर्यावरण पर गहरा प्रभाव डालते हैं, जिनपर गंभीरता से ध्यान देने की आवश्यकता है। इससे पहले के अध्ययन भी इस बात की पुष्टि करते हैं कि सैन्य अभियान वैश्विक कार्बन उत्सर्जन के करीब साढ़े पांच फीसदी के लिए जिम्मेवार हैं, फिर भी इस उत्सर्जन को अक्सर बहुत कम रिपोर्ट किया जाता है। ऐसे में शोधकर्ताओं ने जलवायु गणनाओं में इस उत्सर्जन को भी ट्रैक और शामिल करने पर जोर दिया है।
इस बारे में अध्ययन और लंदन के क्वीन मैरी विश्वविद्यालय से जुड़े शोधकर्ता डॉक्टर बेंजामिन नेमार्क ने प्रेस विज्ञप्ति के हवाले से कहा है, “चूंकि दुनिया जलवायु परिवर्तन और सैन्य संघर्षों के दोहरे संकट से जूझ रही है, ऐसे में युद्ध के पर्यावरणीय प्रभावों को समझना और कम करना बेहद महत्वपूर्ण है।“
अध्ययन से जुड़े अन्य शोधकर्ता पैट्रिक बिगर ने प्रेस विज्ञप्ति के हवाले से कहा कि, "खतरे में पड़ा हर जीवन मायने रखता है। हालांकि यह अध्ययन हमें याद दिलाता है कि सशस्त्र संघर्ष हमें भयावह गर्मी के कगार पर धकेल रहे हैं।"
रिपोर्ट में संघर्षों के जलवायु पर पड़ते प्रभावों को बेहतर ढंग से समझने और उन्हें सीमित करने के लिए संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (यूएनएफसीसीसी) के माध्यम से सैन्य उत्सर्जन की तत्काल रिपोर्टिंग की आवश्यकता पर भी प्रकाश डाला है।