जलवायु परिवर्तन से कैसे बच सकती हैं मूंगें की चट्टानें? तारा प्रशांत अभियान ने लगाया पता

दो साल से अधिक समय तक चले इस अभियान में, शोधकर्ताओं के टीम के आठ देशों के 70 वैज्ञानिकों ने अध्ययन किए गए सौ मूंगा चट्टानों से लगभग 58,000 नमूने लिए तथा उनका विश्लेषण किया
फोटो साभार: विकिमीडिया कॉमन्स, जिम मैरागोस
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सौ या दो सौ साल पहले के अभियानों के समान, तारा प्रशांत अभियान दो साल से अधिक समय तक चला। इसका उद्देश्य मूंगों के जीवन और अस्तित्व को लेकर शोध करना था। जहाज ने पूरे प्रशांत महासागर को पार किया, जो आज तक किसी भी समुद्री प्रणाली में आयोजित की गई सबसे बड़ी आनुवंशिक जानकारी जुटाने का अभियान है। टीम के आठ देशों के 70 वैज्ञानिकों ने अध्ययन किए गए सौ मूंगा चट्टानों से लगभग 58,000 नमूने लिए।

मूंगें की चट्टानों के पारिस्थितिकी तंत्र पर यह अब तक का सबसे बड़ा डेटासेट संग्रह मुफ्त में उपलब्ध है। आने वाले वर्षों में, मूंगें की चट्टानों के लिए रहने की स्थिति को स्पष्ट करने और उनके लिए जलवायु परिवर्तन से बचने का रास्ता खोजने के लिए अहम होगा।

अभियान के परिणामों में कहा गया कि, दुनिया भर में सूक्ष्मजीव जैव विविधता पहले की तुलना में बहुत अधिक है। विकासवादी अनुकूलन पर पर्यावरण के प्रभाव प्रजातियों में अलग-अलग हैं। मूंगों में महत्वपूर्ण जीन बार-बार दोहराए जाते हैं।

दुनिया भर में जैव विविधता अनुमान से दस गुना अधिक है

मूंगें की चट्टानें पृथ्वी पर सबसे अधिक जैविक रूप से विविध समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र हैं। हालांकि वे दुनिया के महासागरों का केवल 0.16 प्रतिशत भाग को कवर करते हैं, फिर भी वे लगभग 35 प्रतिशत ज्ञात समुद्री प्रजातियों का घर हैं। आनुवंशिक आधार पर अंकित करनेवाला डेटासेट का उपयोग करके, शोधकर्ताओं ने पाया कि विश्व स्तर पर अनुमानित सभी जीवाणु जैव विविधता पहले से ही मूंगें की चट्टानों के सूक्ष्मजीवों में निहित है।

कोन्स्टान्ज विश्वविद्यालय में जलीय प्रणालियों में अनुकूलन के आनुवंशिकी के प्रोफेसर और तारा प्रशांत अभियान के वैज्ञानिक क्रिश्चियन वूलस्ट्रा कहते हैं, हम वैश्विक माइक्रोबियल जैव विविधता को पूरी तरह से कम आंक रहे हैं। उनका कहना है कि जैव विविधता जो लगभग 50 लाख बैक्टीरिया, का वर्तमान अनुमान लगभग 10 गुना कम आंका गया है।

विकासवादी अनुकूलन पर पर्यावरण के प्रभाव विभिन्न प्रजातियों पर अलग-अलग होते हैं

अध्ययन किए गए 32 द्वीपसमूह प्राकृतिक प्रयोगशालाओं के रूप में काम करते हैं और पर्यावरणीय स्थितियों की एक विस्तृत श्रृंखला प्रदान करते हैं, जिससे स्थानीय पैमाने पर पर्यावरण और आनुवंशिक मापदंडों के बीच संबंधों को सुलझाने में मदद मिलती है।

इससे एक और महत्वपूर्ण खोज हुई, मूंगें की चट्टानों  के विकासवादी अनुकूलन पर पर्यावरण का प्रभाव विभिन्न प्रजातियों पर अलग-अलग होते हैं। इसे निर्धारित करने के लिए, शोधकर्ताओं ने पहली बार टेलोमेर, गुणसूत्रों के सिरे, जो आनुवंशिक जानकारी का स्रोत है, की जांच की गई।

मनुष्यों में, जीवन के दौरान टेलोमेर की लंबाई कम हो जाती है, अर्थात कोशिका विभाजन की बढ़ती संख्या के साथ, यह पता चलता है कि जैविक उम्र टेलोमेर की लंबाई से निकटता से जुड़ी हुई है। तारा प्रशांत अभियान के शोधकर्ताओं ने अब पाया है कि अत्यधिक तनाव-प्रतिरोधी मूंगों में टेलोमेर हमेशा एक ही लंबाई के होते हैं।

वूलस्ट्रा ने बतया कि, उनके पास स्पष्ट रूप से अपने टेलोमेर की लंबाई को संरक्षित करने के लिए एक तंत्र है। अधिक तनाव से प्रभावित होने वाली मूंगा प्रजाति में, जिसका जीवनकाल भी लगभग सौ साल कम होता है, टेलोमेयर की लंबाई पर्यावरणीय तनाव, जैसे तापमान में उतार-चढ़ाव से जुड़ी होती है। वूलस्ट्रा कहते हैं, जीवों के सहने की क्षमता, पर्यावरणीय तनाव के स्तर की सीधी छाप मानव स्वास्थ्य पर भी असर डाल सकती है।

मूंगों में महत्वपूर्ण जीन बार-बार दोहराए जाते हैं

तारा प्रशांत अभियान के शोध आंकड़ों से पता चला कि कुछ मूंगा प्रजातियों के लंबे जीवन का एक और कारण हो सकता है, कुछ जीनों को दोहराया जाना। कई महत्वपूर्ण जीन जीनोम में कई बार मौजूद होते हैं। शोधकर्ता एक नई उच्च-रिज़ॉल्यूशन तकनीक का उपयोग करके मूंगा जीनोम के सीक्वेंसिंग के माध्यम से इसे निर्धारित करने में सक्षम थे।

लॉन्ग-रीड सीक्वेंसिंग नामक यह तकनीक न केवल मौजूद जीनों के समूह को निर्धारित करना संभव बनाती है, बल्कि जीनोम में उनके क्रम को भी देखना संभव बनाती है। वूलस्ट्रा के अनुसार, जीन दोहराव की व्यापक उपस्थिति इस बात का संभावित स्पष्टीकरण हो सकती है कि मूंगे, उदाहरण के लिए, उथले पानी में अत्यधिक यूवी विकिरण के संपर्क में आने के बावजूद हजारों वर्षों तक जीवित क्यों रह पाते हैं।

तारा प्रशांत अभियान, जिसका नाम अनुसंधान पोत के नाम पर रखा गया है, आने वाले वर्षों के लिए मूंगें की चट्टानों की पारिस्थितिकी तंत्र विविधता के बड़े पैमाने पर विश्लेषण के लिए जानकारी प्रदान करेगा। जो बात इस कार्यक्रम को अनोखा बनाती है वह यह है कि नमूने कई स्थानों से और कई वर्षों में एकत्र किए गए थे। शोधकर्ताओं ने प्रत्येक जगह पर मूंगों की एक समान तरीके से जांच की, जिससे परिणाम पूरी तरह से तुलना करने योग्य हैं।

सभी आंकड़ों का संग्रह निःशुल्क तथा इन्हें आसानी से हासिल किया जा सकता है

सभी डेटासेट खुले तौर पर उपलब्ध हैं और उन्हें सभी शोधकर्ताओं के लिए एक वैज्ञानिक संसाधन के रूप में प्रदान करने के लिए भौतिक और रासायनिक माप के साथ पूरी तरह से वर्णित किया गया है।

वूलस्ट्रा कहते हैं कि, यह मूंगा चट्टानों पर अब तक एकत्र किए गए सबसे बड़ा डेटासेट संग्रह है और आसानी से उपलब्ध है। उम्मीद यह है कि यह आंकड़ों का संग्रह कई वर्षों तक दुनिया भर में मूंगें की चट्टानों के भविष्य के अध्ययन का मार्गदर्शन करने के लिए एक आधार और जानकारी के रूप में काम करेगा। शोध के परिणाम नेचर कम्युनिकेशंस में प्रकाशित किए गए हैं।

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