हाल ही में जारी अनुमानों से पता चला है कि सदी के अंत तक भारत के वार्षिक औसत तापमान में 3 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हो सकती है। यह जानकारी संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) और जलवायु परिवर्तन की वास्तविक कीमत का आंकलन कर रहे शोध संस्थान क्लाइमेट इम्पैक्ट लैब द्वारा जारी आंकड़ों में सामने आई है।
इस बारे में जारी नए आंकड़ों से पता चला है कि कैसे जलवायु में आता बदलाव कैसे दुनिया भर में मृत्यु दर, लोगों की जीविका और ऊर्जा के इस्तेमाल को किस तरह प्रभावित कर सकता है।
रिसर्च में जो जानकारी सामने आई है उसके अनुसार भारत में माजूदा औसत वार्षिक तापमान 26.3 डिग्री सेल्सियस है जो सदी के अंत तक 3 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के साथ बढ़कर 29.3 डिग्री सेल्सियस पर पहुंच जाएगा। गौरतलब है कि तापमान में वृद्धि की यह गणना आरसीपी 8.5 परिदृश्य के तहत की गई है।
वहीं यदि दिल्ली और अहमदाबाद के वार्षिक औसत तापमान की बात करें तो यह वृद्धि 3.5 डिग्री सेल्सियस तक हो सकती है जबकि फरीदाबाद और जैसलमेर के वार्षिक औसत तापमान में 3.6 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होने की आशंका जताई गई है।
इतना ही नहीं रिपोर्ट में अनुमान जताया है कि बढ़ते तापमान के चलते देश में सदी के अंत तक साल में औसतन 181 दिनों में तापमान औसतन 35 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा रहेगा। इस मामले में यदि दिल्ली को देखें तो वहां स्थिति ज्यादा गंभीर रहने की आशंका है जब साल के औसतन 217 दिनों तक तापमान 35 डिग्री सेल्सियस रहेगा।
इसी तरह फरीदाबाद में 219 दिन, मेरठ में 213 दिन, अमृतसर में 203 दिन, लुधियाना में 221 दिन, लखनऊ में 224 दिन, आगरा में 230 दिन, वाराणसी में 241 दिन, पटना में 223 दिन, राजकोट में 244, अहमदाबाद में 268, जैसलमैर में 257, वड़ोदरा में 244, सोलापुर में 231, हैदराबाद में 167, चेन्नई में 219, कोलकाता में 178 दिनों में तापमान 35 डिग्री सेल्सियस को पार कर जाएगा। यह आंकड़े स्पष्ट तौर पर दर्शाते हैं कि देश में बढ़ते तापमान और उससे जुड़ी समस्या कहीं ज्यादा विकराल रूप ले लेंगी।
स्वास्थ्य और रोजगार पर पड़ेगा व्यापक असर
वहीं यदि देश में इसके मृत्युदर पर पडने वाले असर की बात करें तो इस बढ़ते तापमान की वजह से देश में प्रति लाख पर आबादी पर मृत्युदर में 23 का इजाफा हो जाएगा। मतलब हर लाख आबादी पर करीब 23 और लोग इस बढ़ते तापमान की भेंट चढ़ जाएंगे। यह आंकड़ा दिल्ली में 55 पर पहुंच जाएगा, जबकि अन्य शहरों जैसे फरीदाबाद में 66 मेरठ में 70, जयपुर में 54, लुधियाना में 79, लखनऊ में 59, इलाहाबाद में 84, वाराणसी में 75 और जैसलमेर में 81 पर पहुंच जाएगा।
इस बारे में भारतीय मौसम विभाग के महानिदेशक डॉक्टर मृत्युंजय महापात्रा का कहना है कि 1901 के बाद से वर्ष 2021 अब तक का पांचवां सबसे ज्यादा गर्म वर्ष आंका गया है। उन्होंने बताया कि मौसम विभाग के आंकड़ों के अनुसार 1901 से 2001 तक मौसम में इतने बदलाव नहीं देखे गए जितने कि 2001 के बाद से देखे जा रहे हैं।
इतना ही नहीं इसकी वजह से देश में ऊर्जा उपयोग में भी भारी इजाफा आ जाएगा। अनुमान है कि देश में प्रति व्यक्ति ऊर्जा खपत में 1.3 गीगाजूल्स की वृद्धि होने की आशंका है। वहीं दिल्ली-फरीदाबाद में यह वृद्धि 1.5 गीगाजूल्स तक हो सकती है।
इतना ही नहीं इसकी वजह से देश में ऊर्जा उपयोग में भी भारी इजाफा आ जाएगा। अनुमान है कि देश में प्रति व्यक्ति ऊर्जा खपत में 1.3 गीगाजूल्स की वृद्धि होने की आशंका है। वहीं दिल्ली-फरीदाबाद में यह वृद्धि 1.5 गीगाजूल्स तक हो सकती है।
वहीं यदि लोगों के रोजगार और काम-धंधों पर पड़ने वाले असर को देखें तो सदी के अंत तक जलवायु में आते इन बदलावों के चलते उनके प्रति श्रमिक औसतन काम के समय में 61.6 घंटों की गिरावट आ सकती है, जिसका सीधा खामियाजा उनकी आय पर पड़ेगा। यह गिरावट दिल्ली में 76.8 और फरीदाबाद में 77.8 घंटों तक पहुंच जाएगी। इसी तरह अहमदाबाद में प्रतिश्रमिक 86.3, इलाहबाद में 81.5 वहीं वाराणसी में 78.6 घंटों तक पहुंच सकती है।
स्थिति सिर्फ भारत में ही गंभीर नहीं है रिपोर्ट में आशंका जताई गई है कि यदि कार्बन उत्सर्जन में गिरावट नहीं आई तो विश्व के कुछ हिस्सों में जलवायु परिवर्तन का असर, कैंसर से भी दोगुना घातक हो सकता है।
हालांकि रिपोर्ट में यह भी माना है कि इसका असर अलग-अलग क्षेत्रों में भिन्न हो सकता है। यह इस बात पर भी निर्भर करेगा कि देशों के पास परिस्थितियों के अनुरूप ढलने के लिए कितने संसाधन उपलब्ध हैं। इतना ही नहीं अनुमान है कि कृषि, निर्माण, खनन और विनिर्माण जैसे उद्योगों पर इसका सबसे ज्यादा असर पड़ने की आशंका है क्योंकि यह क्षेत्र काफी हद तक जलवायु पर भी निर्भर करते हैं। इसकी वजह से आने वाले वर्षों में दुनिया भर में असमानता और ज्यादा बढ़ सकती है।
ऐसे में संयुक्त राष्ट्र एजेंसी ने इस बारे में आगाह किया है कि तत्काल व समन्वित कार्रवाई के अभाव में जलवायु परिवर्तन के कारण मानव विकास की राह में मुश्किलें कहीं ज्यादा बढ़ जाएंगी और दुनियाभर में विषमता की खाई कहीं ज्यादा गहरा जाएगी।