यूनिवर्सिटी ऑफ एक्सेटर और यूके सेंटर फॉर इकोलॉजी एंड हाइड्रोलॉजी द्वारा किए शोध से पता चला है कि यदि वैश्विक तापमान में हो रही वृद्धि को जल्द से जल्द रोक दिया जाए तो क्लाइमेट टिपिंग पॉइंटस के विनाशकारी परिणामों को रोका जा सकता है।
मान्यता है कि यदि तापमान में हो रही वृद्धि यदि एक बार अपने टिपिंग पॉइंटस पर पहुंच जाएगी तो उसके चलते वातावरण में अचानक बड़े बदलाव सामने आएंगे जैसे कि अमेज़न वर्षावन सूख जाएंगे और पहाड़ों और समुद्रों पर जमा बर्फ की चादर पिघल जाएंगी।
अब तक यह माना जाता है कि यह टिपिंग पॉइंटस विनाश की ड्योढ़ी हैं जिनपर पहुंचने के बाद वापस नहीं लौटा जा सकता, लेकिन जर्नल नेचर में छपे इस नए शोध से पता चला है कि संभव है कि इन चरम बिंदुओं पर पहुंचना स्थाई न हो और उनसे वापस लौटा जा सकता है। इस तरह जो विनाशकारी बदलाव सामने आएंगे वो भी स्थाई नहीं होंगें।
शोध के अनुसार हमारे पास इसपर काम करने के लिए कितना समय बाकि है यह ग्लोबल वार्मिंग के स्तर और प्रत्येक टिपिंग पॉइंट में शामिल टाइमस्केल पर निर्भर करेगा।
गौरतलब है कि टिप्पिंग पॉइंट वो सीमा हैं, जिसपर पहुंचने के बाद धरती पर विनाशकारी परिणाम सामने आएंगे। इससे पहले जर्नल नेचर में छपे एक अन्य शोध से पता चला था कि अब तक नौ टिप्पिंग पॉइंट सक्रिय हो चुके हैं। जिनमें
इस शोध से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता पॉल रिची ने बताया कि तापमान में वृद्धि जितना ज्यादा होगी, टिपिंग पॉइंट को रोकने के लिए हमारे पास उतना ही कम समय होगा। उनके अनुसार यह विशेष रूप से उन टिप्पिंग पॉइंट जैसे अमेज़न जंगलों के खत्म होने और मानसून में आ रहे बदलावों के लिए सच है, जहां परिवर्तन कुछ दशकों में ही सामने आने लगेंगें। जबकि इनके विपरीत जिन टिप्पिंग पॉइंट में बदलाव धीरे-धीरे कई शताब्दियों तक चलते हैं। उनमें आने वाला बदलाव वार्मिंग के स्तर पर निर्भर करता है। इससे हमें काम करने के लिए अधिक समय मिलेगा।
अभी भी बाकी है उम्मीद
इस शोध से जुड़े अन्य शोधकर्ता जोसफ जो क्लार्क ने बताया कि सौभाग्य से जिन टिप्पिंग पॉइंट के बारे में माना जाता है कि वो अपने चरम पर पहुंचने वाले हैं वो धीमे बदलाव वाले टिपिंग पॉइंट हैं। इससे हमें जलवायु परिवर्तन के विनाशकारी परिणामों से बचने के लिए एक और जीवन रेखा मिल सकती है।
हालांकि जिस तरह से ग्रीनलैंड में बर्फ की चादर पिघल रही है वो चिंता का विषय है, यही वजह है कि पेरिस समझौते के तहत वैश्विक तापमान में हो रही वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। हालांकि शोधकर्ता पीटर कॉक्स के अनुसार तापमान में जिस तेजी से वृद्धि हो रही है उसको देखते हुए लगता है कि हम उस स्तर को पार कर जाएंगें। रिची के अनुसार ऐसा व्यापक रूप से माना जा रहा है कि इसके कारण होने वाले विनाशकारी परिणामों को हमें झेलना ही होगा। उनके अनुसार शोध से पता चला है कि हो सकता है जो हम पारम्परिक रूप से मानते हैं विशेष रूप से धीमी गति से शुरू होने टिप्पिंग पॉइंट के बारे में वो त्रुटिपूर्ण हो। जैसे की बर्फ की चादर का पिघलना और अटलांटिक मेरिडियनल ओवरटर्निंग सर्कुलेशन के लिए यह पूरी तरह सही न हो।
इस मामले में कार्य करने की समय सीमा की गणना तापमान में हो रही वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस पर रोकने और उसे पलटने के आधार पर तय की गई थी। अन्य शोधकर्ता क्रिस हंटिंगफोर्ड का मानना है कि आदर्श रूप से हम टिपिंग पॉइंट की इस सीमा को पार नहीं करेंगें। आशा है कि जब हमें जरुरत पड़ेगी तो हम इस खतरे से पीछे भी हट सकते हैं। यह तभी संभव होगा जब हम बढ़ते उत्सर्जन को सीमित करें और तापमान में हो रही बढ़ोतरी को रोकने के लिए कारगर कदम उठाएं।