जलवायु परिवर्तन आपके दिमाग को कैसे प्रभावित कर सकता है, क्या कहता है शोध?

जलवायु परिवर्तन के विनाशकारी प्रभावों का एक नया रूप उभर रहा है, जो बढ़ते तापमान के कारण मानव मस्तिष्क को प्रभावित कर रहा है।
फोटो साभार: आईस्टॉक
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वैज्ञानिकों की एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने शोध के द्वारा बदलते वातावरण में हमारे दिमाग के काम करने के तरीके पर असर डालने वाले कारणों का पता लगाया है।

शोध की अगुवाई ब्रिटेन समेत कई विश्वविद्यालयों के साथ वियना विश्वविद्यालय द्वारा किया गया है। शोध उस भूमिका की भी पड़ताल करता है जो तंत्रिका वैज्ञानिक इन चुनौतियों को समझने और उनका समाधान करने के लिए उपयोग कर सकते हैं। यह शोध नेचर क्लाइमेट चेंज नामक पत्रिका में प्रकाशित किया गया है।

शोध के हवाले से, वियना विश्वविद्यालय के प्रमुख शोधकर्ता डॉ. किम्बर्ली सी. डोएल ने कहा हम काफी पहले से यह जानते हैं कि, पर्यावरण में होने वाली उथल-पुथल हमारे दिमाग में बदलाव ला सकते हैं। उन्होंने कहा, फिर भी हम केवल यह देखना शुरू कर रहे हैं कि जलवायु कैसे बदलती है, जो वर्तमान समय का सबसे बड़ा वैश्विक खतरा है, यह हमारे दिमाग को बदल सकता है।

वायु प्रदूषण जैसे कारणों के साथ-साथ, हम पहले से ही लगातार चरम मौसम की घटनाओं का सामना कर रहे हैं। जलवायु परिवर्तन के कारण तनाव और चिंता का अनुभव करते हैं, यह समझना महत्वपूर्ण है कि, इसका हमारे दिमाग पर क्या प्रभाव पड़ सकता है। केवल तभी हम इन बदलावों को कम करने के तरीके ढूंढना शुरू कर सकते हैं।

साल 1940 के दशक से, वैज्ञानिकों ने चूहों पर अध्ययन करके यह पता लगाया है कि, बदलते पर्यावरणीय कारण दिमाग के विकास और लचीलेपन में भारी बदलाव कर सकते हैं।

गरीबी में पले-बड़े होने के प्रभावों को देखने वाले शोधों में यह प्रभाव मनुष्यों में भी देखा गया, जिसमें दिमागी प्रणालियों में गड़बड़ी पाई गई, जिसमें संज्ञानात्मक उत्तेजना की कमी, विषाक्त पदार्थों के संपर्क में आना, खराब पोषण और बचपन में तनाव बढ़ना शामिल है।

यह शोध उस गहरे प्रभाव को उजागर करता है जो किसी के पर्यावरण में बदलाव होने पर उनके मस्तिष्क पर असर डाल सकता है।

अब, शोधकर्ता चरम मौसम की घटनाओं, जैसे लू या हीटवेव, सूखा और तूफान और संबंधित जंगल की आग और बाढ़ के संपर्क में आने से मानव मस्तिष्क पर पड़ने वाले प्रभाव का पता लगाने के लिए शोध का आह्वान कर रहे हैं।

उनका मानना है कि, ऐसी घटनाएं मस्तिष्क की संरचना, कार्य और पूरे स्वास्थ्य को बदल सकती हैं, इनका मूल्यांकन करने के लिए और अधिक शोध की आवश्यकता है,  जिससे इस बात का पता लगाया जा सके कि, व्यवहार में परिवर्तन को कैसे समझा जा सकता है।

शोध इस बात की भी पड़ताल करता है कि जलवायु परिवर्तन के बारे में हमारे सोचने के तरीके, हमारे निर्णय और हमारी प्रतिक्रिया के तरीके को प्रभावित करने में तंत्रिका विज्ञान किस तरह भूमिका निभा सकता है।

एक्सेटर और वियना विश्वविद्यालयों के डॉ मैथ्यू व्हाइट, सह-अध्ययनकर्ता ने कहा, प्रेरणाओं, भावनाओं और अस्थायी क्षितिज के लिए प्रासंगिक तंत्रिका गतिविधि को समझने से व्यवहार का पूर्वानुमान लगाने में मदद मिल सकती है। इससे जुड़ी बाधाओं के बारे में हमारी समझ में सुधार हो सकता है जो लोगों को उनकी इच्छानुसार पर्यावरण-समर्थक व्यवहार करने से रोकती है।

उन्होंने कहा कि, मस्तिष्क के कार्य और जलवायु परिवर्तन दोनों ही महत्वपूर्ण हैं अत्यधिक जटिल है। हमें उन्हें आपस में जोड़कर देखना शुरू करना होगा और जलवायु परिवर्तन की भविष्य की वास्तविकताओं के खिलाफ अपने दिमाग की रक्षा के लिए कार्रवाई करनी होगी, और जो पहले से ही हो रहा है उससे निपटने और बदतर स्थिति को रोकने के लिए अपने दिमाग का बेहतर उपयोग करना शुरू करना होगा।

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