एक नए अध्ययन से पता चला है कि भले ही हम तापमान में होती वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस पर सीमित रखने में सफल हो जाएं तो भी करीब 20 देशों में लू, सूखा, भारी बारिश और तेज हवाओं जैसी मौसमी घटनाओं का होना सामान्य हो जाएगा।
जर्नल अर्थ सिस्टम डायनेमिक्स में प्रकाशित इस रिसर्च के निष्कर्ष में कहा गया है कि यदि तापमान दो डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है तो यह प्रभाव 37 देशों में स्थाई हो जाएंगे। वहीं यदि तापमान औद्योगिक काल से पहले की तुलना में तीन डिग्री सेल्सियस बढ़ जाता है तो इन घटनाओं का असर 85 देशों को अपनी चपेट में ले लेगा।
इतना ही नहीं रिसर्च के मुताबिक दुनिया एक नहीं नहीं बल्कि एक साथ होने आने वाली कई मौसमी आपदाओं का कहर एक साथ झेलेगी। इनके कहर में अनुपातहीन बढ़ोतरी हो सकती है। देखा जाए तो इस तरह की मौसमी घटनाएं लगातार या एक साथ मानवता को अपना निशाना बनाएंगी। वहीं यदि तापमान में तीन डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होती है तो इस तरह की मौसमी घटनाओं का बार-बार घटना 9.6 गुणा तक बढ़ जाएगा।
शोधकर्ताओं का कहना है कि ऐसे में इन कई घटनाओं के के साथ घटने का असर इनके अलग-अलग घटने से कहीं ज्यादा विनाशकारी हो सकता है। उदाहरण के लिए, अत्यधिक तेज हवाओं और भारी बारिश दोनों का एक साथ हमला बुनियादी ढांचे को जर्जर कर सकता है और आर्थिक नुकसान को बढ़ा सकता है। गौरतलब है कि अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने इन घटनाओं के अलग-अलग घटने की चरम सीमाओं के साथ-साथ इनके मिश्रित प्रभाव की चरम सीमाओं का भी अध्ययन किया है।
इनमें लू और सूखे का संयुक्त असर शामिल था। यह दोनों घटनाएं दावाग्नि, फसलों, प्राकृतिक वनस्पतियों, बिजली संयंत्रों और मत्स्य पालन आदि को प्रभावित करती हैं। इसी तरह दूसरा मेल तेज हवाओं और भीषण बारिश के बीच था, जो तूफानी लहरों और बाढ़ का कारण बन सकती हैं।
पहले भी कई अध्ययन इस बात की पुष्टि कर चुके हैं कि पिछले चार से पांच दशकों में लू और सूखे की घटनाओं में वृद्धि हुई है। हालांकि उनका विश्लेषण इन घटनाओं के मेल और अलग-अलग घटने की आवृत्ति और समय में आने वाले बदलावों पर केंद्रित था।
भारत, दक्षिण पूर्व एशिया, दक्षिण अफ्रीका, सहेल और अमेजोनिया हैं बढ़ते तापमान के हॉटस्पॉट
इस रिसर्च में भारत, दक्षिण पूर्व एशिया, दक्षिण अफ्रीका, सहेल और अमेजोनिया को बढ़ते तापमान के हॉटस्पॉट के रूप में पेश किया है। इतना ही नहीं पता चला है कि यह क्षेत्र इन चरम मौसमी घटनाओं के लिए सबसे संवेदनशील हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक तापमान में जिस तरह वृद्धि हो रही है उसके चलते मध्य, उच्च अक्षांशीय और उपोष्णकटिबंधीय देशों में लू के बार-बार घटने की आशंका औद्योगिक काल से पहले की तुलना में दोगुनी हो गई है। वहीं उष्णकटिबंधीय देशों में यह बढ़कर चौगुनी हो गई है। वहीं कहीं यदि तापमान में होने वाली वृद्धि तीन डिग्री सेल्सियस पर पहुंच जाती है तो उष्णकटिबंधीय देशों में लू के बार-बार आने की आशंका साढ़े सात गुणा बढ़ जाएगी।
शोध के मुताबिक वैश्विक तापमान के बढ़ने के साथ सूखे के अलग-अलग पड़ने की घटनाओं में कमी आएगी। मुख्य रूप से ऐसा इसलिए है क्योंकि वैश्विक तापमान में होती वृद्धि के साथ सूखे और लू की घटनाओं के साथ-साथ घटने की संभावना बढ़ जाएगी।
अनुमान है कि जहां तापमान में 1.5 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के साथ लू और सूखे के साथ-साथ घटने की आशंका उष्णकटिबंधीय देशों में औद्योगिक काल से पहले की तुलना में 4.5 गुणा बढ़ जाएगी। वहीं तापमान में दो डिग्री सेल्सियस की आशंका के साथ यह यह 5.5 गुणा और तापमान में तीन डिग्री की वृद्धि के साथ 6.8 गुना बढ़ने की आशंका है।
शोधकर्ताओं ने यह भी जानकारी दी है कि वैश्विक तापमान में तीन डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के साथ मध्य और उच्च अक्षांश वाले देशों में लू और सूखे की घटनाओं में 9.6 गुणा वृद्धि होने की आशंका है। वहीं उपोष्णकटिबंधीय देशों में औद्योगिक काल से पहले की तुलना में 8.4 गुणा वृद्धि होने की आशंका है।
इसी तरह यदि वैश्विक तापमान में 1.5 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के साथ उष्णकटिबंधीय देशों में तेज हवाओं और अचानक से होने वाली भारी बारिश की संयुक्त घटनाओं में 3.3 गुणा वृद्धि हो सकती है।
वहीं तापमान में दो डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के साथ यह आंकड़ा बढ़कर चार गुणा और तीन डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के साथ बढ़कर 5.3 गुणा पर पहुंच सकता है। वहीं तापमान में तीन डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के साथ इस तरह की संयुक्त घटनाएं उपोष्णकटिबंधीय देशों में 2.3 गुणा और मध्य एवं उच्च अक्षांशीय देशों में दो गुणा बढ़ सकती है।
शोधकर्ताओं के मुताबिक तापमान में तीव्र वृद्धि के साथ जहां तीनों जलवायु क्षेत्रों में लू और सूखे के साथ-साथ घटने की आशंका में तीव्र वृद्धि देखी गई है। नाटकीय रूप से इसमें सबसे ज्यादा वृद्धि उत्तरी-मध्य और उच्च अक्षांशीय देशों में होने की आशंका है।
इसके बाद उपोष्णकटिबंधीय देशों में इनमें वृद्धि की आशंका जताई गई है। वहीं इसके विपरीत, यदि आकस्मिक होने वाली भारी बारिश और तेज हवाओं की बात करें तो निष्कर्ष से पता चला है कि उष्णकटिबंधीय देशों में इनके घटने की आशंका में सबसे ज्यादा वृद्धि दर्ज की गई है।