कॉप 28 : जलवायु परिवर्तन के चलते भारत को 2022 में उसके जीडीपी के आठ फीसदी का झेलना पड़ा नुकसान

देखा जाए तो जलवायु परिवर्तन के चलते हुए नुकसान का यह आंकड़ा भारत की जीडीपी में 2022 में हुई औसत वृद्धि से भी एक फीसदी अधिक है
असम में बाढ़ से जद्दोजहद करती स्थानीय महिला; फोटो: आईस्टॉक
असम में बाढ़ से जद्दोजहद करती स्थानीय महिला; फोटो: आईस्टॉक
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जलवायु में आते बदलावों का खामियाजा भारत को अलग-अलग रूपों में भुगतना पड़ रहा है। कहीं बाढ़, कहीं सूखा, तो कहीं तूफान ऐसी चरम मौसमी घटनाओं का आना आज बेहद आम हो गया है। इतना ही नहीं इसका सीधा असर देश की अर्थव्यवस्था पर भी पड़ रहा है।

डेलावेयर विश्वविद्यालय के जलवायु केंद्र ने अपनी नई रिपोर्ट “लॉस एंड डैमेज टुडे: हाउ क्लाइमेट चेंज इस इम्पैक्टिंग आउटपुट एंड कैपिटल” में खुलासा किया है, कि 2022 में जलवायु परिवर्तन के चलते भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) को आठ फीसदी का नुकसान झेलना पड़ा है। देखा जाए तो नुकसान का यह आंकड़ा देश की जीडीपी में 2022 के दौरान हुई औसत वृद्धि से भी एक फीसदी अधिक है।

गौरतलब है कि 2022 में भारत के जीडीपी में सात फीसदी का इजाफा दर्ज किया गया था। ऐसे में यदि भारत पर जलवायु परिवर्तन की मार न पड़ रही होती तो उसके जीडीपी में आठ फीसदी का इजाफा हो सकता था।

इतना ही नहीं रिपोर्ट में यह भी खुलासा किया गया है कि 2022 तक भारत की पूंजी संपदा यानी कैपिटल वेल्थ में 7.9 फीसदी की गिरावट आई है, जिसका मुख्य कारण मानव-निर्मित पूंजी जैसे बुनियादी ढांचे आदि पर जलवायु परिवर्तन की पड़ती मार है। हालांकि यदि देश की रिन्यूएबल कैपिटल पर पड़ते प्रभाव को देखें तो वो करीब-करीब तटस्थ है, क्योंकि बढ़ते तापमान का जो सीधा प्रभाव पड़ रहा है उसकी भरपाई जीडीपी के विकास में आती गिरावट से हो रही है।

रिपोर्ट के अनुसार पिछले तीन दशकों में रियो कन्वेंशन के बाद से, पूंजी और संसाधनों पर पड़ते प्रभावों की गणना करते हुए, इसके कुल आर्थिक नुकसान को देखें तो वो 296.1 लाख करोड़ रुपए (355,500 करोड़ डॉलर) आंका गया है।

रिपोर्ट के अनुसार ऐसा नहीं है कि अर्थव्यवस्था को होने वाला यह नुकसान केवल भारत के जीडीपी तक ही सीमित है। यह वैश्विक अर्थव्यवस्था को पहले ही बुरी तरह से प्रभावित कर रहा है। हालांकि इसका सबसे ज्यादा खामियाजा विकासशील देशों को भुगतना पड़ रहा है।

बता दें कि अपनी इस रिपोर्ट में अर्थशास्त्री जेम्स राइजिंग ने जलवायु परिवर्तन के कारण मौजूदा समय में होने वाले व्यापक आर्थिक नुकसान पर प्रकाश डाला है। यह रिपोर्ट 58 आर्थिक मॉडलों की मदद से तैयार की गई है। साथ ही जलवायु परिवर्तन के कारण वर्तमान जीडीपी और पूंजीगत हानि के "सर्वोत्तम अनुमान" का आंकलन करने के लिए इसमें मशीन लर्निंग जैसे नई तकनीकों की भी मदद ली गई है।

भारत के साथ-साथ पूरी दुनिया पर पड़ रही है मार

रिपोर्ट के मुताबिक वैश्विक स्तर पर यदि जलवायु परिवर्तन के चलते वैश्विक जीडीपी में आई गिरावट को देखें तो वो करीब 6.3 फीसदी दर्ज की गई है। बता दें कि जीडीपी को हुए इस नुकसान में लोगों की कुल सम्पत्ति को हुए नुकसान को भी ध्यान में रखा गया है। वहीं इसके बिना 2022 में वैश्विक स्तर पर अर्जित जीडीपी में हुए नुकसान से जुड़े आंकड़ों को देखें तो वो 1.8 फीसदी दर्ज किया गया है, जो करीब  125 लाख करोड़ रुपए (डेढ़ लाख करोड़ डॉलर) के बराबर है।

इन दोनों आंकड़ों के बीच जो यह अंतर है वो स्पष्ट करता है कि इसके प्रभाव हर जगह समान नहीं हैं। इसका मतलब है कि वो कमजोर देशों और उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों को अधिक प्रभावित कर रहे हैं, जहां आबादी ज्यादा, लेकिन पैसा कम है।

जो निष्कर्ष सामने आए हैं उनके मुताबिक निश्चित रूप से, सबसे कमजोर देशों को अपने लोगों की कुल संपत्ति में औसतन 8.3 फीसदी के नुकसान का सामना करना पड़ता है। विशेष रूप से, दक्षिण पूर्व एशिया और दक्षिणी अफ्रीका के देश इससे काफी ज्यादा प्रभावित हुए हैं, जहां देशों की कुल संपत्ति (जीडीपी) में क्रमशः 14.1 फीसदी और 11.2 फीसदी की औसत हानि हुई है।

इस बारे में अध्ययन से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता और डेलावेयर विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर डॉक्टर जेम्स राइजिंग का कहना है कि, "जलवायु में आते बदलावों के चलते दुनिया खरबों डॉलर अधिक गरीब हो गई है।" उनके मुताबिक इसका सबसे ज्यादा बोझ गरीब देशों पर पड़ रहा है। ऐसे में उन्हें उम्मीद है कि यह जानकारी उन कठिनाइयों को समझने में मदद करेगी जिनसे कई देश जूझ रहे हैं और उन्हें तत्काल इससे निपटने के लिए तत्काल मदद की आवश्यकता है।

कॉप-28 के पहले ही दिन 'हानि और क्षति' फण्ड को मिली मंजूरी

गौरतलब है कि धरती पर मंडराते सबसे बड़े खतरों में से एक जलवायु परिवर्तन पर चर्चा के लिए वार्ताओं का दौर कल से शुरू हो चुका है। संयुक्त राष्ट्र के इस अंतराष्ट्रीय सम्मेलन (कॉप-28) का हिस्सा बनने के लिए दुनिया भर के नेता संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) में एकजुट हो रहे हैं। 30 नवंबर से 12 दिसंबर 2023 तक चलने वाले इस सम्मलेन में जलवायु परिवर्तन के साथ-साथ उससे जुड़े कई मुद्दों पर चर्चा की जाएगी।

कल पहले ही दिन दुबई में इसमें हिस्सा ले रहे प्रतिनिधियों के बीच, उस कोष को सक्रिय बनाने पर सहमति हो चुकी है, जो जलवायु परिवर्तन द्वारा हो रही 'हानि और क्षति' का सामना कर रहे कमजोर देशों के नुकसान की भरपाई करने में मदद करेगा। विशेषज्ञों द्वारा इस समझौते को, सम्मेलन के पहले ही दिन, एक बड़ी सफलता माना जा रहा है।

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