2020 में चरम मौसमी घटनाओं से भारत को हुआ 6.5 लाख करोड़ रुपए का नुकसान

2020 में एशिया ने अपने इतिहास के सबसे गर्म वर्ष का सामना किया था। इस वर्ष का तापमान औसत तापमान से करीब 1.39 डिग्री सेल्सियस ज्यादा दर्ज किया गया था
2020 में चरम मौसमी घटनाओं से भारत को हुआ 6.5 लाख करोड़ रुपए का नुकसान
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2020 के दौरान भारत में जो जलवायु से जुड़ी आपदाएं आई थी, उनसे देश को 6.5 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा का नुकसान उठाना पड़ा था। यह जानकारी हाल ही में विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्लूएमओ) द्वारा जारी नई रिपोर्ट 'स्टेट ऑफ द क्लाइमेट इन एशिया 2020' में सामने आई है।

रिपोर्ट के अनुसार 2020 के दौरान चीन को इन आपदाओं में सबसे ज्यादा नुकसान उठाना पड़ा था। आंकड़ों से पता चला है कि उसे करीब 17.8 लाख करोड़ से ज्यादा का नुकसान हुआ था। वहीं जापान को 6.2 लाख करोड़ रुपए और दक्षिण कोरिया को करीब 1.8 लाख करोड़ रुपए का नुकसान झेलना पड़ा था।

2020 के दौरान एशिया में आए बाढ़ और तूफ़ान में 5,000 से ज्यादा लोगों की जान गई थी जबकि 5 करोड़ से ज्यादा लोग इससे प्रभावित हुए थे। हालांकि देखा जाए तो यह नुकसान पिछले दो दशकों में इन आपदाओं में हुए औसत नुकसान से कम है। पिछले दो दशकों में इन आपदाओं में औसतन हर वर्ष 15,500 लोगों की जान गई थी जबकि 1.58 करोड़ लोग प्रभावित हुए थे।

रिपोर्ट की मानें तो ऐसा इसलिए मुमकिन हो पाया है क्योंकि एशिया के कई देशों में आपदा की समय पूर्व चेतावनी प्रणाली पहले के मुकाबले कहीं बेहतर हो गई है। वहां 10 में से करीब सात लोग इन चेतावनी प्रणाली के दायरे में आते हैं।   

वहीं यदि अर्थव्यवस्था को हुए कुल नुकसान की बात करें तो चीन, भारत और जापान को सबसे ज्यादा नुकसान उठाना पड़ा था। लेकिन यदि जीडीपी के आधार पर देखें तो तजाकिस्तान को उसके जीडीपी का करीब 7.9 फीसदी नुकसान झेलना पड़ा था। वहीं कंबोडिया को 5.9 फीसदी और लाओस को 5.8 फीसदी नुकसान झेलना पड़ा था।    

2020 में एशिया ने किया था इतिहास के अपने सबसे गर्म वर्ष का सामना

इसमें कोई शक नहीं कि वैश्विक स्तर पर जिस तेजी से उत्सर्जन बढ़ रहा है उसका असर जलवायु परिवर्तन के रूप में सारी दुनिया को झेलना पड़ रहा है।  भारत और एशिया के अन्य देश भी उनसे अलग नहीं हैं। रिपोर्ट की मानें तो 2020 में एशिया ने अपने इतिहास के सबसे गर्म वर्ष का सामना किया था।  इस वर्ष का तापमान 1981 से 2010 के औसत तापमान से करीब 1.39 डिग्री सेल्सियस ज्यादा था। 

रिपोर्ट के मुताबिक जलवायु परिवर्तन और उससे जुड़ी आपदाओं का दंश पूरे एशिया को 2020 में झेलना पड़ा था। इन आपदाओं में हजारों लोगों की जान गई थी, लाखों को बेघर होना पड़ा था। यही नहीं अर्थव्यवस्था को करोड़ों रुपए का नुकसान हुआ था साथ ही बड़े पैमाने पर बुनियादी ढांचे को नुकसान पहुंचा था।  सिर्फ इंसान ही नहीं इन आपदाओं का असर पर्यावरण और अन्य जीवों को भी झेलना पड़ा था।

रिपोर्ट के अनुसार एशिया में जिस तरह से गर्मी और उमस का कहर बढ़ रहा है उसके चलते आने वाले कुछ वर्षों में अरबों डॉलर का नुकसान होने की सम्भावना है क्योंकि भारत जैसे देशों में अभी भी एक बड़ी आबादी कृषि और अन्य कार्यों पर निर्भर है बढ़ती गर्मी और उमस इस बाहर गर्मी में किए जाने वाले शारीरिक परिश्रम पर बुरा असर डालेगी। 

यही नहीं 2020 के दौरान हिन्द, प्रशांत और आर्कटिक महासागर में समुद्र की सतह का औसत तापमान रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया था। रिपोर्ट की मानें तो एशिया के आसपास मौजूद समुद्र की सतह का औसत तापमान वैश्विक औसत की तुलना में कहीं ज्यादा तेजी से बढ़ रहा है। वहीं अरब सागर और आर्कटिक के कुछ हिस्सें औसत से तीन गुना  ज्यादा तेजी से गर्म हो रहे हैं। 

रिपोर्ट में यह भी सम्भावना जताई गई है कि जलवायु में जिस तरह से बदलाव आ रहा है उसका असर कोरल रीफ पर भी पड़ेगा। अनुमान है कि 2050 तक इसके चलते रीफ की भोजन उत्पन्न करने की क्षमता करीब 50 फीसदी तक घट जाएगी।

यदि हिमालय की बात करें तो वो साफ पानी का एक प्रमुख स्रोत है।  अनुमान है कि जिस तेजी से तापमान में वृद्धि हो रही है उसके चलते 2050 तक हिमालय के करीब 40 फीसदी तक ग्लेशियर पिघल जाएंगें। जिससे इनपर निर्भर क्षेत्रों में जल संकट पहले के मुकाबले कहीं ज्यादा बढ़ जाएगा। अनुमान है कि इसका असर इस क्षेत्र में रहने वाले करीब 75 करोड़ लोगों पर पड़ेगा।   

यह रिपोर्ट संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (कॉप-26) से कुछ दिन पहले ही जारी की गई है। गौरतलब है कि यह सम्मेलन 31 अक्टूबर से 12 नवंबर के बीच ग्लासगो में आयोजित किया जाएगा। ऐसे में जलवायु परिवर्तन को लेकर सारी दुनिया की निगाहें अब कॉप-26 पर लगी हैं। सभी को उम्मीद है कि इस वार्ता के सकारात्मक नतीजे सामने आएंगे। 

आज मानवता समय के उस कगार पर आ गई है कि यदि उसने जलवायु परिवर्तन की समस्या को हल करने के लिए आज कुछ नहीं किया तो भविष्य में उसके पास पछताने के सिवा कुछ नहीं रहेगा।

जलवायु परिवर्तन किसी एक शहर या देश की समस्या नहीं है यह एक ऐसी समस्या है, जिसका असर सारी दुनिया झेल रही है, और जिसके लिए हम इंसान ही जिम्मेवार हैं। हम आज जो फैसला लेंगे उस पर हमारे आने वाली पीढ़ियों का भविष्य निर्भर करेगा। अब यह हमें तय करना है कि हम अपने बच्चों और अपनी आने वाली पीढ़ियों को कैसा भविष्य देना चाहते हैं।     

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