पिछली आधी सदी में दुनिया के लगभग हर क्षेत्र में गर्मी की चरम घटनाओं ने अपना स्वरुप बदला है, ऐसी घटनाएं जो अब एक सदी पहले की तुलना में सौ गुना अधिक हो रही हैं। सभी प्राकृतिक आपदाओं में से, अत्यधिक तापमान की घटनाएं मौसम से संबंधित मृत्यु दर का मुख्य कारण हैं। बढ़ती तापमान की घटनाएं आने वाले वर्षों में जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाली अतिरिक्त मौतों के लिए मुख्य कारण माने जा सकते हैं।
शहरों में गर्मी का प्रभाव वनस्पति वाले क्षेत्रों की तुलना में अधिक होता है। लेकिन शहरी क्षेत्रों के भीतर स्थितियां सभी हिस्सों में समान नहीं हैं। उनके या तो प्राकृतिक रूप के कारण या निवासियों की विशिष्ट आवश्यकताओं या कमजोरियों के कारण, इसलिए शहर के सभी जिलों में हीटवेव का प्रभाव समान नहीं होता हैं। इस प्रकार उन क्षेत्रों की पहचान करना जो विशेष रूप से गर्मी के तनाव की चपेट में हैं, वहां रहने वाले लोगों के स्वास्थ्य पर हीटवेव के प्रभावों को दूर करने के उद्देश्य से स्थानीय स्तर पर हस्तक्षेप करना महत्वपूर्ण है।
अध्ययन जिसका उद्देश्य यह पता लगाना है कि कौन से कारण हैं जिनसे शहरी गर्मी बढ़ रही है जिससे स्वास्थ्य प्रभावित हो रहा हैं। विश्लेषण ने इस विषय पर बड़े-बड़े चालीस अध्ययन का चयन किया है, ‘स्कोपस और पबमेड’ के दो प्रसिद्ध डेटाबेस से निकाले गए हैं।
अध्ययन यह पता लगाने के लिए है कि वे कौन से लक्षण है जो लोगों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य, जनसांख्यिकी, सामाजिक और आर्थिक स्थिति और तनाव को कम करने में आड़े आ सकते हैं। इस विश्लेषण में अध्ययनकर्ताओं ने उन कारणों को भी जोड़ा है जो इस तरह के वातावरण का निर्माण करते हैं। क्योंकि तापमान से संबंधित मृत्यु दर का संबंध एक क्षेत्रीय आधार पर नहीं होता है। बल्कि, यह शहरी बनावट से जुड़ा है, जहां प्राकृतिक, शारीरिक और सामाजिक-आर्थिक प्रक्रियाओं का परस्पर प्रभाव पड़ता है।
बढ़ती घटनाएं (एन्हांस्ड एक्सपोजर) की अवधारणा के माध्यम से, अध्ययन में पता चला है कि शहरों के विभिन्न स्थानों के अंदर प्राकृतिक वातावरण के विभिन्न पहलुओं को कैसे बढ़ाया या कम किया जा सका है।
शहर की जनसंख्या के गर्मी के सम्पर्क में आना शारीरिक जोखिम से जुड़ा हुआ है। शहरों के भीतर निर्मित क्षेत्र दिन के दौरान सौर ऊर्जा एकत्र करते हैं और रात के दौरान इसे छोड़ देते हैं। इसलिए शहरी क्षेत्र में रात के दौरान भी आसपास के पेड़ों वाले क्षेत्रों की तुलना में जहां पेड़ नहीं हैं ऐसे क्षेत्र अधिक गर्म रहते हैं। सीएमसीसी में शहरी योजनाकार और शोधकर्ता मारग्रेट ब्रील कहते हैं यह शहरों के उनके आकार और डिजाइन के आधार पर अधिक या कम गर्म होता है। लेकिन हम इस घटना के साथ केवल प्राकृतिक जोखिम पर विचार नहीं कर सकते हैं, जिसे "हीट आइलैंड" के रूप में जाना जाता है। अन्य स्थितियां जो जीना मुश्किल बना सकती हैं, और इससे भी घातक हो सकती हैं।
जैसा कि अध्ययन से पत चलता है, सामाजिक नुकसान गर्मी के खतरे को और अधिक बढ़ा सकते हैं। वहां लू (हीटवेव) से जुड़ी मृत्यु दर अधिक है जहां अपराध अधिक है और सामाजिक सामंजस्य कम है। दूसरी ओर यह विस्तृत पारिवारिक संबंधों की विशेषता वाले समुदायों में कम पाया गया जो अलग रहने के बजाय पारस्परिक देखभाल में विश्वास करते हैं। यह अध्ययन अर्बन क्लाइमेट नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ हैं।
शहरों में जीवन की गुणवत्ता न केवल शहरी स्थान के आकार से निर्धारित होती है, बल्कि इस तक पहुंच से भी निर्धारित होती है। यदि पेड़-पौधों (हरित) वाले क्षेत्र में पहुंच है, तो लोगों के जीवन स्तर में सुधार होता है। यह महामारी के दौरान दोनों के रूप में सच है, जैसा कि हम सभी इस अवधि में देख रहे हैं। फिर भी अगर पेड़-पौधों (हरित) वाले क्षेत्र अपराध या भारी यातायात वाली जगह है, जो लोग बाहर जाने से डरते हैं या गर्मी के मौसम में घर पर रहने में खुशी महसूस नहीं करते हैं वे सबसे कमजोर होते हैं उनको मृत्यु का अधिक खतरा होता हैं।
अध्ययन में कहा गया हैं कि इन पहलुओं की समझ और गर्मी के खतरे के आंकड़ों को एकत्र करना, इसके बाद स्थानिक योजना पर विचार करना और शहरी शासन निर्णयों का उपयोग करके कुशल सामाजिक और प्राकृतिक बुनियादी ढांचे के उपायों को पहचानने और कार्यान्वित करने के लिए महत्वपूर्ण हो सकता है।