क्या भारत में जलवायु परिवर्तन और आतंकी गतिविधियों के बीच है कोई संबंध, रिसर्च में हुआ खुलासा

रिसर्च से पता चला है कि जलवायु परिवर्तन के कारण जिस तरह से मौसम का मिजाज बदल रहा है, वो भारत में आतंकवादी गतिविधियों के स्थान को प्रभावित कर रहा है
हिमालय के ऊंचे पहाड़ों के बीच सजगता से भारतीय सीमाओं की चौकसी करते जवान; फोटो: आईस्टॉक
हिमालय के ऊंचे पहाड़ों के बीच सजगता से भारतीय सीमाओं की चौकसी करते जवान; फोटो: आईस्टॉक
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भारत में आतंकवादी गतिविधियों और जलवायु में आते बदलावों को लेकर किए एक नए अध्ययन से पता चला है कि जलवायु परिवर्तन के कारण जिस तरह से मौसम के मिजाज में बदलाव आ रहा है, वो भारत में आतंकवादी गतिविधियों के स्थान को प्रभावित कर रहा है। यह अध्ययन एडिलेड और रटगर्स विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं द्वारा किया गया है, जिसके नतीजे जर्नल ऑफ एप्लाइड सिक्योरिटी रिसर्च में प्रकाशित हुए हैं।

आज जलवायु परिवर्तन एक वैश्विक मुद्दा बन चुका है जो अनगिनत समस्याओं को जन्म दे रहा है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या जलवायु में आता बदलाव वैश्विक सुरक्षा, विशेषकर आतंकवाद को प्रभावित कर रहा है। इसे समझने के लिए शोधकर्ताओं ने 1998 से 2017 के बीच भारत में आतंकवादी घटनाओं को लेकर एक अध्ययन किया है, जो एडिलेड विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ सोशल साइंसेज से जुड़े विशेषज्ञ डॉक्टर जेरेड डिमेलो के नेतृत्व में किया गया है। इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने भू-स्थानिक विश्लेषण के माध्यम से जलवायु कारकों और आतंकवाद के बीच स्थानिक संबंधों की जांच की है।

इस अध्ययन के जो नतीजे सामने आए हैं उनके मुताबिक कुछ जलवायु संबंधी कारक जैसे तापमान, वर्षा और ऊंचाई भारत में आतंकवादी गतिविधियों को प्रभावित करते हैं। इस बारे में डॉक्टर डिमेलो ने प्रेस विज्ञप्ति के हवाले से पुष्टि करते हुए कहा है कि, “तापमान, बारिश और ऊंचाई आतंकवादी गतिविधियों के बदलते पैटर्न से जुड़े हैं।“

उनका आगे कहना है कि, "शहरी क्षेत्रों, विशेष रूप से अनुकूल जलवायु वाले क्षेत्रों में आबादी तेजी से बढ़ी है। वहीं दूसरी तरफ उग्रवादियों द्वारा उपयोग किए जाने वाले कुछ दूरदराज के क्षेत्रों में जलवायु में इतनी तेजी से बदलाव आया है कि वो अब उनके छिपने लायक नहीं रह गए हैं। इसकी वजह से उन्हें दूसरे क्षेत्रों की ओर रुख करने को मजबूर होना पड़ा है।"

उत्तर और पूर्वी इलाकों में बार-बार दर्ज की गई आतंकवादी घटनाएं

रिसर्च के मुताबिक नए क्षेत्रों में आतंकवादियों का जाना केवल जलवायु संबंधी बदलावों की तीव्रता से ही नहीं जुड़ा था, बल्कि आतंकवादी गतिविधि का यह बदलाव मौसमी भी था। ऐसे में डॉक्टर डिमेलो का कहना है कि, “जलवायु परिवर्तन के बढ़ते दुष्प्रभावों का संबोधित करना न केवल पर्यावरण से जुड़ा मुद्दा है, बल्कि यह सीधे तौर पर राष्ट्रीय सुरक्षा से भी जुड़ा है।“

गौरतलब है कि यह अध्ययन 1998 से 2017 के बीच भारत में हुई आतंकवादी गतिविधियों पर केंद्रित था। इस दौरान वैश्विक आतंकवाद डेटाबेस ने भारत में आतंकी हमलों की 9,096 घटनाएं दर्ज कीं थी। डॉक्टर डिमेलो के मुताबिक इन 20 वर्षों की अवधि के दौरान भारत का औसत तापमान भी रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया है।

भारत के कुछ क्षेत्र ऐसे थे जो अध्ययन के दौरान बार-बार आतंकवादी हिंसा से प्रभावित हुए थे। ये क्षेत्र मुख्य रूप से देश के उत्तरी और पूर्वी इलाकों में हैं। वो राज्य जो इस दौरान आतंकवाद के हॉटस्पॉट रहे उनमें जम्मू और कश्मीर, झारखंड, बिहार, पश्चिम बंगाल, असम, मेघालय, मणिपुर, त्रिपुरा, छत्तीसगढ़, ओडिशा, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्नाटक, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, दिल्ली, और केरल शामिल हैं।

हालांकि यह अध्ययन आतंकवादी गतिविधियों के स्थान पर केंद्रित था, लेकिन शोधकर्ताओं के मुताबिक आंकड़े इस बात की ओर भी इशारा करते हैं कि इन आतंकवादी गतिविधियों से जुड़े अन्य मुद्दे जैसे उनके प्रशिक्षण स्थान भी जलवायु में आते बदलावों के साथ बदल रहे हैं।

शोधकर्ताओं के मुताबिक ऐसे में यह समझना महत्वपूर्ण है कि जलवायु में आता बदलाव भारत सहित दुनिया भर में आतंकवाद के पैटर्न को कैसे प्रभावित कर रहा है। यह भारत सहित अन्य देशों में सरकारों के लिए अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ी रणनीतियों को आकार देने में मददगार साबित हो सकता है।

डॉक्टर डिमेलो ने इस बात पर भी प्रकाश डाला है कि कट्टरपंथ को प्रभावी ढंग से कम करने के लिए, अन्य महत्वपूर्ण मुद्दों जैसे खाद्य असुरक्षा, आवास, जल एवं ऊर्जा संकट और सामाजिक असमानता पर भी ध्यान देना आवश्यक है।

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