भारत में कैसे की जाती है नुकसान एवं क्षति की लागत की गणना

भारत में किसी आपदा के लिए नुकसान और क्षति का आकलन अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग ढंग से होता है, हालांकि प्रक्रिया मोटे तौर पर एक समान ही रहती है
फोटो: विकास चौधरी
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कॉप 27 में नुकसान और क्षति पर सहमति और फंड की स्थापना बरसों पुरानी मांग थी जो अब तक वैश्विक राजनीति के चलते अपने मुकाम पर नहीं पहुंची थी। इस साल जलवायु परिवर्तन के चलते चरम मौसमी घटनाओं को देखते हुए इसे नजरअंदाज करना मुश्किल था। भारत सहित कई विकासशील देशों की ओर से इस मांग को लेकर भारी दबाव था। डाउन टू अर्थ के कॉप का हासिल विश्लेषणात्मक रिपोर्ट की पहली कड़ी पढ़ें : डाउन टू अर्थ विश्लेषण: कॉप-27 से क्या हुआ हासिल? । अगली कड़ी में आपने पढ़ा कि आखिर नुकसान एवं क्षति फंड पर सहमति जताने की मजबूरी थी या बहुत जरूरी था। पढ़ें : कॉप-27 का हासिल: नुकसान एवं क्षति कोष को मंजूरी, मजबूरी या जरूरी? । आज की कड़ी में पढ़ें कि आखिर नुकसान एवं क्षति का आकलन कैसे होता है? 

नुकसान, क्षति का आकलन

  • आपदा के तुरंत बाद या दौरान ही बचाव और राहत कार्यों में समन्वय करना पहला कदम होता है।
  • आपदा स्थल पर काम करने वाली टीम का आकार और संरचना आपदा की भयावहता से निर्धारित होता है। वह क्षति-संबंधी डेटा भी एकत्र करती है।
  • एक बार जब आपदा समाप्त हो जाती है तो जिला स्तर पर राजस्व विभाग और आपदा प्रबंधन अधिकारी उस सूचना (डेटा) का सत्यापन करते हैं और इसे केंद्रीकृत राष्ट्रीय आपदा सूचना प्रबंधन प्रणाली में अपलोड करते हैं।
  • राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण सूचना की पुष्टि करता है और सहायता के मानदंडों के आधार पर आर्थिक मूल्य की गणना करता है। यह एक केंद्रीय दस्तावेज होता है, जो राज्य आपदा राहत कोष और राज्य सरकार के बजट से धन प्राप्त करने के लिए विभिन्न नुकसानों के मूल्य का आकलन करता है।
  • अगर फंडिंग में कोई गैप हो रहा है, तो वे राष्ट्रीय आपदा राहत कोष से फंडिंग के साथ उस गैप को खत्म करने के लिए ज्ञापन तैयार करते हैं। यह केंद्रीय टीम के अनुमोदन के अधीन होता है, जो डेटा का पुनर्निरीक्षण करते हैं।
  • सूखे जैसी धीमी शुरुआत वाली आपदा के लिए एजेंसियां वर्षा और मिट्टी की नमी के स्तर को देखकर इसकी शुरुआत की निगरानी करती हैं। इसके बाद जिला और पंचायत स्तर की टीमें बीज, चारा बैंक बनाती हैं। साथ ही महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम 2005 के तहत रोजगार सृजित करती हैं।
  • जब राज्य यह तय करता है कि मौजूदा तंत्र आपदा प्रबंधन कार्यों को संभालने में असमर्थ है, तो विश्व बैंक जैसी अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों को त्वरित क्षति और आवश्यकता आकलन करने के लिए शामिल किया जाता है। इसका इस्तेमाल 2013 की उत्तराखंड बाढ़ और 2018 और 2021 की केरल बाढ़ के दौरान किया गया था।

ठोस उपायों की जरूरत

  • 2018 में भारत ने पहली बार केरल बाढ़ के लिए आपदा के बाद आवश्यकता मूल्यांकन तंत्र का उपयोग किया, जिसका उपयोग 2008 से दुनिया भर में पहले से ही किया जा रहा था। 2019 में उड़ीसा में फैनी चक्रवात में भी इस तंत्र का इस्तेमाल किया गया था। वर्तमान में असम बाढ़ के लिए इसका उपयोग किया जा
    रहा है।
  • यह क्षति, नुकसान और आवश्यकता मूल्यांकन नामक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत तंत्र की जगह लेता है, जो भौतिक बुनियादी ढांचे पर केंद्रित है, न कि सामाजिक क्षेत्रों पर। भारत में 2001 के भुज भूकंप और 2004 की सुनामी ने विश्व बैंक से वित्त पोषण के लिए क्षति, हानि और जरूरतों के आकलन का इस्तेमाल किया।
  • तत्काल क्षति का विश्लेषण करने के अलावा यह विश्व बैंक जैसी अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों के साथ आपदा के बाद की जरूरतों का सूक्ष्म आर्थिक कीमत के स्तर पर मसलन कि स्थानीय अर्थव्यवस्था पर आपदा के प्रभाव का आकलन करता है। इसका एक तीसरा घटक है, जिसका लक्ष्य उस क्षेत्र के लचीलेपन में सुधार करना है।
  • 2019 में भारत ने इस आकलन के लिए एक दिशा-निर्देश जारी किया था और इस साल कम से कम आठ राज्यों में आई बाढ़ के लिए इसका इस्तेमाल किया जा रहा है। अगले तीन वर्षों में सभी प्रकार की आपदाओं के लिए इस तंत्र को देशभर में अपनाने की योजना बन रही है।

मुआवजा

  • आपदा के समय केवल राहत प्रदान की जाती है, वहीं मुआवजा आपदा के बाद दिया जाता है।
  • प्रत्येक राज्य में एक आपदा राहत कोष होता है, जिसे केंद्रीय गृह मंत्रालय और संबंधित राज्य/केंद्र शासित प्रदेश के बजट द्वारा वित्तपोषित किया जाता है। राशि और केंद्र-राज्य का हिस्सा वित्त आयोग द्वारा तय किया जाता है।
  • राज्य राहत कोष, क्षमता (व्यय के माध्यम से परिलक्षित), जोखिम (क्षेत्र और जनसंख्या), भेद्यता (जोखिम सूचकांक) के संयोजन के आधार पर धन आवंटित किया जाता है।
  • 15वें वित्त आयोग (2021-26) में पूरी अवधि के लिए 1,60,153 करोड़ रूपए का कोष है, इसमें केंद्र का हिस्सा 1,22,601 करोड़ रुपए है। इस राशि को छह किश्तों में विभाजित किया जाता है और वार्षिक तौर पर राज्य निधियों को जारी किया जाता है।
  • वित्त आयोग शहरी बाढ़, भूस्खलन-प्रवण राज्यों और अन्य चीजों के लिए अतिरिक्त धनराशि आवंटित करता है।
  • राज्य सरकारें कभी-कभी मौजूदा राशि को बढ़ाने या बड़ी आबादी को कवर करने के लिए अतिरिक्त मुआवजे की घोषणा करती हैं। महाराष्ट्र ने इस साल किसान आत्महत्याओं के लिए मुआवजे की घोषणा की है।

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