सक्रिय पश्चिमी विक्षोभ के साथ मानसून की तेज शुरूआत से दिल्ली में हुई भारी बारिश, विशेषज्ञों ने खतरे को लेकर चेताया

आईएमडी के मुताबिक, उत्तर-पश्चिम भारत में अगले कुछ दिनों, कम से कम एक जुलाई तक भारी बारिश हो सकती है। वहीं हिमालयी राज्यों में भारी बारिश के चलते बाढ़ और भूस्खलन तबाही मचा सकते हैं
केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री राम मोहन नायडू 27-28 जून की रात को हुई बारिश के बाद नई दिल्ली के आईजीआई एयरपोर्ट के टी1 टर्मिनल का निरीक्षण करते हुए। फोटो: @RamMNK /X
केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री राम मोहन नायडू 27-28 जून की रात को हुई बारिश के बाद नई दिल्ली के आईजीआई एयरपोर्ट के टी1 टर्मिनल का निरीक्षण करते हुए। फोटो: @RamMNK /X
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दिल्ली और आसपास के इलाकों में हुई भारी बारिश की वजह सक्रिय पश्चिमी विक्षोभ की मौजूदगी में तेजी से बढ़ता मानसून है, जो मजबूत स्थिति में है। अतीत के पन्नों पर नजर डालें तो इन दोनों का मिलन एक दुर्लभ घटना है, लेकिन जिस तरह से पश्चिमी विक्षोभ के चरित्र में बदलाव आ रहा है, उसकी वजह से यह घटनाएं पहले से कहीं ज्यादा सामने आ रही हैं।

गौरतलब है कि इस बारिश की वजह से दिल्ली और आसपास के कई इलाकों में बाढ़ की स्थिति पैदा हो गई। मीडिया में छपी खबरों से पता चला है कि 27-28 जून की रात में हुई भारी बारिश के चलते इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे के टर्मिनल-1 की छत गिर गई। इस दुर्घटना में एक व्यक्ति की मौत हो गई है, जबकि आठ अन्य लोग घायल हुए हैं। बारिश इतनी ज्यादा थी कि शहर के कई हिस्से जलमग्न हो गए हैं और वहां बाढ़ जैसे हालात बन गए हैं।

मौसम पूर्वानुमानकर्ता नवदीप दहिया ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर जानकारी साझा करते हुए लिखा है कि 28 जून को सुबह साढ़े आठ बजे तक भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) की सफदरजंग वेधशाला ने 228 मिलीमीटर बारिश दर्ज की। यह जून में दिल्ली में हुई अब तक की दूसरी सबसे अधिक बारिश है, इससे पहले 28 जून, 1936 को 235.5 मिलीमीटर बारिश रिकॉर्ड की गई थी।

इस भारी बारिश के पीछे की मुख्य वजह 28 जून 2024 को क्षेत्र में दक्षिण-पश्चिम मानसून का आगमन है। देखा जाए तो शुरूआत से जून के मध्य तक एक लम्बे अंतराल के बाद मानसून का यह आगमन काफी तेज और तीव्र था। बंगाल की खाड़ी से होकर आने वाला यह मानसून 31 मई से 19 जून के बीच करीब 19 दिनों तक थमा रहा।

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, बॉम्बे और मैरीलैंड विश्वविद्यालय से जुड़े प्रोफेसर रघु मुर्तुगुड्डे का कहना है कि, "ट्रफ (गर्त) का पूर्वी छोर तेजी से मुड़ गया, जबकि पश्चिमी किनारा भी उत्तर की ओर आगे बढ़ गया। हालांकि यह करीब दो सप्ताह तक मुंबई के आसपास ही रुका रहा।"  नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (नासा) के मुताबिक ट्रफ या गर्त, कम वायुदाब वाला लंबा, संकरा क्षेत्र होता है।

मुर्तुगुड्डे का आगे कहना है कि, "इसका मुख्य कारण है कि निम्न-स्तरीय जेट ने आखिरकार गति पकड़ ली है, जिससे खाड़ी में एक मजबूत दक्षिणी शाखा बन गई और यह वापस मुख्य मानसूनी क्षेत्र में लौट आई है।" हालांकि इसके अलावा अन्य कारक भी वजह रहे, जिसमें पश्चिमी विक्षोभ की उपस्थिति और उसकी वजह से क्षेत्र में बना चक्रवाती परिसंचरण शामिल था।

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि पश्चिमी विक्षोभ ऐसे तूफान हैं, जो उपोष्णकटिबंधीय जेट स्ट्रीम के साथ-साथ चलते हैं। सर्दियों के दौरान हिंदू कुश, काराकोरम और पश्चिमी हिमालय में होने वाली अधिकांश मौसमी और भारी बारिश की वजह यह तूफान ही हैं। ये तूफान इस क्षेत्र में जल सुरक्षा और कृषि के लिए बेहद मायने रखते हैं। हालांकि, अब ये गर्मियों में अधिक बार दिखाई दे रहे हैं।

आईएमडी ने 27 जून को अपनी प्रेस विज्ञप्ति में जानकारी दी है कि पश्चिमी विक्षोभ, जो एक गर्त या बढे हुए निम्न दबाव वाले क्षेत्र जैसा दिखता है, वो 64 डिग्री पूर्वी देशांतर और 28 डिग्री उत्तरी अक्षांश के आसपास स्थित था। मौसम विभाग ने उत्तर-पश्चिमी राजस्थान पर इस विक्षोभ से जुड़े एक चक्रवाती परिसंचरण की भी सूचना दी थी।

मार्च 2024 में यूरोपियन जियोसाइंस यूनियन के जर्नल वेदर एंड क्लाइमेट डायनेमिक्स में प्रकाशित विश्लेषण से संकेत मिलता है कि पश्चिमी विक्षोभ मई, जून और जुलाई के महीनों में उन क्षेत्रों में कहीं अधिक आम हो रहे हैं, जहां पहले वे दुर्लभ थे। यह अध्ययन यूनिवर्सिटी ऑफ रीडिंग के नेशनल सेंटर फॉर एटमॉस्फेरिक साइंसेज, यूनिवर्सिटी से जुड़े मौसम विज्ञानी कीरन एम आर हंट द्वारा किया गया है।

उदाहरण के लिए, यदि पिछले पांच दशकों से तुलना करें तो पिछले 20 वर्षों में जून के दौरान पश्चिमी विक्षोभ दोगुने से अधिक बार आए हैं। हंट इसका श्रेय मजबूत उपोष्णकटिबंधीय जेट स्ट्रीम और उत्तर की ओर इसकी देर से वापसी को देते हैं, जो ऐतिहासिक रूप से गर्मियों में मानसून के शुरू होने से पहले होता था। मानसून गर्त के साथ इस संपर्क के चलते विनाशकारी बाढ़ की घटनाएं सामने आ रही हैं। 2013 में उत्तराखंड और जुलाई 2023 में हिमाचल प्रदेश में ऐसी ही भयानक बाढ़ देखी गई थी।

इस भारी बारिश के लिए जिम्मेवार एक अन्य कारक गर्म अरब सागर से उत्तर-पश्चिम भारत में आने वाली अतिरिक्त नमी भी थी। मुर्तुगुडे ने समझाया कि, "यह सक्रिय चरण से जुड़ी एक क्लासिक प्रणाली है, जो जेट स्ट्रीम को पूरे अरब सागर को कवर करने और उत्तर-पश्चिम से मध्य भारत में महत्वपूर्ण नमी लाने की अनुमति देती है। अब, गर्त पूरी तरह से पश्चिम की ओर रुख कर रहा है।

आईएमडी द्वारा जारी नवीनतम पूर्वानुमान के मुताबिक, उत्तर-पश्चिम भारत में अगले कुछ दिनों, कम से कम एक जुलाई तक भारी बारिश जारी रह सकती है। हिमालयी राज्यों में भी भारी बारिश हो सकती है। आशंका है कि इन क्षेत्रों में अचानक से आई बाढ़ और भूस्खलन तबाही मचा सकते हैं।

मुर्तुगुडे कहते हैं, "मुझे और अधिक भारी बारिश की आशंका है। ऐसे में खासकर हिमालय की तलहटी और भूस्खलन पर नजर रखने की जरूरत है, क्योंकि उत्तरी अरब सागर की गर्म हवाएं गुजरात और उत्तर की ओर बहुत अधिक नमी ला रही हैं।"

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