जलवायु परिवर्तन: एक ही नाव पर सवार हैं भारत-पाकिस्तान, 30 गुना तक बढ़ गया है गर्मी का कहर

जलवायु परिवर्तन ने भारत और पाकिस्तान में भीषण गर्मी की सम्भावना को 30 गुना तक बढ़ा दिया है। इतना ही नहीं गर्मी की यह लहर समय से पहले ही दोनों देशों को लम्बे समय के लिए अपनी चपेट में ले रही है
जलवायु परिवर्तन: एक ही नाव पर सवार हैं भारत-पाकिस्तान, 30 गुना तक बढ़ गया है गर्मी का कहर
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भारत-पाकिस्तान के बीच आपस में चाहे कितने भी मतभेद हों लेकिन जलवायु परिवर्तन के मामले में दोनों ही देश एक ही नाव पर सवार हैं। हाल ही में दोनों देशों में बढ़ती गर्मी और लू को लेकर अंतराष्ट्रीय शोधकर्ताओं द्वारा की गई एक एट्रिब्यूशन रिसर्च से पता चला है कि जलवायु परिवर्तन ने भारत और पाकिस्तान में भीषण गर्मी की आशंका को 30 गुना तक बढ़ा दिया है। इतना ही नहीं गर्मी की यह लहर समय से पहले ही दोनों देशों को लम्बे समय के लिए अपनी चपेट में ले रही है।

इतना है नहीं रिपोर्ट के अनुसार यदि वैश्विक तापमान में होती वृद्धि 2 डिग्री सेल्सियस को पार कर जाती है तो भविष्य में 2022 में पड़ रही भीषण गर्मी और लू जैसी घटनाओं की आशंका और 20 गुना तक बढ़ जाएगी।

गौरतलब है कि भारत, पाकिस्तान सहित दक्षिण एशिया के कई हिस्सों में मार्च से ही भीषण गर्मी पड़ रही है, जिसका कहर अभी भी जारी है। बढ़ते तापमान का ही नतीजा है कि इस साल भारत ने अपने इतिहास का सबसे गर्म मार्च का महीना दर्ज किया था, जब तापमान सामान्य से 1.86 डिग्री सेल्सियस ज्यादा रिकॉर्ड किया गया था। इसी तरह पाकिस्तान में भी इस साल मार्च का महीना पिछले 60 वर्षों में सबसे ज्यादा गर्म था।

इतना ही नहीं बारिश के मामले में इस साल मार्च का महीना ज्यादा सूखा था। जहां इस साल पाकिस्तान में मार्च के दौरान सामान्य से 62 फीसदी कम बारिश हुई थी वहीं भारत में भी सामान्य से 71 फीसदी कम बारिश रिकॉर्ड की गई। नतीजन परिस्थितियां भीषण गर्मी और लू के लिए अनुकूल बन गई थी।  आईपीसीसी की हालिया रिपोर्ट से भी पता चला है कि दक्षिण एशिया में इस सदी के दौरान लू का प्रकोप पहले से कहीं ज्यादा रहने की आशंका है। ऊपर से बढ़ती आद्रता के चलते तापमान व गर्मी का एहसास कहीं ज्यादा होगा।

नतीजन परिस्थितियां भीषण गर्मी और लू के लिए अनुकूल बन गई थी। यही वजह थी कि भारत में लू का कहर अप्रैल में भी जारी था और वो महीने के अंत तक अपने चरम पर पहुंच गया था। गौरतलब है कि 29 अप्रैल तक भारत का 70 फीसदी हिस्सा लू से प्रभावित था।

वहीं अप्रैल के अंत और मई में लू का कहर तटीय क्षेत्रों और भारत के पूर्वी हिस्सों में भी महसूस किया गया था। हालांकि यह शुरूआती, लंबी और शुष्क गर्मी थी जो सदी की शुरुआत में घटने वाली लू की घटनाओं से बिलकुल अलग हैं।

100 गुना तक बढ़ गई है गर्मी की आशंका

देखा जाए तो मानसून से पहले देश में लू का कहर असामान्य नहीं है। लेकिन इसका इतने लम्बे समय तक रहना सामान्य नहीं है। शोधकर्ताओं के मुताबिक जलवायु में आता बदलाव मानसून से पहले की गर्मी की तीव्रता को और बढ़ा रहा है। इस बारे में ब्रिटेन के मौसम विभाग ने चेतावनी दी है कि वैश्विक तापमान में होती वृद्धि ने उत्तर-पश्चिमी भारत और पाकिस्तान के कई हिस्सों में रिकॉर्ड तोड़ गर्मी की सम्भावना को 100 गुना तक बढ़ा दिया है। 

पाकिस्तान के लिए जारी आधिकारिक आंकड़ों से पता चला है कि इस बार प्रचंड गर्मी का दौर 7 मई से शुरू हुआ था, जब पाकिस्तान के जकोबाबाद और सिबी में पारा 48 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया था। वहीं 11 मई को एक बार फिर से जकोबाबाद में अधिकतम तापमान 47.4 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया।

इस बारे में यूके मौसम विभाग से जुड़े मौसम विज्ञानी निक सिल्कस्टोन का कहना है कि साल के इस समय में यह तापमान सामान्य से 5 से 7 डिग्री सेल्सियस ज्यादा है। भारत सरकार ने भी अपनी एक आधिकारिक रिपोर्ट में कहा है कि 1951 से 2015 के बीच भारत में भीषण गर्मी की आवृति बढ़ी है। साथ ही पिछले 30 वर्षों में इसमें कहीं ज्यादा वृद्धि देखी गई है।

तापमान में होती वृद्धि का सीधा असर दोनों ही देशों में लोगों की रोजमर्रा की जिंदगी पर पड़ रहा है। प्रारंभिक रिपोर्ट से पता चला है कि लू और भीषण गर्मीं ने अब तक भारत-पाकिस्तान में 90 लोगों की जान ले ली है। वहीं एक तरफ बढ़ता तापमान और बारिश की कमी ने लोगों के स्वास्थ्य और कृषि पर भी व्यापक असर डाला है।

कृषि, स्वास्थ्य और जीविका पर पड़ रहा है व्यापक असर

हरियाणा, उत्तर प्रदेश और पंजाब में इसके चलते पैदावार में करीब 10 से 35 फीसदी की कमी की आशंका जताई जा रही है। इतना ही नहीं गर्मी के कहर का असर लोगों के स्वास्थ्य को भी भारी नुकसान पहुंचा रहा है, जिसकी वजह से उन्हें अस्पताल तक में भर्ती होना पड़ सकता है।

रिपोर्ट के मुताबिक इस बढ़ती गर्मी के चलते उत्तरी पाकिस्तान में हिमनद झील के कारण आकस्मिक बाढ़ आ गई थी। वहीं भारत में जंगल में लगने वाली आग की घटनाओं में भी वृद्धि दर्ज की गई थी। गर्मी ने भारत में गेहूं की पैदावार को कम कर दिया था जिसकी वजह से सरकार को उसका निर्यात बंद करना पड़ा था। इसी तरह देश में कोयले की कमी के चलते कई क्षेत्रों में बिजली गुल हो गई थी, जिसका सीधा असर लोगों के स्वास्थ्य और अर्थव्यवस्था पर पड़ा था। 

देखा जाए तो दोनों ही देशों में एक बड़ी  आबादी को अपनी जीविका के लिए बाहर खुले में काम करना पड़ता है, बढ़ती गर्मी उनकी उत्पादकता और स्वास्थ्य पर भी असर डाल रही है। नतीजन उनकी मजदूरी में कमी आ रही है। भारत में तो बढ़ती गर्मी और लू के चलते कही राज्यों में बच्चों के स्कूल तक जल्द बंद करने पड़ गए थे। इतना है नहीं स्ट्रीट वेंडर, निर्माण, मजदूर, ट्रैफिक पुलिस और खेतों में काम कर रहे किसानों के लिए यह गर्मी कहीं ज्यादा जानलेवा हो सकती है।

देखा जाए तो आने वाले समय में बढ़ते तापमान के साथ लम्बे समय तक चलने वाली लू और भीषण गर्मी का कहर आम होता जाएगा। नतीजन कुछ क्षेत्रों में परिस्थितियां जीवन के प्रतिकूल होती जाएंगी। ऐसे में इससे बचने के लिए हमें पहले ही तैयार रहना होगा।

हम सिर्फ यह मानकर नहीं रह सकते कि गर्मी के इन प्रभावों को टाला नहीं जा सकता। यदि सही समय पर सही कदम उठाए जाएं तो हम इसके बढ़ते प्रभावों को कम कर सकते हैं। इसमें हीट एक्शन प्लान, प्रारंभिक चेतावनी और कार्रवाई से लेकर लोगों में जागरूकता पैदा करना तक शामिल हैं। 

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