कॉप 27: सूखे से निपटने के लिए शर्म अल-शेख में ‘इंटरनेशनल ड्रॉट रेसिलिएंस एलायंस’ हुआ लांच

आईपीसीसी का अनुमान है कि जलवायु में आते बदलावों के चलते अगले 28 वर्षों में वैश्विक स्तर पर 75 फीसदी लोग सूखे और पानी की गंभीर समस्या से त्रस्त होंगें
कॉप 27: सूखे से निपटने के लिए शर्म अल-शेख में ‘इंटरनेशनल ड्रॉट रेसिलिएंस एलायंस’ हुआ लांच
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वैश्विक स्तर पर सूखे के बढ़ते प्रकोप से निपटने के लिए अंतराष्ट्रीय गठबंधन ‘इंटरनेशनल ड्रॉट रेसिलिएंस एलायंस’ लॉन्च किया गया है। यह गठबंधन 07 नवंबर 2022 को मिस्र के शर्म अल-शेख में जलवायु परिवर्तन पर चल रहे शिखर सम्मलेन (कॉप 27) के दौरान जारी किया गया है। इस गठबंधन में सेनेगल और स्पेन सहित दुनिया के 25 देश और 20 संगठन शामिल हैं।

इस गठबंधन का मकसद दुनिया भर में देशों को सूखे के बढ़ते प्रकोप से बचाने के साथ-साथ भविष्य के लिए बेहतर तरीके से तैयार करना है। एलायंस द्वारा जारी एक बयान के अनुसार, सेनेगल और स्पेन द्वारा शुरू किया गया यह गठबंधन जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने के लिए एक समाधान के रूप में प्रस्तुत किया गया है।

इस बारे में स्पेन के प्रधानमंत्री पेड्रो सांचेज और सेनेगल के राष्ट्रपति मैकी सैल ने संयुक्त रूप से घोषणा की है कि इस गठबंधन का लक्ष्य सूखे और जलवायु प्रभावों से निपटने के लिए भूमि को तैयार करना और उसके राजनैतिक प्रोत्साहन देना है।

यूनाइटेड नेशंस कन्वेंशन टू कॉम्बैट डेजर्टिफिकेशन (यूएनसीसीडी) द्वारा इस बारे में जारी बयान में कहा गया है कि सूखा एक वैश्विक चुनौती है, जिसे कोई भी देश अकेले अपने दम पर हल नहीं कर सकता है। जलवायु में आते बदलावों के कारण सूखा कहीं ज्यादा विनाशकारी रूप लेता जा रहा है, जिसका असर कृषि, खाद्य सुरक्षा, ऊर्जा, पर्यटन और परिवहन से लेकर समाज के सभी क्षेत्रों पर पड़ रहा है।

यूएनसीसीडी का कहना है कि इस गठबंधन को नई राजनीतिक प्रतिबद्धताओं से बल मिलेगा। गौरतलब है कि इस एलायंस के लिए स्पेन ने 5 मिलियन यूरो (करीब 40.9 करोड़ रुपए) सीड फंड के तहत दिए हैं, जिससे जरूरी संसाधनों जुटाए जा सकें। वहीं केन्या के राष्ट्रपति विलियम रुटो ने अगले पांच वर्षों में 500 करोड़ पेड़ और 10 वर्षों में 1,000 करोड़ पेड़ लगाने की प्रतिबद्धता जताई है।

जलवायु में आते बदलावों के साथ गहराती जा रही है पानी और सूखे की समस्या

यूएनसीसीडी द्वारा जारी हालिया रिपोर्ट "ड्राउट इन नंबर्स" के अनुसार वर्ष 2000 के बाद से सूखे की आवृत्ति में 29 फीसदी की वृद्धि हुई है। हर साल करीब 5.5 करोड़ लोग इससे सीधे तौर पर प्रभावित होते हैं। हाल ही में ऑस्ट्रेलिया, यूरोप, पश्चिमी अमेरिका, चिली, हॉर्न और दक्षिणी अफ्रीका में आए सूखे से पता चलता है कि कोई भी देश आज इस आपदा से सुरक्षित नहीं है।

इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) का भी इस बारे में कहना है कि समय के साथ जलवायु में आते बदलावों के चलते सूखे की समस्या गहराती जा रही है। जलवायु परिवर्तन के चलते कहीं ज्यादा सूखा पड़ेगा और वो पहले से कहीं ज्यादा गंभीर होगा। साथ ही यह लंबे समय तक रहेगा। देखा जाए तो इसमें जलवायु परिवर्तन की बहुत बड़ी भूमिका है साथ ही यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि हम अपनी जमीन और जल संसाधनों को कैसे प्रबंधित करते हैं। आईपीसीसी का अनुमान है कि अगले 28 वर्षों में दुनिया में 75 फीसदी लोग सूखे और पानी की गंभीर समस्या से त्रस्त होंगें।

ऐसे में सूखे से बचाव और उससे निपटने के लिए किए प्रयासों से न केवल इसकी सामाजिक और आर्थिक लागत को कम करने में मदद मिलेगी। साथ ही इससे जीवन को होते नुकसान, जीविका, कृषि, जैव विविधता, जल, खाद्य सुरक्षा, ऊर्जा, परिवहन, पर्यटन क्षेत्रों में आते व्यवधानों को भी दूर करने में मदद मिलेगी। साथ ही इसकी वजह से विस्थापन, मजबूरी में करना पड़ रहा प्रवास और दुर्लभ संसाधनों को लेकर होते संघर्ष को रोकने में भी सहायता मिलेगी।

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