जैवविविधता के नुकसान, बढ़ते प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन की वजह से बढ़ रही संक्रामक बीमारियां

नॉट्रेडेम विश्वविद्यालय के एक नए शोध में कहा गया है कि संक्रामक बीमारियों को नियंत्रित करने के लिए कई स्तर पर एक साथ काम करना होगा
ब्राजील में वन्यजीव तस्करों से बरामद तोते के बच्चे; फोटो: आईस्टॉक
ब्राजील में वन्यजीव तस्करों से बरामद तोते के बच्चे; फोटो: आईस्टॉक
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इंसान जिस तरह से पृथ्वी का शोषण कर रहा है, वो कहीं न कहीं उसके खुद के विनाश की राह तैयार कर रहा है। इंसानों की वजह से हो रहे प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन, जैवविविधता को होते नुकसान, विदेशी प्रजातियों के हमलों और आवासों को होते नुकसान ने पृथ्वी को इंसानों सहित कई दूसरे जीवों के रहने लायक नहीं छोड़ा है।

नतीजन कई संक्रामक बीमारियां तेजी से पैर प्रसार रही है। जो न केवल इंसानों बल्कि दूसरे जीवों और पेड़ पौधों के लिए भी खतरा पैदा कर रही हैं। इन प्रभावों को गहराई से समझने के लिए नॉट्रे डेम विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं के नेतृत्व में एक नया अध्ययन किया है, जिसके नतीजे अंतराष्ट्रीय जर्नल नेचर में प्रकाशित हुए हैं।

हालांकि देखा जाए तो वैज्ञानिकों ने पहले भी कुछ खास बीमारियों के बढ़ते मामलों और पारिस्थितिक तंत्र पर आते बदलावों पर ध्यान केंद्रित किया है। इनमें मलेरिया जैसी बीमारियां शामिल हैं। मलेरिया जोकि मच्छरों से फैलने वाली बीमारी है, उसके प्रसार में जलवायु परिवर्तन बड़ी भूमिका निभा रहा है। इसकी पुष्टि विश्व स्वस्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने भी की है।

चूंकि गर्म और शुष्क जलवायु में मच्छर जैसे जीव खूब पनपते हैं। दूसरी तरफ इनके प्राकृतिक आवासों के खत्म होने से यह बीमारी फैलाने वाले जीव इंसानी बस्तियों के कहीं ज्यादा करीब आ रहे हैं नतीजन इन बीमारियों का खतरा बढ़ रहा है। मलेरिया के मामले में तो कई ऐसे भी उदाहरण सामने आए हैं जहां यह बीमारी उन क्षेत्रों में भी फैल रही है, जहां पहले कभी इनका खतरा नहीं देखा गया। इसी तरह वन्यजीवों की विविधता में आती गिरावट से उत्तरी अमेरिका में लाइम रोग के मामले बढ़ सकते हैं।

वहीं नॉट्रे डेम विश्वविद्यालय से जुड़े शोधकर्ताओं के नेतृत्व में किए इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने इस बात का गहराई से अध्ययन किया है कि जलवायु और पर्यावरण पर बढ़ता इंसानी प्रभाव किस तरह जटिल समस्याएं पैदा कर रहा है।

इस बारे में अध्ययन से जुड़े शोधकर्ताओं ने प्रेस विज्ञप्ति में जानकारी देते हुए लिखा है कि, "हम जानते है कि संक्रामक रोग बढ़ रहे है और मनुष्य पर्यावरण में व्यापक बदलाव कर रहा है, लेकिन इस बारे में सटीक जानकारी नहीं है कि वो कौन से बदलाव हैं जो इन बीमारियों को सबसे अधिक प्रभावित कर रहे हैं।" यही वजह है कि इस शोध में उन बदलावों का अध्ययन किया गया है, जो इन संक्रामक बीमारियों के प्रसार और उनमें कमी दोनों से जुड़े हैं। बता दें कि यह संक्रामक रोग न केवल इंसानों बल्कि दूसरे जीवों और पेड़-पौधों को भी प्रभावित कर रहे हैं।

अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने आठ अलग-अलग भाषाओं में पहले से मौजूद 972 शोधों के करीब 2,938 अवलोकनों का विश्लेषण किया है, ताकि यह समझा जा सके कि संक्रामक रोग, वैश्विक बदलावों के प्रति कैसे प्रतिक्रिया करते हैं। इसमें पौधों, जानवरों और मनुष्यों को प्रभावित करने वाले मेजबान और परजीवियों के 1,497 संयोजनों को शामिल किया गया था।

अपने इस विश्लेषण में वैज्ञानिकों ने उन पांच कारकों पर ध्यान केंद्रित किया है जो दुनिया भर के पारिस्थितिक तंत्र में बड़े पैमाने पर बदलाव की वजह बन रहे हैं। इनमें जैवविविधता को होता नुकसान, जलवायु परिवर्तन, रासायनिक प्रदूषण, विदेशी प्रजातियों का प्रसार और प्राकृतिक बसेरों में होता बदलाव और नुकसान शामिल है।

बता दें कि इस अध्ययन में जलवायु परिवर्तन के तहत बढ़ते तापमान, औसत तापमान और वर्षा में आता बदलाव शामिल थे। साथ ही प्राकृतिक आवासों को होते नुकसान में जंगलों का बिखराव, शहरीकरण आदि को शामिल किया गया था।

इस अध्ययन के बाद वैज्ञानिक इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि संक्रामक रोगों के फैलने की सबसे बड़ी वजह जैव विविधता को होता नुकसान है। जो इन रोगों के प्रसार में आशंका से कहीं ज्यादा बड़ी भूमिका निभा रहा है।

इसके बाद नई विदेशी प्रजातियों का उभरना, जलवायु परिवर्तन और केमिकल प्रदूषण दुनिया में संक्रामक रोगों के फैलने की सबसे बड़ी वजहें रही। रिसर्च के मुताबिक इन बदलावों की वजह से न केवल कुछ रोगों को फैलने का भरपूर मौका मिल रहा है, साथ ही उनके प्रसार के तरीकों में भी बदलाव आ रहा है।

गौरतलब है कि जहां इंसानों और दूसरे जीवों में संक्रामक रोगों के बढ़ते प्रसार से बीमारियों का खतरा बढ़ रहा है। साथ ही पेड़-पौधों और फसलों में रोगों के बढ़ने से कृषि, खाद्य सुरक्षा और जैवविविधता के लिए भी खतरा गहरा रहा है।

अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता जेसन रोहर ने प्रेस विज्ञप्ति में जानकारी देते हुए लिखा है कि, “पर्यावरण में किए कई बदलाव जानवरों और मनुष्यों में परजीवियों को बढ़ाते हैं। इसका मतलब है कि इन बदलावों से जानवरों से मनुष्यों में अधिक बीमारियां फैल सकती हैं। साथ ही इनकी वजह से महामारी का खतरा बढ़ सकता है।“

जलवायु परिवर्तन पर लगाम स्वास्थ्य ले लिए बन सकती है वरदान

जलवायु परिवर्तन को लेकर वैज्ञानिकों ने शोध में लिखा है कि जलवायु परिवर्तन और बढ़ती बीमारियों के बीच लगातार सामने आते संबंध दर्शाते है कि ये प्रभाव समय के साथ कहीं ज्यादा व्यापक होंगे, जो बढ़ते उत्सर्जन को कम करने की तत्काल आवश्यकता पर प्रकाश डालते हैं।

शोधकर्ताओं के मुताबिक जलवायु परिवर्तन के कारण गर्म होता मौसम रोगों को फैलाने वाले जीवों के लिए कहीं ज्यादा अनुकूल वातावरण तैयार कर रहा है। साथ ही इसकी वजह से उनके प्रजनन का समय भी बढ़ रहा है। ऐसे में इन परजीवियों के बढ़ने के साथ बीमारियों के प्रसार का खतरा भी बढ़ रहा है।

इसी तरह रासायनिक प्रदूषण जीवों की प्रतिरक्षा प्रणाली पर दबाव डाल सकता है। जलवायु परिवर्तन की वजह से जानवरों की गतिविधियों और आवास में बदलाव आ सकता है और उन्हें नई प्रजातियों के संपर्क में ला सकता है। जो रोगजनकों के प्रसार में मददगार साबित हो सकता है।

हालांकि जिस तरह इंसान पृथ्वी पर बदलाव कर रहा है उन सभी कारकों से न केवल संक्रामक रोग बढ़ रहे हैं साथ ही उनमें कमी भी आ सकती है। इस अध्ययन में जो सबसे हैरान करने वाली बात सामने आई, वो यह है कि प्राकृतिक आवासों के खत्म होने या उनमें बदलाव से संक्रामक रोगों का खतरा घट सकता है।

हालांकि अध्ययन इस विचार को नकारता नहीं है, कि वनों के नष्ट होने से बीमारी बढ़ सकती हैं। हालांकि इसके बजाय कुछ परिस्थितियों में प्राकृतिक आवासों और वन विनाश की वजह से कुछ परिस्थितयों में जोखिम बढ़ सकता है तो कुछ में कम हो सकता है। बता दें कि कुछ अध्ययन इस बात की पुष्टि करते हैं कि वनों को होते विनाश से मलेरिया से लेकर इबोला जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ सकता है।

वहीं इस नए अध्ययन के मुताबिक जिस तरह शहरीकरण हो रहा है उसके साथ साफ-सफाई, पानी की सप्लाई और सीवेज सिस्टम में भी सुधार आ रहा है जो संक्रामक रोगों में कमी की वजह बन रहा है।

ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि क्या वैश्विक बदलावों को पलट देना ही इनके बढ़ते प्रभावों को खत्म करने के लिए पर्याप्त होगा? इस बारे में रोहर ने प्रेस विज्ञप्ति के हवाले से पुष्टि की है कि, "इस बात के पुख्ता सबूत हैं कि सिर्फ वैश्विक बदलावों को उलट देना ही उनके प्रभावों को पूरी तरह खत्म करने के लिए पर्याप्त नहीं होगा।"

शोधकर्ताओं ने इस बात पर जोर दिया है कि इन रोगों के प्रसार के लिए जिम्मेवार कारकों को सम्बोधित करने के लिए और अधिक अध्ययन करने की आवश्यकता है। साथ ही यह भी पता लगाने की जरूरत है कि क्या पारिस्थितिकी तंत्र को बहाल करने से बीमारियों को नियंत्रित करने में मदद मिल सकती है।

अधिकांश अध्ययन एक समय में केवल एक ही कारक पर ध्यान देते हैं, भले ही जीव अक्सर एक साथ कई कारकों का सामना करते हैं। ऐसे में संक्रामक रोगों के प्रबंधन के लिए सीमित संसाधनों के साथ, उन वैश्विक बदलावों पर ध्यान केंद्रित करना महत्वपूर्ण है, जिनसे बीमारियों के बढ़ने की सबसे अधिक आशंका है।

शोधकर्ताओं ने इनसे निपटने के तरीकों पर प्रकाश डालते हुए जेसन रोहर प्रेस विज्ञप्ति में जानकारी दी है कि बढ़ते उत्सर्जन में कटौती, पारिस्थितिक तंत्र की सुरक्षा, और जैविक आक्रमण के साथ-साथ जैव विविधता को होते नुकसान को रोकने से पौधों, जानवरों और मनुष्यों में बीमारियों के बोझ को कम किया जा सकता है। उनके मुताबिक यदि इसे बेहतर सामाजिक और आर्थिक स्थितियों के साथ जोड़ा जाए तो यह और भी अधिक कारगर होगा।

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