दुनिया भर में बदलती जलवायु के प्रभाव से पहले से ही समुद्री बर्फ का नुकसान हो रहा है। समुद्र के स्तर में तेजी से वृद्धि हो रही है और अन्य खतरों के बीच लंबी अवधि तक चलने वाली खतरनाक गर्मी का प्रकोप जारी है।
अब दुनिया भर के महासागरों में प्लवक के लिपिड का पहले सर्वेक्षण के माध्यम से आवश्यक ओमेगा-3 फैटी एसिड के उत्पादन में तापमान से जुड़ी कमी का पूर्वानुमान लगाया गया है, जो लिपिड अणुओं का एक महत्वपूर्ण उप-समूह है।
इस अध्ययन की अगुवाई वुड्स होल ओशनोग्राफिक इंस्टीट्यूशन (डब्ल्यूएचओआई) के अध्ययनकर्ताओं ने की है।
सर्वेक्षण की एक महत्वपूर्ण जानकारी यह है कि जैसे-जैसे ग्लोबल वार्मिंग बढ़ेगी, खाद्य वेब के आधार पर प्लवक द्वारा उत्पादित ओमेगा-3 फैटी एसिड और कम होता जाएगा। जिसका अर्थ मछली और लोगों के लिए कम ओमेगा-3 फैटी एसिड का उपलब्ध होना है।
क्या है ओमेगा-3 फैटी एसिड?
ओमेगा-3 फैटी एसिड एक आवश्यक वसा है जिसे मानव शरीर अपने आप पैदा नहीं कर सकता है। इसे व्यापक रूप से "अच्छी " वसा माना जाता है, जो समुद्री भोजन से हमें मिलता है तथा यह हृदय के लिए बहुत अच्छा होता है।
सर्वेक्षण में उच्च-रिज़ॉल्यूशन वाले सटीक मास स्पेक्ट्रोमेट्री का उपयोग किया गया, जिसकी मदद से दुनिया भर के महासागरों में 930 लिपिड नमूनों का विश्लेषण किया गया। महासागर प्लैंकटोनिक लिपिडोम की अनजाने विशेषताओं को उजागर करते हुए, सैकड़ों से हजारों लिपिड प्रजातियों को दिखता है।
क्या बढ़ते तापमान से कम हो रहा है ओमेगा-3 फैटी एसिड का उत्पादन ?
अध्ययनकर्ताओं ने कहा कि दस आणविक रूप से अलग-अलग ग्लिसरॉलिपिड वर्गों पर गौर करते हुए हमने 1,151 विशिष्ट लिपिड प्रजातियों की पहचान की। जिसमें फैटी एसिड की कमी पाई गई, यानी इनमें कार्बन से कार्बन डबल बॉन्ड की संख्या मूल रूप से तापमान से प्रभावित पाई गई।
उन्होंने बताया कि हमने आवश्यक फैटी एसिड ईकोसापेंटेनोइक एसिड (ईपीए) में भारी गिरावट होने का अनुमान लगाया है। जिससे आने वाले समय में, मत्स्य पालन पर गंभीर हानिकारक प्रभाव पड़ने के आसार हैं।
ईपीए सबसे पौष्टिक ओमेगा-3 फैटी एसिड में से एक है, इसे कई स्वास्थ्य को होने वाले लाभों से जोड़ा गया है। यह आहार पूरक या डाइटरी सप्लीमेंट के रूप में व्यापक रूप में उपलब्ध है।
डब्ल्यूएचओआई के समुद्री रसायन और भू-रसायन विभाग के वरिष्ठ वैज्ञानिक और सह-अध्ययनकर्ता बेंजामिन वान मूय कहते हैं कि समुद्र में लिपिड आपके जीवन को प्रभावित करते हैं। हमने पाया कि समुद्र के गर्म होने पर समुद्र में लिपिड की संरचना बदल रही है, जो कि चिंताजनक है।
मूय ने बताया हमें उन लिपिडों की आवश्यकता है जो समुद्र में हैं क्योंकि वे भोजन की गुणवत्ता को प्रभावित करते हैं जो महासागर, जीवों तथा लोगों की भलाई के लिए पैदा करता है।
प्रमुख अध्ययनकर्ता हेनरी सी. होल्म ने कहा कि समुद्र में सभी जीवों को पानी के बढ़ते तापमान से जूझना पड़ता है। इस अध्ययन में हमने महत्वपूर्ण जैव रासायनिक तरीकों में से एक का खुलासा किया है, जिसमें कोशिकाएं ऐसा कर रही हैं।
लिपिड ऊर्जा भंडारण, झिल्ली संरचना और सिग्नलिंग के लिए जीवन के सभी क्षेत्रों से जीवों द्वारा उत्पादित और उपयोग किए जाने वाले जैव-अणुओं का एक वर्ग है। वे सतही महासागर में लगभग 10 से 20 प्रतिशत प्लवक बनाते हैं जहां लिपिड उत्पादन सबसे अधिक होता है।
समुद्र विज्ञानियों ने दशकों से लिपिड को रासायनिक और जैविक प्रक्रियाओं के बायोमार्कर के रूप में उपयोग किया है, तथा उनके जैव-भू-रसायन के बारे में शोध किए गए हैं। हाल ही में उच्च-रिज़ॉल्यूशन मास स्पेक्ट्रोमेट्री और डाउनस्ट्रीम विश्लेषणात्मक उपकरणों की मदद से अन्य अणुओं जैसे न्यूक्लिक एसिड और प्रोटीन के सर्वेक्षण के समान समुद्र के लिपिड का व्यापक आकलन किया जा सकता है।
ओमेगा-3 फैटी एसिड को लेकर क्या कहता है सर्वेक्षण ?
इस नए सर्वेक्षण में शोधकर्ताओं ने 2013 से 2018 तक सात समुद्र विज्ञान अनुसंधान भ्रमण के दौरान एकत्र किए गए 146 स्थानों से प्लवक (प्लैंकटोनिक) लिपिडोम के वैश्विक आधार पर बड़े पैमाने पर डेटासेट की जांच की। शोधकर्ताओं ने गौर किया कि यद्यपि प्लैंकटोनिक समुदाय लिपिडोम पोषक तत्वों की उपलब्धता जैसे कई पर्यावरणीय कारकों से प्रभावित होते हैं।
शोधकर्ताओं ने ग्लिसरॉल (यानी ग्लिसरॉलिपिड्स) के साथ लिपिड के 10 प्रमुख वर्गों की उपलब्धता की जांच की और पाया कि उन वर्गों में, फैटी एसिड प्रजातियों की सापेक्ष उपलब्धता को तापमान अत्यधिक प्रभावित कर रहा था। जबकि ठंडे तापमान में ऐसा नहीं पाया गया।
अध्ययन में कहा गया है कि ये रुझान अन्य सभी ग्लिसरॉलिपिड वर्गों के साथ-साथ सभी ग्लिसरॉलिपिड वर्गों के कुल एकत्रित लिपिडोम में भी स्पष्ट हैं। वास्तव में, यह खतरनाक तरिके से बढ़ता तापमान और रासायनिक प्रक्रिया के बीच संबंध हमारे डेटासेट से उभरते हैं, इस तरह के अलग-अलग और असमान प्लैंकटोनिक समुदायों के बावजूद, पोषक तत्वों की कमी वाले उपोष्णकटिबंधीय से अत्यधिक उत्पादक अंटार्कटिक तटीय इलाकों तक फैले हैं।
शोधकर्ताओं ने बताया कि ईकोसापेंटेनोइक एसिड(ईपीए) प्रजातियों में तापमान के साथ एक मजबूत संबंध देखा गया। यह निर्धारित करने के लिए कि ईपीए की संरचना के लिए ऊपरी और निचली सीमाएं भविष्य में बढ़ते तापमान की स्थितियों के तहत कैसे बदल सकती हैं, शोधकर्ताओं ने विभिन्न जलवायु परिदृश्यों के लिए सदी के अंत की समुद्री सतह के तापमान की स्थिति का उपयोग करके मानचित्र तैयार किए।
जलवायु परिदृश्य एसएसपी 5-85 के तहत, जिसे निरंतर बढ़ते ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के साथ सबसे खराब स्थिति माना जाता है, कुछ महासागरों के इलाकों, विशेष रूप से उच्च अक्षांशों पर ईपीए के सापेक्ष 25 फीसदी तक की भारी कमी देखी जा सकती है।
वान मूय ने कहा कि यह शोध यह दिखता है कि है कि कैसे मानवजनित गतिविधियां महासागरों को परेशान कर रही हैं, यह अनिश्चितता बनी हुई है कि महासागर बढ़ते तापमान का जवाब कैसे देंगे।